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प्रधान न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने सार्वजनिक मंचों पर लगातार संवैधानिक भावना के अनुरूप बातें कही हैं
किसी भी लोकतांत्रिक देश में यह सहज अपेक्षा होती है कि न्यायपालिका सार्वजनिक जीवन से जुड़े अहम मसलों को तरजीह दे। प्रश्न है कि अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई करके उसे जल्द निपटाया जा सकता है, तो इन मामलों को क्यों नहीं? उल्लेखनीय है कि अयोध्या मामला असल में एक संपत्ति विवाद था।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने सार्वजनिक मंचों पर लगातार संवैधानिक भावना के अनुरूप बातें कही हैं। इस भावना के खिलाफ जारी प्रवृत्तियों की आलोचना करने में उन्होंने कोई कोताही नहीं बरती है। लेकिन जहां तक न्यायिक प्रक्रिया की बात है, तो उसमें उनके कार्यकाल में सिर्फ इतना बदलाव दिखा है कि जुबानी टिप्पणियों में सरकार की सख्त लहजे में खिंचाई की गई है। फैसलों में या न्यायालय के कामकाज में ये बदलाव उतना साफ नहीं दिखा है। इसका एकमात्र अपवाद पेगासस जासूसी का मामला है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया और उसके मुताबिक फैसला भी दिया। लेकिन बाकी न्यायिक कार्यवाहियों में अभी तक ऐसे रुख का इंतजार है। बल्कि कम से कम दो जजों- न्यायमूर्ति अकिल कुरैशी और न्यायमूर्ति संजीव बनर्जी- के तबादलों के मामलों में तो कोर्ट के कॉलेजियम ने निराश ही किया है।
बहरहाल, अब 200 से ज्यादा प्रमुख नागरिकों ने एक खुला पत्र लिख कर न्यायमूर्ति रमन्ना और सुप्रीम कोर्ट को यह मौका दिया है कि वे चाहें तो न्यायपालिका को लेकर गुजरे वर्षों में बनी धारणा को तोड़ सकते हैँ। इन नागरिकों ने उन 49 मामलों की सूची तैयार की है, जो संवैधानिक बेंच के दायरे में आते हैँ। हालांकि कुल ऐसे 421 मामले कोर्ट के विचाराधीन हैं, लेकिन ये 49 मामले वो हैं, जिनका सीधा संबंध नागरिक अधिकारों, संविधान की मर्यादा, संघीय व्यवस्था और संसदीय प्रक्रिया से है। इन नागरिकों ने कोर्ट से आग्रह किया है कि वह इन पर प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई करते हुए इन पर फैसला दे। इन मामलों में कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति, नागरिकता संशोधन कानून, इलेक्ट्रॉल बॉन्ड, कृषि कानूनों की संवैधानिकता आदि शामिल हैं। किसी भी लोकतांत्रिक देश में यह सहज अपेक्षा होती है कि न्यायपालिका सार्वजनिक जीवन से जुड़े अहम मसलों को तरजीह दे। प्रश्न है कि अगर अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई करके उसे जल्द निपटाया जा सकता है, तो इन मामलों को क्यों नहीं? उल्लेखनीय है कि अयोध्या मामला असल में एक संपत्ति विवाद था। जबकि जिन मामलों का जिक्र नागरिकों के पत्र में किया गया है, उनका संबंध संविधान और उसकी व्यवस्था से है। इसलिए यह अपेक्षित है कि कोर्ट इस पत्र को गंभीरता से ले। अगर न्यायमूर्ति रमन्ना इन मामलों में जल्द फैसले की राह तैयार कर पाए, तो उनके कार्यकाल को एक बेहतरीन दौर के रूप में याद किया जाएगा।
नया इण्डिया
Gulabi
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