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मात्र चौबीस घण्टे में हिमाचल जैसे छोटे राज्य में पचपन लोगों का अकारण और असमय मौत का शिकार हो जाना कोई सामान्य घटना नहीं है। तेरह और चौदह अगस्त 2023 का दिन भयंकर वर्षा, जलप्रपात तथा भूस्खलन से हिमाचल प्रदेश के लोगों को कभी न भूलने वाला दर्द दे गया। प्रदेश का जनमानस डर के साये में जीवन यापन कर रहा है। सडक़ें, इमारतें, गाडिय़ां, बिजली तथा पानी की योजनाएं, पर्यटक स्थल, भौतिक संसाधन, सभी विनाशलीला का शिकार हो रहे हैं। चारों ओर भयंकर तबाही का आलम है। हमेशा से मनुष्य द्वारा प्रकृति पर बार-बार उत्पात करने तथा सजा भुगतने का यह क्रम अनवरत रूप से चल रहा है। यह तो निश्चित है कि हर वर्ष सर्दी, गर्मी तथा बरसात होगी तथा यह भी सर्वविदित है कि जहां मानवीय जीवन होगा वहां पर आग, बाढ़, तूफान, सूखा, अकाल, भूस्खलन, हिमस्खलन, भूकम्प, सुनामी, समुद्री तूफान, बिजली गिरने, बादल फटने तथा महामारी की संभावना भी होगी। मौसम विभाग के रेड अलर्ट, ऑरेंज अलर्ट तथा चेतावनियां भी अब आम बात हो गई है। यह भी सत्य है कि हम आपदाओं को समाप्त तो नहीं कर सकते बल्कि उनको कम करने के लिए प्रयत्न तो कर ही सकते हैं। मानवीय जीवन की सुरक्षा के लिए हर पल तत्पर एवं सचेत रहना हमारी आवश्यकता तथा प्राथमिकता है। यह सरकार, प्रशासन, व्यवस्था तथा समाज का सामूहिक कार्य है। यह भी स्वीकार करना होगा कि हम समय रहते आपदाओं की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए तैयारी नहीं करते। हिमाचल प्रदेश एक पहाड़ी राज्य है तथा प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से बहुत ही संवेदनशील है। पहाड़ी राज्यों की मुश्किलें एवं परेशानियां मैदानी राज्यों की अपेक्षा अधिक एवं अलग होती हैं।
इस संदर्भ में अंधाधुंध विकास, भवन निर्माण, औद्योगिकीकरण, जंगलों का कटान, सडक़ों का निर्माण, बिजली परियोजनाओं के लिए बांध का निर्माण, बारूद से पहाड़ों का सीना छलनी होना तथा विद्युत उत्पादन के साथ योजनाओं की समीक्षा एवं विश्लेषण होना भी आवश्यक है। यह ठीक है कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, सडक़ों, पुलों, विद्युत परियोजनाओं का निर्माण, बड़ी-बड़ी इमारतों तथा कारखानों का निर्माण भी लोगों व प्रदेश की आवश्यकता है, लेकिन भौतिक विकास मानवीय जीवन तथा प्रकृति के विनाश की कीमत पर नहीं होना चाहिए। आपदाओं की तीव्रता तथा इनकी आवृत्ति में कमी का प्रयास किया जाना चाहिए। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने स्वीकार किया कि मात्र दो दिनों में 55 लोग अकाल मृत्यु का शिकार हो चुके हैं। मुख्यमंत्री ने माना कि विगत पचास वर्षों में इतनी भारी वर्षा नहीं हुई। प्रदेश में इस मॉनसून में अभी तक लगभग 150 लोग मारे जा चुके हैं। लगभग 1200 सडक़ें भूस्खलन के कारण बन्द हो चुकी हैं। एचआरटीसी के लगभग 3700 रूट बन्द हो चुके हैं। बिजली के 4500 ट्रासंफार्मर तथा लगभग 9500 पेयजल योजनाएं ठप्प हो चुकी हैं। अनेकों घर नदियों में ताश के पत्तों की तरह बिखर चुके हैं, गाडिय़ां तिनकों की तरह जलप्रवाह में बह चुकी हैं। कई पुल जलमग्न हो चुके हैं। चारों ओर चीख-ओ-पुकार, बर्बादी तथा तबाही का मंजर है। जुलाई महीने में भयंकर वर्षा तथा जलप्रपात से केवल कुल्लू तथा मण्डी जिलों में लगभग 4000 करोड़ रुपए के नुकसान का आकलन था, लेकिन इस बार लगभग पूरे प्रदेश में तथा सभी जिलों में तबाही का आलम है। प्रदेश की सतलुज, व्यास तथा रावी नदियां अपने रौद्र रूप में हैं। चम्बा, कांगड़ा, हमीरपुर, मण्डी, कुल्लू, बिलासपुर, हमीरपुर, शिमला, सिरमौर तथा सोलन जिलों में भयंकर तबाही हुई है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू जानमाल तथा सम्पत्ति के नुकसान लेने के लिए निरंतर राज्य प्रशासनिक अधिकारियों, जिलाधीशों तथा आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की समीक्षा बैठकें कर रहे हैं। हालात से निपटने के लिए मुख्यमंत्री ने स्वयं कमान पकड़ी है, वे प्रत्येक घटना पर स्वयं जाकर लोगों के आंसू पोंछने का प्रयास कर रहे हैं, परन्तु प्रकृति के आगे व्यक्ति, व्यवस्था तथा सरकार तो छोटी सी चीज है।
पिछले महीने प्रदेश के 126 जवान राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल की सातवीं बटालियन द्वारा बठिंडा से प्रशिक्षण प्राप्त कर लौटे हैं जिन्हें आपदा से निपटने के लिए तैनात किया गया है, लेकिन प्रदेश की पहाड़ जैसी आपदाओं को मद्देनजर रखते हुए यह संख्या अपेक्षा से कहीं बहुत कम है। प्रदेश में प्रशासनिक अधिकारियों को ही सामान्य सा प्रशिक्षण देकर आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है जो कि नाकाफी है। आपदाओं से मुकाबला करने के लिए विधिवत शिक्षित, कौशल प्राप्त एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। वैकल्पिक व्यवस्था के सहारे आपदाओं का सामना करना असंभव तो नहीं, बल्कि मुश्किल अवश्य होता है। हिमाचल की विकट परिस्थितियों को देखते हुए प्रदेश में एक स्थाई एसडीआरएफ तथा एनडीआरएफ आपदा प्रतिक्रिया बटालियन की आवश्यकता है। इससे जहां वास्तविक रूप से प्रशिक्षित लोगों को रोजगार मिलेगा वहीं पर प्रदेश में आने वाली आपदाओं के नियन्त्रण तथा करोड़ों रुपए के नुकसान की कमी में भी सहायता मिलेगी। किसी भी राज्य के लिए आपदा प्रबंधन एक बहुत ही आवश्यक एवं चुनौतीपूर्ण विषय है। प्रदेश के लोगों की जागरूकता के साथ-साथ विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए इसका प्रशिक्षण बहुत आवश्यक है।
आपदाओं से सम्बन्धित जानकारी, सूचनाएं, जागरूकता बहुत आवश्यक है ताकि कम से कम सम्पत्ति तथा जान-माल की हानि हो। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से अपने संबोधन में भी इस अकल्पनीय त्रासदी पर दु:ख प्रकट कर राज्य तथा केन्द्र सरकार के सहयोग से इस पर नियंत्रण पाने का भरोसा जताया है। आवश्यकता है प्रदेश के इस महाप्रलय को केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाना चाहिए। इस आपदा के लिए विशेष वित्तीय सहायता का प्रावधान कर मरहम लगाने की आवश्यकता है। इस समय केन्द्र सरकार, विपक्षी दलों तथा सभी लोगों को प्रदेश में आई इस विनाशलीला को समाप्त करने के लिए आर्थिक सहयोग देकर अपना हाथ बढ़ाना चाहिए। जहां इस मौके पर केन्द्र सरकार से त्वरित आर्थिक पैकेज की आवश्यकता है वहीं पर भविष्य की आपदाओं से निपटने के लिए आपदा प्रतिक्रिया बटालियन की स्थापना भी समय की मांग है।
प्रो. सुरेश शर्मा
शिक्षाविद
By: divyahimachal
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