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- तीसरी लहर और दिल्ली...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। राजधानी दिल्ली विषाक्त गैसों का चैम्बर बन चुकी है, सांस लेना भी दूभर हो गया है। दूसरी तरफ कोरोना की तीसरी लहर के संकेत स्पष्ट हैं। जिस तरह से कोरोना से संक्रमित नए केसों में बढ़ौतरी हो रही है इसे काफी खतरनाक माना जा रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, गृह मंत्रालय और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय तक की स्थिति पर नजर है।
धान की फसल कटने के बाद हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में तमाम अनुरोधों और सख्त नियमों के बाद भी किसान पराली जलाने से बाज नहीं आ रहे। आर्थिक गतिविधियों को गति देने के लिए धीरे-धीरे सभी प्रतिबंध हटा दिए गए हैं। दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को भी फुल सिटिंग कैपेसिटी के साथ चलाने की अनुमति दे दी गई। कोरोना से बचाव करने केलिए दिल्ली वालों का चिंतन कैसा होना चाहिए? यह सवाल अपने आप में बड़ा है। एक संभ्रात महानगर के लोगों का महामारी के दौरान आचरण और सामान्य व्यवहार काफी सतर्क होना चाहिए। दिल्ली में शिक्षित वर्ग से लेकर बुद्धिजीवियों की कोई कमी नहीं। उम्मीद तो यह थी कि लोग स्वयं पूरी सतर्कता बरतेंगे और कोरोना संकट की चुनौती पर विजय पाने के लिए पूरा सहयोग देंगे लेकिन लोगों का व्यवहार देखकर आश्चर्य हो रहा है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि धार्मिक पर्व और उत्सव हमारी संस्कृति और परम्पराओं का अभिन्न हिस्सा हैं लेकिन लोग सड़कों और बाजारों में इस तरह बेखौफ निकल पड़े जैसे महामारी का कोई खतरा ही नहीं हो। सुहागिनों के त्यौहार करवा चौथ की रात चांद निकलने का समय 8 बजकर 12 मिनट बताया गया था लेकिन दिल्ली सुबह से ही स्मॉग की चादर में लिपटी हुई थी, हवा बहुत खराब श्रेणी की थी। रात के वक्त भी दृश्यता कम थी लेकिन चंदा को ढूंढने हजारों लोग घरों की छतों, नहरों, नालों और पार्कों के किनारे खड़े थे। चांद को ढूंढने सारे निकल पड़े थे। बीच-बीच में शोर आता-वो दिखा-वो दिखा। उस दिशा में गाड़ियों की लम्बी कतारें सड़कों के इर्दगिर्द खड़ी थीं। करवा चौथ का चांद तो हमेशा ही इंतजार कराता है। किसी को कुछ नहीं दिखा तो लोग पेड़ों को जल चढ़ाकर लौट आए। हजारों लोग ऐसे थे जिन्होंने रात दस बजे या उसके बाद भी खड़े होकर धुंधले चांद के दीदार किए। न किसी ने मास्क पहना हुआ था और न ही किसी ने सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखा। पूरे देश की स्थिति देखें तो पहले की तुलना में संक्रमण को उतार पर माना जा सकता है लेकिन दिल्ली की संक्रमण की तीसरी लहर ने चिंताएं बढ़ा दी हैं। इस समय दिल्ली में संक्रमण की दर पूरे देश की संक्रमण की दर से कहीं अधिक है। दिल्ली में पहले जैसे ही संक्रमण के मामले कम हुए, लोग बेखौफ हो गए आैर उन्होंने शिथिलता बरतनी शुरू कर दी। अब दिल्ली और केन्द्र सरकार भी परेशान है। दिल्ली एक ऐसा महानगर है जहां दिनभर कारोबारी गतिविधियां संचालित होती हैं। आसपास के राज्यों और शहरों के लोगों का आना-जाना भी बढ़ गया है।
पर्यावरणविदों ने अकाल के संदर्भ में कहा था कि इस तरह का संकट आने से पहले विचारों का अकाल आ जाता है। इस समय भी दिल्ली में चिंतन में व्यापक अकाल नजर आ रहा है। रसोईघर में मौजूद हल्दी, दूध, काढ़ा और दादी मां के नुस्खे पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित हो जाते थे, उन्हें लोगों ने बाजार के हाथों सौंप दिया है। जो चीजें घर में आसानी से मिल जाती थीं, अब उन्हें ही खरीदने के लिए हमें बाजार जाना पड़ता है। देसी दवाइयों से उपचार करने वालों से लेकर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने लोगों के भीतर फैले खौफ को भुनाने के लिए अपने उत्पाद बाजार में उतार दिए हैं। दरअसल लोग कोरोना काल में मनोविज्ञान, धर्म और परम्पराओं में सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे, कम से कम दिल्ली वालों में काफी विरोधाभास देखा गया। उत्सव तभी अच्छे लगेंगे यदि आप स्वस्थ होंगे, अगर दिल्ली वाले बिना चिंतन किए भीड़ लगाते रहे तो फिर संक्रमण का विस्फोट होना स्वाभाविक है। स्वयं के जीवन को जोखिम में डालना ठीक नहीं।
संवादहीनता की स्थिति तो समाज में पहले से ही थी लेकिन कोरोना काल ने संवादहीनता को और गहरा कर दिया है। इससे समाज में व्याप्त संकट की कई परतें उभर रही हैं। लोग भाग रहे हैं, हांफ रहे हैं, बदहवासी की स्थिति है। दिल्ली वालों से मेरा आग्रह है कि कोरोना से पहले ही काफी नुक्सान हो चुका है, इसलिए संयम से काम लें और जब तक कोई दवाई नहीं आती तब तक कोई ढिलाई न बरतें। खुद को और परिवार को सुरक्षित रखने के लिए जितना जरूरी हो, उतना ही बाहर निकलें और बचाव उपायों का पूरी तरह से पालन करें अन्यथा कोरोना की तीसरी लहर काफी घातक सिद्ध होगी।