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- तीसरी लहर की पहेली
केरल कोरोना वायरस की पहेली बनकर रह गया है। वह भारत में तीसरी लहर की भी पहेली साबित हो सकता है। केरल में हररोज़ 20,000 से ज्यादा संक्रमित मामले दर्ज किए जाते रहे हैं। आज करीब 14,000 केस सामने आए हैं, लिहाजा देश भर में कोरोना के आंकड़े भी लुढ़क कर पहली बार 30,500 तक आए हैं। इस समीकरण को सामान्य नहीं समझा जा सकता, क्योंकि अभी तय नहीं है कि केरल के नए आंकड़े कब तक जारी रहते हैं। माना जा सकता है कि पूरे देश का औसतन 50 फीसदी संक्रमण केरल में ही है। भारत सरकार और महामारी विशेषज्ञों का चिंतित होना स्वाभाविक है। दरअसल केरल में जन-स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा, दूसरे राज्यों की तुलना में, काफी बेहतर है। कोरोना टीकाकरण, टेस्टिंग प्रति 10 लाख आबादी, मृत्यु-दर, अन्य वायरस की पहचान करने में और मास्क का इस्तेमाल करने आदि में केरल या तो अव्वल रहा है अथवा अन्य की अपेक्षा बेहतर रहा है। वहां औसतन 1.6 लाख टेस्ट हररोज़ किए जा रहे हैं और इस तालिका में वह प्रथम स्थान पर है। बंगाल, बिहार, उप्र में हररोज़ जितने टेस्ट किए जाने चाहिए थे, उससे काफी कम किए जा रहे हैं, जबकि उन राज्यों की आबादी केरल से कई गुणा ज्यादा है। इस वर्ग में मप्र, गुजरात और हरियाणा भी केरल से नीचे हैं। राजस्थान तो सबसे निचले पायदान पर है। क्या ज्यादा जांच के कारण ही कोरोना के मरीजों की बढ़ी संख्या सामने आ रही है? चिंता के कुछ और पहलू भी गौरतलब हैं, क्योंकि विशेषज्ञों के आकलन हैं कि केरल कोरोना की तीसरी लहर की आधार-भूमि साबित हो सकता है। जन-स्वास्थ्य का मजबूत ढांचा और आम जागरूकता व्यापक होने के बावजूद केरल के अधिकतर हिस्सों में संक्रमण दर 10 फीसदी या उससे अधिक रही है। यही केरल को पहेली बनाए हुए है। राज्य की करीब 48 फीसदी आबादी को कोरोना टीके की कमोबेश एक खुराक दी जा चुकी है और करीब 21 फीसदी आबादी में संपूर्ण टीकाकरण, यानी दोनों खुराक, दिया जा चुका है। सीरो सर्वे के मुताबिक, केरल में करीब 55 फीसदी आबादी ऐसी है, जिसे संक्रमण की संभावनाएं प्रबल हैं।