सम्पादकीय

गोली बारूद से भी खतरनाक है कश्मीर में सुई के ज़रिए फ़ैलता ये आतंकवाद

Gulabi Jagat
28 March 2022 12:12 PM GMT
गोली बारूद से भी खतरनाक है कश्मीर में सुई के ज़रिए फ़ैलता ये आतंकवाद
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सिर्फ हथियार वाले आतंकवाद की चुनौती ही नहीं , कश्मीर में अब इससे भी बड़ा एक और खतरा भीतर ही भीतर जहरीले नासूर की तरह पल रहा
संजय वोहरा।
सिर्फ हथियार वाले आतंकवाद की चुनौती ही नहीं , कश्मीर (Kashmir) में अब इससे भी बड़ा एक और खतरा भीतर ही भीतर जहरीले नासूर की तरह पल रहा है. बीते तीन दशक के दौरान यहां पैदा हुई पूरी की पूरी पीढ़ी इस खतरे की जद में आती जा रही है. महज़ 13 -14 साल से लेकर 25 से 30 साल की उम्र वाली इस पीढ़ी ने पिछले कुछ ही अरसे में कफ सिरप ( Cough Syrup ) पी पीकर मस्ती के हिलोरें लेने की लत से जो शुरुआत की थी वो पीढ़ी अब ऐसी पक्के नशेड़ियों का हुजूम बन गई है जिसकी रगों में हेरोइन जैसे जानलेवा नशे का सैलाब बहने लगा है. सैलाब भी ऐसा जिसे मोड़ना या रोकना गोली और बारूद वाले आतंकवाद से भी निपटने से ज्यादा मुश्किल और चुनौती भरा काम है. कम विकसित और दूरदराज़ के पहाड़ी इलाकों में बसी छितरी हुई आबादी में जहां इंसान के इलाज के लिए बुनियादी सहूलियतें मुहैया कराने के लिए भी जद्दोजहद चल रही हो वहां पर नशेड़ियों की तादाद सैंकड़ों से हजारों में और फिर अचानक लाखों में पहुंच जाना जितना अफ़सोसनाक है उतना ही हैरान करने वाला है. कश्मीर में नशे के बढ़ते इस मकड़जाल के लिए भले ही दवाओं के गैर कानूनी धंधे से लेकर नारको टेररिज्म ( narco terrorism ) जैसे कॉन्सेप्ट को ज़िम्मेदार माना जाए लेकिन असलियत ये है कि इसके लिए , वहां हालात में आए बदलाव एक बहुत बड़ा कारण है.
आंकड़े भयावह हैं
नशे की गिरफ्त में जकड़े कश्मीर के कुछ आंकड़ों पर नज़र भर डालने से भी स्थिति की भयावता को समझने में मदद मिल सकती है. हिमालय की हिंदुकुश पर्वत श्रृंखला की गोद में बसी कश्मीर घाटी में सितंबर 2014 में श्रीनगर और आसपास के इलाकों में आई भीषण बाढ़ के बाद एक एक करके यहां नई नई मुसीबतें जुडती गईं जिन्होंने हालात को और मुश्किल बना दिया. इन मुसीबतों की पड़ताल और उसके असर पर बात करने से पहले ज़रूरी है नशे के शिकंजे में फंसे लोगों की तादाद पर नज़र डाली जाए जिसमें लगातार इज़ाफा हो रहा है.
अकेले श्रीनगर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हैल्थ एंड न्युरोसाइंसेस ( institute of mental health and neurosciences – IMHANS) में 2012 से 2015 के बीच ऐसे 139 मरीज़ इलाज के लिए पंजीकृत हुए थे जो ओपिओइड सामग्री (opioid substance) यानि अफीम से बनी नशीली दवाओं का इस्तेमाल करने से बीमार हुए . 2015 से 2019 के बीच इनकी संख्या 309 हुई साल 2020 में यहां 495 मरीज़ इलाज के लिए रजिस्टर हुए और 2021में इसने एक हज़ार के आसपास के आंकड़े को छू लिया. आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो सबसे ज्यादा और घनी आबादी होने के कारण कश्मीर का श्रीनगर ज़िला नशे की समस्या से ज्यादा प्रभावित भी है. यहां 2021 में 4183 मरीजों ने इलाज के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था . इसी साल के दौरान अनंतनाग में 1666 , बारामूला में 1565, पुलवामा में 1338 और कूपवाड़ा ज़िले में 1247 नशे की लत के कारण बीमार हुए मरीजों के नए केस सामने आए.
भयानक सचाई ये है कि इनमें से 80 फ़ीसदी मामले ऐसे युवाओं के हैं जो नशा करने के लिए हेरोइन को पानी में मिलाकर सुई ( इंजेक्शन) के ज़रिये नसों में घुसाते हैं. खतरनाक होने के साथ साथ हेरोइन का नशा सबसे महंगे नशों में से एक है. कश्मीर में साल 2020 में नशे से बीमार 7500 मरीजों ने इलाज के लिए रजिस्ट्रेशन कराया जबकि साल 2021 के नवंबर तक ये आंकड़ा 13500 पहुँच चुका था.
हज़ारों से लाखों में पहुंची नशेबाजों की तादाद
हालांकि मरीजों के पंजीकरण के आधार पर नशे के इस बढ़ते जाल का सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता क्योंकि ये संख्या तो सिर्फ उन लोगों की है जो नशे के कारण ज्यादा बीमार व परेशान होने के बाद अस्पताल या नशा मुक्ति केंद्र के पास जाते हैं या जिनके बारे में परिवारों को पता चल जाता है. लेकिन असलियत ये है कि समाज में बेइज़्ज़ती के डर और गैर कानूनी नशा लेने के कारण पुलिस से बचने के चक्कर में ज़्यादातर नशेड़ियों के केस सामने ही नहीं आते. यानि हकीकत में नशा पीड़ितों की तादाद कहीं ज्यादा होगी. लिहाज़ा कम होने के बावजूद ये चौंकाने वाले आंकड़े ज़रूर हैं. केन्द्रीय सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय और दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक तो केंद्र शासित क्षेत्र जम्मू कश्मीर में नशा करने वालों की आबादी तकरीबन 6 लाख है. वैसे अब हालात का ज़मीनी स्तर से पता लगाने के लिए जम्मू कश्मीर के हर ज़िले में सर्वे करवाया जाएगा जिसके लिए टीम आदि बनाने और विभिन्न महकमों को इसमें शामिल करने की प्रक्रिया शुरू की गई है. दिसंबर में डीवीज़नल ड्रग डी एडिक्शन मोनिटरिंग कमेटी (divisional drug de-addiction monitoring committee ) की उस बैठक में समीक्षा के दौरान ये फैसला लिया गया था जिसकी सरपरस्ती अतिरिक्त मुख्य सचिव ( स्वास्थ्य व चिकित्सा शिक्षा ) विवेक भारद्वाज ने की थी. इस सर्वे से निकलने वाले नतीजों को ध्यान में रख कर यहां नशे की इस समस्या से निपटने के उपाय खोजे जाएंगे
कश्मीर के बिगड़े हालात और अवसाद ने बढ़ाया जाल
जम्मू – कश्मीर के नशे की दलदल में फंसने के पीछे पिछले कई साल से फल फूल रहे आतंकवाद और उससे जुड़े कई पहलू तो ज़ाहिराना तौर पर हैं ही लेकिन सिलसिलेवार यहां हुए एक के बाद एक घटनाक्रम बड़ी वजह कहे जा सकते हैं.
सितंबर 2014 में लगातार बारिश , बादल फटने , भूस्खलन और बाढ़ की तबाही जैसी कुदरती आफतों ने 284 लोगों की जान ली. इसमें तकरीबन 5 से 6 हज़ार करोड़ रूपये कीमत की सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचा. बहुत से लोगों के धंधे चौपट हुए.जुलाई 2016 में हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की सुरक्षा बलों में मुठभेड़ के बाद पूरी घाटी के हालात खराब हो गए जहां लगातार 53 दिन कर्फ्यू रहा. जगह जगह प्रदर्शन , सुरक्षा बलों पर पथराव जैसी निरंतर हुई गड़बड़ियों इससे हालात बमुश्किल सम्भले थे कि अगस्त 2019 में धारा 370 हटाने और जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म इसे दो केंद्र शासित हिस्सों में बांटने के सरकार के फैसले के खिलाफ बंद और हड़ताल के हालात पैदा हुए. कश्मीर में नेताओं की नजरबंदी और राजनीतिक अस्थिरता रही. इसके बाद कोरोना वायरस महामारी के संक्रमण ने दुनिया भर में जो हालात खराब किये, कश्मीर भी उससे अछूता न रहा. 2014 से लगातार चल रहे इन तमाम खराब हालात में कारोबार , स्कूल . कॉलेज सब बंद रहे. पर्यटन तो सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ.
अमरनाथ यात्रा भी नहीं हुई जो रोज़गार का एक और बड़ा स्त्रोत है. यही नहीं कश्मीर के भीतर भी लोगों की आवाजाही कम रही. वैसे भी आतंकवाद के कारण छावनी में तब्दील हो गई घाटी में साधारणत लोग सूरज ढलने के बाद और उगने से पहले आवाजाही से परहेज़ ही करते हैं. घाटी में आतंकवाद से सीधे या परोक्ष रूप से ज़्यादातर आबादी प्रभावित हुई है जो दो धारी तलवार में पिसी है. कइयों को जिहाद के नाम पर मारकाट करने वाले आतंकवाद ने निशाना बनाया तो कई उसकी प्रतिक्रिया या रोकथाम वाली कार्रवाइयों के ताप में आ गए. सुरक्षा बलों का खौफ तो इन पर लगातार रहता ही है.
अवसाद के पर्याप्त कारण
उपरोक्त तमाम हालात ने जहां कश्मीरियों के आमदनी के साधन कम किये वहीं उनको एक सीमित दायरे मैं बांध कर रख दिया. खासतौर से कश्मीर के उन ग्रामीण इलाकों में तो ये हर उम्र और हरेक वर्ग के लोगों के लिए दुश्वारियां लाया जहां मनोरंजन , दिल बहलाने के साधन तो क्या खेल के मैदान जैसी बुनियादी सहूलियतें भी न के बराबर हैं. उस पर ज्यादातर वक्त में सर्दी का प्रकोप इनकी घर से बाहर की गतिविधियों को यूं ही कम किये रहता है. ज़्यादातर लोगों के लिए मोबाइल फोन ही वक्त बिताने का ज़रिया हैं और उस पर देखे जाने वाले हर तरह के उलटे सीधे वीडियो भी इन पर असर डालते हैं . ऐसे में किसी को अवसाद (depression ) होना कोई अजीब बात नहीं हो सकती. लिहाज़ा अवसाद को दूर करने के लिए नशा करना एक उपाय बनता जा रहा है. कश्मीर में बड़ी तादाद में हुक्का , बीड़ी – सिगरेट के रूप में तंबाकू के सेवन को एक तरह से सामाजिक स्वीकृति मिली हुई है जबकि शराब को नहीं. महक आने से पहचाने जाने और अन्य कई कारणों से शराब की बजाय लोग मस्ती मनोरंजन के लिए केमिस्ट से मिलने वाली नींद और नशे की गोलियां और कैप्सूल का सहारा लेते हैं, भांग और पोस्त के अलावा अफीम और उससे बने मादक पदार्थ हेरोइन , ब्राउन शुगर इस्तेमाल करने लगते हैं. जिस हिसाब से यहां नशेबाज़ों की संख्या बढ़ रही है उससे तो ये भी स्पष्ट है कि यहां इन मादक पदार्थों की उपलब्धता भी बहुतायत में है. सिगरेट में तम्बाकू के साथ मिलाकर सेवन करने से शुरू होकर , इसके धुएं को सीधे नाक के रास्ते सांस की तरह लेने ( inhale ) और पानी में मिलाकर नसों में इंजेक्ट करना अब यहां कोई असामान्य बात नहीं रह गई है. क्योंकि ये गैर कानूनी ड्रग्स महंगी बिकती हैं तो इसके धंधे में भी खासी कमाई बहुत से लोगों के लिए रोजगार बनती जा रही है. भारतीय सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस बलों ने पिछले कुछ साल में यहां विदेश से आई हेरोइन की काफी खेप पकड़ी हैं . इनमें से कुछ केस पाकिस्तान की सीमा वाले क्षेत्र हैं जो सीमा नियंत्रण रेखा ( एलओसी – LOC ) के आसपास हैं. यहां कुछ हवाला के ज़रिये हुए पैसे का लेनदेन भी नारको टेररिज्म ( narco terrorism ) के उन लक्षणों की तरफ भी इशारा करता है जो पंजाब में आतंकवाद के दौर में भी दिखाई दिए देते रहे हैं.
बहुआयामी व्यावहारिक नीति की ज़रूरत
जिस तरह से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं और जो रुझान दिखाई दे रहा है उससे तो लगता है कि इनको सुधारने के लिए बहुआयामी नीति की ज़रूरत है. एक ऐसी नीति जो कश्मीरियों के रहन सहन के तौर तरीकों और उनकी ज़रूरतों के मद्दे नजर बनाई जाए जिसमें रोज़गार से लेकर उनकी व्यस्तता तक सुनिश्चित करने के व्यवहारिक उपाय शामिल हों . शिक्षण संस्थानों से लेकर स्थानीय निकाय , पंचायतों , खेल विभाग समेत तमाम ऐसे विभागों को इसमें शामिल करने की ज़रूरत है जिनका युवा वर्ग से खास तौर से ताल्लुक है. ज़रूरत पड़ने पर इसके लिए सरकारी या गैर सरकारी तौर पर धार्मिक संस्थानों और धर्म गुरुओं की भी मदद ली जा सकती है. ये सिर्फ गैर कानूनी नशीले पदार्थों के कारोबार और उससे खराब हो रही युवाओं की सेहत का ही मामला नहीं है क्योंकि आने वाले वक्त में ये विकराल रूप धारण करेगा. नशे से होने वाली मौत का आंकडा तो बढ़ेगा ही, नशे का इंतजाम करने के लिए नशेड़ियों में अपराध करने की प्रवृत्ति भी बढ़ेगी, नशेबाज़ों की बढ़ती तादाद सामाजिक ताने बाने पर भी नकारात्मक असर डाल कर उसे कमज़ोर करती है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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