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- प्रतीक्षा में झुका हुआ...
वे प्रार्थना में झुके हुए थे, अभी भी झुके हुए हैं। कब तक झुके रहेंगे, हम नहीं जानते। सपना दिखाने वाले बायस्कोप को अपने कंधों पर उठा कर विकास के नाम पर सौगात में दे दिए गए। इस बीहड़ जाल में उनकी जि़ंदगी की शाम हो गई, वे अब भी झुके हैं। इन सपनों के नखलिस्तान में वे उनके भाषणों की छांव में अपने लिए कोई ठिकाना ढूंढने निकले तो सपने खंड-खंड होकर उनकी जि़ंदगी को और भी बेचारा कर गए। इस बेचारगी से वे शर्मिदा नहीं हुए और विनीत हो गए। 'गरीबी हटाओ देश बचाओ' के कोलाहल में देश के नाम पर अट्टालिकाएं बच गईं। बच कर और बहुमंजि़ली हो गईं। उनके फुटपाथों के तो उखड़ते हुए पत्थरों की भी किसी ने सुध नहीं ली। वे इन्ही 'पत्थरों का तकिया बना' कर विनय श्रद्धा और भक्ति की प्रतिमूर्ति बन गए। और अब आधी रात को क्लब घरों से निकलती हुई रैप गीतों की धुनों पर बला की तेज़ी से अपनी आयातित गाडि़यां भगाते हुए उन अमीरज़ादों का इंतज़ार करते हैं जो उन्हें आधा-पौना कुचल कर निकल जाएंगी।