सम्पादकीय

इस बार चमोली

Neha Dani
9 Feb 2021 4:46 AM GMT
इस बार चमोली
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उत्तराखंड के चमोली जिले में रविवार को हुए हादसे ने एक बार फिर सबको दहला दिया।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | अभी हमारी सामूहिक याददाश्त में धूमिल भी नहीं पड़ा है कि यह एक और घटना हो गई। हालांकि केदारनाथ हादसा आकार-प्रकार और भीषणता के मामले में इससे कहीं बड़ा था, लेकिन इस दुर्घटना ने एक बार फिर यह याद दिला दिया कि हिमालय के संवेदनशील इलाकों के घटनाक्रम को लेकर हम किस कदर अनजान, बल्कि उदासीन बने हुए हैं और इसके कितने खतरनाक नतीजे हमें भुगतने पड़ सकते हैं। अभी तक पुख्ता तौर पर यह भी स्पष्ट नहीं हो सका है कि रविवार सुबह हुए इस हादसे के पीछे आखिर वजह क्या थी।

कहा जा रहा है कि यह ऊपरी क्षेत्र में आए एक ऐवलांच (हिमस्खलन) का परिणाम हो सकता है। दूसरी संभावना ग्लेशियर टूटने की बताई जा रही है। मगर दोनों ही स्थितियां अपने आप में इतनी तेजी से पानी नीचे आने का कारण नहीं बन सकतीं। जमी हुई बर्फ दरक कर अच्छी-खासी ठंड में आखिर इतनी जल्दी पिघल कैसे जाएगी? इस तरह के फ्लैश फ्लड का मतलब ही है कि पानी ऊपर कहीं इकट्ठा हुआ होगा, कोई अस्थायी झील बनी होगी। ऐवलांच आने या ग्लेशियर टूटने की वजह से इस झील के रुके हुए पानी को नीचे की ओर रास्ता भर मिल गया होगा जिसने कहर ढा दिया। लेकिन हादसे के पहले ऐसी कोई झील बनने की तो कोई जानकारी ही नहीं थी। हादसे के बाद भी ऐसा कोई संकेत अभी तक नहीं मिल पाया है। इससे पता चलता है कि हिमालयी क्षेत्र में हो रही उथल-पुथल पर नजर रखने की व्यवस्था कितनी अपर्याप्त है।


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