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पूरे देश का सच यह है कि कुपोषण से मुक्ति मिलना तो दूर, अब स्थिति ज्यादा गंभीर हो रही है
पूरे देश का सच यह है कि कुपोषण से मुक्ति मिलना तो दूर, अब स्थिति ज्यादा गंभीर हो रही है। इसलिए अगर कुछ राज्यों में हालत अपेक्षाकृत बेहतर और कहीं कमतर हो, तो वह राहत की बात नहीं हो सकती। मसलन, भारत में कुपोषित बच्चों की संख्या महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में सर्वाधिक है। malnutrition children age five
सैम्पल रजिस्ट्रेशन सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में शिशु मृत्यु दर के मामलों में बीते दस सालों में 23 अंकों की कमी आई है। यह आंकड़ा प्रति हजार 2009 के 52 से घटकर 2019 में प्रति हजार 29 पर आ गया। यह अच्छी खबर है। लेकिन इसके साथ ही ये रिपोर्ट यह भी बताती है कि राज्य में कुपोषण स्थिति भयावह है। कुपोषण की स्थिति में अलग-अलग राज्यों में अंतर रहा है। लेकिन पूरे देश का सच यह है कि इससे मुक्ति मिलना तो दूर, अब स्थिति ज्यादा गंभीर हो रही है। इसलिए अगर कुछ राज्यों में हालत अपेक्षाकृत बेहतर और कहीं कमतर हो, तो वह राहत की बात नहीं हो सकती। मसलन, भारत में कुपोषित बच्चों की संख्या महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में सर्वाधिक है। बिहार में पांच साल से कम उम्र के 41 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। सभी आयु वर्ग के बच्चों को यदि शामिल करें, तो यह आंकड़ा 42.9 फीसद पर पहुंच जाता है।
गौरतलब है कि ये आंकड़े कोरोना महामारी के पहले के हैँ। साफ अनुमान लगाया ज सकता है कि इस महामारी के कारण इस आंकड़े में और वृद्धि हुई होगी। दुनियाभर में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का मुख्य कारण कुपोषण को माना गया है। शोध अध्ययनों से मालूम होता है कि समुचित पोषण का अभाव बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देता है, जिससे ऐसे बच्चे विभिन्न संक्रामक रोगों की चपेट में जल्द आ जाते हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 (वर्ष 2019-20) के आंकड़ों के मुताबिक बीते पांच वर्षों में देश के अधिकांश राज्यों में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण के मामले बढ़े हैं। जानकार बताते हैं कि जन्म के बाद छह माह तक केवल मां का दूध और छह माह के बाद मां के दूध के अलावा ऊपरी आहार बच्चों के लिए जरूरी है। कम ही बच्चों को सही व पर्याप्त मात्रा में ऊपरी आहार मिल पाता है और वे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं। यानी बच्चों को स्तनपान कराने के लिए मां का स्वस्थ और पूर्ण पोषित होना जरूरी है। लेकिन एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के अनुसार बच्चों के साथ ही गर्भवती महिलाओं में खून की कमी जैसी गंभीर समस्याएं बढ़ रहीं हैं। राज्य के 23 फीसद बच्चों का वजन उनकी आयु तथा लंबाई के अनुसार नहीं बढ़ पाता है।
नया इंडिया
Gulabi
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