सम्पादकीय

यह अंतिम ऐसा युद्ध होना चाहिए, जिसमें अमेरिका ने दोनों पक्षों की फंडिंग की हो

Gulabi Jagat
1 April 2022 8:36 AM GMT
यह अंतिम ऐसा युद्ध होना चाहिए, जिसमें अमेरिका ने दोनों पक्षों की फंडिंग की हो
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यह पूर्वानुमान लगाना तो खैर असम्भव है कि यूक्रेन में चल रही लड़ाई कैसे खत्म होगी
थॉमस एल. फ्रीडमैन का कॉलम:
यह पूर्वानुमान लगाना तो खैर असम्भव है कि यूक्रेन में चल रही लड़ाई कैसे खत्म होगी। मैं उम्मीद करता हूं कि लड़ाई के बाद हम एक स्वतंत्र और सुरक्षित यूक्रेन देखेंगे। लेकिन मैं एक बात जरूर जानता हूं और वो ये कि अमेरिका को इस संकट से सबक लेना चाहिए। यह पहली बार नहीं है, जब हमारा सामना एक पेट्रो-तानाशाह से हुआ है, जो केवल इसीलिए ये तमाम दु:साहस कर पा रहा है, क्योंकि उसके पास धरती से निकाले गए तेल की सम्पदा है।
यूक्रेन में चाहे जो हो, अमेरिका को अब तेल के प्रति अपनी लालसा से औपचारिक रूप से मुक्त हो जाना चाहिए। इसके ही कारण हमें अपनी विदेश नीति, मानवाधिकारों के लिए प्रतिबद्धता, राष्ट्रीय सुरक्षा और सबसे बढ़कर पर्यावरण के प्रति अपने दायित्वों से समझौता करना पड़ा है। यह अंतिम ऐसा युद्ध होना चाहिए, जिसमें हम और हमारे सहयोगियों ने दोनों पक्षों की फंडिंग की हो। हम हमेशा से यही करते आ रहे हैं।
पश्चिमी देश हमारे टैक्स-डॉलर्स की मदद से नाटो को धन देते हैं और यूक्रेन काे सैन्य सहायता मुहैया कराते हैं और चूंकि रूस से ऊर्जा-संसाधनों का निर्यात हमारे स्टेट-बजट का 40 प्रतिशत है, इसलिए एक तरह से हम रूसी तेल और गैस खरीदकर व्लादीमीर पुतिन की फौज को भी युद्ध के लिए पैसा दे रहे हैं। यह कितना मूर्खतापूर्ण है! हमारी सभ्यता अब इसे बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर सकती। यूक्रेन में लड़ाई चल रही है, इसलिए क्लाइमेट चेंज छुट्‌टी पर नहीं चला गया है।
क्या आपने हाल के दिनों में उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के मौसम की रिपोर्टें देखी हैं? इस महीने अंटार्कटिका भीषण हीट-वेव की गिरफ्त में रहा और वहां का तापमान 70 डिग्री फारेनहाइट तक चला गया। वहीं आर्कटिक के अनेक क्षेत्र औसत से 50 डिग्री अधिक गर्म हो चुके हैं। जी नहीं, ये वाक्य वर्तनी की भूलें नहीं हैं, ये हैरान कर देने वाली सुपरएक्स्ट्रीम हैं।
आपने इससे पहले उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों को एक साथ पिघलता नहीं देखा होगा। अगर पूर्वी अंटार्कटिका की बर्फ पिघल गई तो दुनिया की समुद्र सतह 160 फीट ऊपर उठ जाएगी। यही कारण है कि मैं प्रेसिडेंट बाइडेन से निराश हूं, जो हमारे ऑइल-एडिक्शन को बढ़ा रहे हैं, जबकि उन्हें रीन्यूएबल एनर्जी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
वे रिपब्लिकनों के इस मिथ्या-प्रचार से चिंतित हो गए कि बाइडेन की ऊर्जा-नीति गैसोलिन की बढ़ी दरों के लिए जिम्मेदार है। इसके बाद वे दुनिया के बड़े पेट्रो-तानाशाहों वेनेजुएला, ईरान, सऊदी अरब से याचना करने लगे कि उन्हें और तेल मुहैया कराएं, ताकि गैसोलिन की कीमतों पर लगाम कसी जा सके।
आज अगर कोई ऐसा देश है, जिसके पास तुरंत ही दुनिया की तेल-कीमतों को प्रभावित करने की क्षमता है तो वह है सऊदी अरब, लेकिन रूस भी इस खेल का छोटा खिलाड़ी नहीं है। यही कारण था कि दो साल पहले डॉनल्ड ट्रम्प सऊदी अरब और रूस दोनों से याचना कर रहे थे कि वे अपने उत्पादन में कटौती करें, क्योंकि तेल की कीमतें गिरकर 15 डॉलर प्रति बैरल पर चली गई थीं और इससे अमेरिकी तेल कम्पनियों का बंटाढार हो रहा था, जिनकी ऑइल के एक्सट्रैक्शन की लागत ही 40 से 50 डॉलर प्रति बैरल है।
अब बाइडेन सऊदियों से याचना कर रहे हैं कि वे अपना प्रोडक्शन बढ़ाएं ताकि तेल की कीमतों की कमी आ सके। ट्रम्प और बाइडेन में एक बात समान है। दोनों ही हाथ फैलाकर याचना करते हैं। हमें एक ऐसे संक्रमण-काल की जरूरत है, जिसमें हम धीरे-धीरे तेल पर निर्भरता कम करते जाएं। पुतिन को सबसे ज्यादा डर इसी से लगेगा। आखिर, 1988 से 1992 के दौरान जब सऊदियों ने तेल के भण्डार खोल दिए थे, तब वैश्विक कीमतों में गिरावट के ही तो कारण सोवियत संघ दिवालिया हो गया था और उसके टूटन की प्रक्रिया में गति आ गई थी।
हम रीन्यूएबल एनर्जी के उत्पादन को बढ़ाकर और एनर्जी-एफ़िशिएंसी पर जोर देकर आज फिर ऐसा कर सकते हैं। इसका सबसे अच्छा तरीका है इलेक्ट्रिक साधनों के लिए क्लीन ऊर्जा मानकों को बढ़ा देना। एक समय अमेरिका की इलेक्ट्रिक पॉवर कोयले पर निर्भर थी, और आज हम नेचरल गैस से बिजली बनाकर अपना कार्बन-उत्सर्जन घटा रहे हैं।
आज हमारे 31 राज्य क्लीन ऊर्जा के मानकों को बढ़ा चुके हैं। जब कारें, ट्रक, घर, फैक्टरियां, इमारतें सभी इलेक्ट्रिफाइड हो जाएंगी और आपकी ग्रिड रीन्यूएबल एनर्जी से चल रही होगी तो हम फॉसिल फ्यूल से मुक्त होते चले जाएंगे और पुतिन के डॉलरों का खजाना खाली होने लगेगा।
जब तक हम ऑइल से एडिक्टेड रहेंगे, यह खत्म नहीं होने वाला, क्योंकि तेल के सूत्र हमारे हाथ में नहीं हैं। हम धीरे-धीरे तेल पर अपनी निर्भरता कम करते जाएं। पुतिन को सबसे ज्यादा डर इसी से लगेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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