सम्पादकीय

ये विवाद क्रिकेट को 50 साल पीछे धकेल देगा, कोहली-गांगुली विवाद से देश के तमाम क्रिकेट प्रेमी नाराज हैं

Rani Sahu
21 Dec 2021 5:46 PM GMT
ये विवाद क्रिकेट को 50 साल पीछे धकेल देगा, कोहली-गांगुली विवाद से देश के तमाम क्रिकेट प्रेमी नाराज हैं
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भारतीय क्रिकेट और विवादों का अटूट रिश्ता है

शेखर गुप्ता भारतीय क्रिकेट और विवादों का अटूट रिश्ता है। इतिहास देखें तो पता चलेगा कि अधिकतर विवादों की वजह हार और बेइज्जती हुआ करती थी। 14 मार्च 2001 तक ऐसा ही होता था, जब सौरभ गांगुली की कप्तानी में वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ ने पूरे दिन बैटिंग करके ऑस्ट्रेलिया से आखिरी क्षणों में चमत्कारी जीत हासिल करने का आधार तैयार किया था। इसके बाद, खासकर टेस्ट क्रिकेट में भारत के वर्चस्व के दो दशक का युग शुरू हुआ। भारत का उत्कर्ष इतनी तेजी से हुआ कि उसके बाद उसने ग्रेग चैपल के बदनुमा दौर को आराम से परे धकेल दिया।

समय के साथ विराट कोहली गांगुली के सच्चे उत्तराधिकारी साबित हुए। यह गली-मोहल्ले के क्रिकेट की आक्रामकता वाला, उजड्ड कहे जाने पर गर्व करने वाला और ऑस्ट्रेलियाइयों को उनके ऑस्ट्रेलियाइपन में मात देने वाला क्रिकेट था। यह भी एक विडंबना है कि जिन शानदार लोगों ने भारतीय क्रिकेट को ऐसे गौरवपूर्ण शिखर पर पहुंचाया वे ही अब उसे उस शिखर से नीचे धकेलते दिख रहे हैं।
गांगुली बीसीसीआई के अध्यक्ष हैं, द्रविड कोच हैं, लक्ष्मण नेशनल क्रिकेट अकादमी के प्रमुख हैं और सर्वविजेता कप्तान कोहली (कम से कम टेस्ट में) अब निशाने पर हैं। यहां हम कैसे पहुंच गए, यह किसी के लिए भी समझ पाना मुश्किल है और तमाम क्रिकेटप्रेमी तो नाराज हैं ही।
अब तक लोग यही मानते रहे कि भारतीय खेलों के तमाम संगठनों की बागडोर गैर-खिलाड़ियों के हाथ में है। पहली बार हमने बागडोर एक आला और काफी हद तक समकालीन क्रिकेटर के हाथ में सौंपी। नतीजा क्या हुआ? भारतीय क्रिकेट टीम दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना होने वाली थी कि बवाल हो गया।
हाल के वर्षों में भारत ऑस्ट्रेलिया में लगातार दो और इंग्लैंड में एक सीरीज़ जीत चुका है, जबकि घर आने वाली टीमों का सूपड़ा साफ करता रहा है। लेकिन दक्षिण अफ्रीका में हम सीरीज़ नहीं जीत पाए हैं। कोहली के सहयात्रियों के लिए इस अंतिम गढ़ को फतह करने का यह सुनहरा मौका है।
लेकिन, बीसीसीआई ने क्या किया? टीम के रवाना होने से एक सप्ताह पहले कोहली पर हमलावर हो गए, उन्हें शर्मसार किया। शुरू में मीडिया में अफवाहों को बढ़ावा दिया, जिनमें से कुछ तो बिलकुल गलत थीं। इनमें सबसे बेतुकी थी कि कोहली ओडीआई सीरीज इसलिए नहीं खेलना चाहते थे क्योंकि उसी दौरान उनकी बेटी का जन्मदिन पड़ेगा। सूत्रों ने हमें बताया कि कोहली ने बोर्ड को ऐसी कोई बात नहीं कही।
बोर्ड के 'सूत्रों' का जवाब यह था कि ठीक है, उन्होंने हमसे वैसा कुछ नहीं कहा होगा लेकिन उन्होंने ड्रेसिंग रूम अपने कुछ करीबी दोस्तों से इस बात का जिक्र किया था। लेकिन उसे कोहली से बात करने से कौन रोक रहा था? तथ्यों पर गौर करने से पता चलता है कि जिसने भी सफाई देने की कोशिश की उसे पूरी बात नहीं पता थी। बेटी का जन्मदिन ओडीआई सीरीज़ के बीच नहीं पड़ता था। बोर्ड के ज़हीन लोग ऐसी गलती कैसे कर बैठे? क्योंकि उन्होंने होमवर्क ठीक से नहीं किया। ओमिक्रॉन की वजह से दौरे की तारीखें बदलीं और पूरा कार्यक्रम बदल गया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बोर्ड की कमान टॉप क्रिकेटर को सौंप दी गई। उम्मीद थी कि बिजनेसमैन-खिलाड़ियों के बीच हितों का टकराव नहीं होगा। इसके बाद हमने बोर्ड चीफ को उन मैचों के प्रसारण के बीच क्रिकेट के 'गेमिंग एप' के विज्ञापनों में देखा, जिन मैचों में उनकी अपनी टीमें खेल रही है। और अब यह घालमेल सामने आया है। मानो विराट कोहली 2021-22 के लिए वही हैं, जो ग्रेग चैपल 2005-06 के लिए थे। दुखद बात यह है कि टीम के चयनकर्ता और बोर्ड यह तर्क कर सकते हैं कि कोहली क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट के लिए कप्तान नहीं बने रह सकते।
कोहली ने यह घोषणा करके उनके लिए दरवाजा खोल दिया था कि अब वे टी-20 टीम की कप्तानी नहीं करेंगे। तब चयनकर्ताओं का यह तर्क ठीक हो सकता है कि सफेद गेंद से खेले जाने वाले दोनों फॉर्मेट, टी-20 और ओडीआई के लिए एक ही कप्तान रखना महत्वपूर्ण है। दुनिया में अलग-अलग कप्तान रखने का ही चलन है, सिवा न्यूजीलैंड और अब तक भारत के, क्योंकि विलियम्सन और कोहली अपने प्रदर्शन और अपनी टीम के प्रदर्शन के कारण निर्विवाद अगुआ बने।
लेकिन, भारत के लिए एक व्यक्ति की लीडरशिप का फॉर्मूला 2013 के बाद से आइसीसी की ट्रॉफियां जीतने के मामले में कारगर साबित नहीं हुआ। इसके अलावा, कोहली ने जब टी-20 की कप्तानी छोड़ दी तो सफेद गेंद से खेले जाने दोनों फॉर्मेट के लिए दो कप्तान रखने का कोई अर्थ नहीं रह गया। कोहली का फॉर्म भी गड़बड़ हो गया, तो उन्हें बैटिंग की अपनी जबरदस्त प्रतिभा पर ध्यान देने की जरूरत बढ़ गई।
हम सब मान लेते हैं। पर एकमात्र सवाल का कोई जवाब नहीं है कि क्या यह सब इतने खराब तरीके से करना जरूरी था? वे उस दौर में लौट गए हैं जब बोर्ड बिशन सिंह बेदी या मोहिंदर अमरनाथ को मनमाने तरीके से अपमानित करता था या कोई विजय मर्चेन्ट एक युवा मंसूर अली खान पटौदी को बेआबरू करके, बिना कोई कारण बताए कप्तान के पद से हटा देते थे।
यह सब मुझे पानीपत के स्कूल के अपने पुराने दोस्त प्रदीप मैगजीन की नई किताब 'नॉट जस्ट क्रिकेट' से मालूम हुआ। बताया गया है कि मर्चेन्ट परिवार पटौदी परिवार से इसलिए नाराज था कि 1946 में उनकी जगह सीनियर पटौदी इफ्तिखार अली खान को इंग्लैंड के दौरे पर गई टीम का कप्तान बना दिया गया था जबकि वे योग्य नहीं थे। सीनियर पटौदी तब तक केवल इंग्लैंड के लिए खेलते रहे थे।
वे भारत के लिए इसलिए उपलब्ध हुए क्योंकि बदनाम एशेज़ वाले दौरे में जाने से या तो उन्होंने मना कर दिया था या वे टीम में इसलिए शामिल नहीं किए गए थे कि उन्हें डगलस जार्डाइन की 'बॉडीलाइन' गेंदबाजी नापसंद थी। प्रदीप की किताब बताती है कि मंसूर अली खान पटौदी के उत्तराधिकारी अजित वाडेकर का शानदार दौर किस तरह केवल तीन साल (1971-74) ही चला। उसके बाद बुरा दौर शुरू हो गया।
क्लाइव लॉयड की आक्रामक वेस्ट इंडीज टीम जब भारत के दौरे पर आई तब बीसीसीआई को बुढ़ाते 'टाइगर' को वापस लाना पड़ा था। उन्होंने टीम को फिर खड़ा किया और सीरीज़ में उसे 0-2 से पिछड़े होने के बावजूद अविश्वसनीय 2-2 की बराबरी पर लाने के लायक बनाया। भारत वह सीरीज़ 3-2 से हारा। बहरहाल, टाइगर ने खुद को साबित कर दिखाया। उनका काम पूरा हुआ मगर इसके बाद भारतीय टीम 25 साल तक गर्त में रही, 1983 के चमत्कार के बावजूद।
जो भी कारण रहा हो, मर्चेन्ट ने 1970 में पटौदी को गरिमा विहीन ढंग से हटा दिया था। अगर बीसीसीआई 2021 में उसी इतिहास को दोहराने में गर्व महसूस करता है, तो वह भारतीय क्रिकेट को पचास साल पीछे धकेल देगा। वह यह समझने की कोशिश भी नहीं करेगा कि भारतीय क्रिकेट, खिलाड़ी और उसके फैन, सब बदल चुके हैं। अहम बात यह है कि वे कोहली के नेतृत्व में जीतने के आदी हो चुके हैं।
हितों का टकराव
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बोर्ड की कमान टॉप क्रिकेटर को सौंप दी गई। उम्मीद थी कि बिजनेसमैन और खिलाड़ियों के बीच हितों का टकराव नहीं होगा। इसके बाद हमने बोर्ड के चीफ को, शायद क्रिकेट की पूरी दुनिया में एकमात्र मिसाल पेश करते हुए, उन मैचों के प्रसारण के बीच क्रिकेट के एक 'गेमिंग एप' के विज्ञापनों में देखा, जिन मैचों में उनकी अपनी टीमें खेल रही हैं और अब यह घालमेल सामने आया है। मानो विराट कोहली 2021-22 के लिए वही हैं, जो ग्रेग चैपल 2005-06 के लिए थे।
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