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- इंटरनेट की तीसरी पीढ़ी
अभिषेक कुमार सिंह: आज वेब 3.0 को एक क्रांतिकारी बदलाव कहा जा रहा है। माना जा रहा है कि इससे वेब संसार के विकेंद्रीकरण का आरंभ होगा। इसका आशय यह है कि आगे चल कर फेसबुक, गूगल, इंस्टाग्राम को उनकी कंपनियों के स्वामी-संचालक के बजाय वे आम लोग चलाएंगे जो इनका इस्तेमाल करते हैं।
मानव सभ्यता के हजारों वर्षों के इतिहास में सबसे ज्यादा बदलाव बीते दो सौ सालों में ही आए हैं। इनमें भी ज्यादा तेजी तब आई, जब विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास हुआ और पिछले तीन-चार दशकों में इंटरनेट ने पांव पसारे। कहने को तो इंटरनेट अपने किस्म की अकेली तकनीक है, पर यह लगभग हर तकनीक और हर गतिविधि के संचालन की सहयोगी और तमाम क्रियाकलापों का केंद्र बन गई है। लेकिन यहां एक सवाल यह कि क्या इंटरनेट यानी वेब की दुनिया खुद भी बदल रही है। यह सवाल खासतौर से इसलिए उठा है क्योंकि अब इंटरनेट के नए स्वरूप के तौर पर 'वेब 3.0' की बात हो रही है, यानी तीसरी पीढ़ी का इंटरनेट, जो पहले की दो पीढ़ियों के हर मायने में अलग, बेहतर और नए कायदे-कानून वाला होगा।
इसमें संदेह नहीं है कि इंटरनेट के आगमन के बाद से विज्ञान संबंधी आविष्कारों के चलते दुनिया में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। तकनीकी सुधारों के कारण कई काम आसान हो गए। यहां तक कि खरीदारी, पढ़ाई से लेकर दफ्तरी काम तक अब घर बैठे हो रहे हैं। लेकिन जैसी तेजी इंटरनेट की सहूलियतों के कारण तमाम कामकाज में दिखाई पड़ी है, वैसी तेजी खुद इंटरनेट के दायरे में नहीं हुई। मिसाल के तौर पर गूगल, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि इंटरनेट और सोशल मीडिया के तकनीकी पहलू इस दौरान बहुत ज्यादा नहीं बदल पाए।
लेकिन जब से फेसबुक ने मेटावर्स के नाम पर नई पहल की है, इंटरनेट के दायरे में वेब 3.0 नामक नई तब्दीली की बात उठने लगी। हालांकि वेब 3.0 की बात पिछले लंबे समय से की जा रही थी। कई इंटरनेट कंपनियां इसकी जरूरत पर विचार करने की वकालत कर रही थीं। लेकिन मेटावर्स की दस्तक के साथ तकनीकी कामकाज करने वाली कंपनियां भी कहने लगी हैं कि इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की जरूरत के मुताबिक अब वेब 3.0 नामक बदलाव का मार्ग प्रशस्त किया जाना चाहिए।
आज वेब 3.0 को एक क्रांतिकारी बदलाव कहा जा रहा है। माना जा रहा है कि इससे वेब संसार के विकेंद्रीकरण की शुरुआत होगी। इसका आशय यह है कि आगे चल कर फेसबुक, गूगल, इंस्टाग्राम को उनकी कंपनियों के स्वामी-संचालक की बजाय वे आम लोग चलाएंगे जो इनका इस्तेमाल करते हैं। तात्पर्य यह है कि इन सारी सेवाओं से संबंधित डाटा पर इन्हें इस्तेमाल करने वालों का अधिकार होगा। यह एक नई बात अवश्य है, पर इसका विचार काफी अरसे से किया जा रहा है कि फेसबुक आदि इंटरनेट कंपनियां उन उपयोगकर्ताओं के साथ जमा किए गए डाटा और उससे अर्जित राजस्व में हिस्सेदारी क्यों नहीं देती हैं, जिनके बल पर असल में ये कंपनियां चलती हैं।
उल्लेखनीय है कि इस साल मार्च में इंस्टाग्राम और फेसबुक के मालिकाना हक वाली कंपनी- मेटा ने वेब 3.0 साफ्टवेयर के लिए ट्रेडमार्क संबंध आवेदन किए हैं। सिर्फ मेटा ही नहीं, बल्कि माइक्रोसाफ्ट और स्पाटीफाइ जैसी कुछ और कंपनियों ने वेब 3.0 विशेषज्ञों की सेवाएं लेने की बात कही है, जिससे इस संबंध में बहस चल पड़ी है कि तीसरी पीढ़ी का इंटरनेट अब साकार होने को है।
इंटरनेट यानी वर्ल्ड वाइड वेब को मोटे तौर पर तीस-पैंतीस साल हो चुके हैं। वर्ल्ड वाइड वेब असल में किसी सर्वर में जमा वेबसाइटों या वेब पेजों के एक संग्रह की तरह होता है, जो इंटरनेट के संजाल के जरिए स्थानीय कंप्यूटरों, लैपटाप, स्मार्टफोन आदि से जुड़ा होता है। वर्ल्ड वाइड वेब की पहली पीढ़ी यानी वेब 1.0 का आविष्कार वर्ष 1989 में हुआ माना जाता है। साल 1993 से वेब 1.0 ने दुनिया में अपनी उपयोगिताएं जाहिर करनी शुरू कर दी थीं। शुरुआत में उपयोगकर्ताओं को इंटरनेट पर एक किस्म की स्थिर जानकारी वेब पेजों पर मिलती थीं, जिसमें ज्यादा पेजों के जुड़ाव (लिंक) नहीं होते थे। यानी इसमें उपयोगकर्ता अपनी ओर से कुछ नया जोड़ नहीं सकते थे।
नब्बे के दशक के अंत और इक्कीसवीं सदी के आरंभ के साथ इंटरनेट पर उपयोगकर्ताओं को ऐसी सेवाएं मिलने लगीं, जिनकी सहायता से आम लोग खुद कोई सामग्री बना सकते थे, उसे पोस्ट कर सकते थे। बातचीत करना, तस्वीरें, फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड करना, फिल्में देखना और तेजी से आनलाइन चैट करना- ये सारी सुविधाएं लोगों को वेब 2.0 के दौर में मिलीं, जिनका सिलसिला आज भी अपने अधुनातन रूप में जारी है।
उल्लेखनीय है कि वेब 3.0 नामक शब्द का ईजाद सबसे पहले वर्ष 2014 में कंप्यूटर विज्ञानी गैविन वुड ने किया था और इसे भविष्य का इंटरनेट करार दिया था। यों तो वेब 3.0 की सबसे बड़ी खूबी यह बताई जा रही है कि इसमें उपयोगकर्ताओं को अपने डाटा के इस्तेमाल, नियंत्रण और स्वामित्व का अधिकार मिलेगा। इससे एक विकेंद्रीकृत और निष्पक्ष इंटरनेट सामने आएगा, जिसकी आज सबसे ज्यादा जरूरत है। चूंकि यह मध्यस्थों की भूमिका खत्म कर देगा और ब्लाकचेन जैसी नई तकनीकों की मदद से हर किस्म के संपादन व लेनदेन का समय और स्थान सटीकता के साथ दर्ज करेगा।
लिहाजा एक ऐसे निष्पक्ष और तटस्थ इंटरनेट का निर्माण हो सकेगा जिसमें इसके उपयोगकर्ताओं और सर्जकों को पर्याप्त अधिकार मिलेंगे। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। फेसबुक अमूमन उन्हीं लोगों की सूचनाओं (लेख, फोटो और वीडियो जैसी सामग्री) के सहारे चलता है, जो इसके उपयोगकर्ता दिन-प्रतिदिन इस पर साझा करते हैं। लेकिन इन सूचनाओं यानी डाटा पर नियंत्रण का हक उपयोगकर्ताओं को नहीं है।
यहां तक कि कमाई का बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया के मंचों के संचालक-स्वामी अपने पास रखते हैं। लेकिन वेब 3.0 में इन स्थितियों में परिवर्तन आ सकता है। नई व्यवस्था में सभी तरह की सूचनाओं के आदान-प्रदान और लेनदेन संबंधी नियम किसी के लिए भी पारदर्शी रूप से उपलब्ध होंगे जिन्हें एक साफ्टवेयर के माध्यम से लिखा व उपलब्ध कराया जाएगा। ऐसे में नियमों को प्रमाणित करने के लिए किसी केंद्रीय व्यवस्था, नियामक या संचालक की जरूरत नहीं होगी।
इसी तरह वेब 3.0 के संचालन में भी अंतर आ सकता है। अभी वेब 2.0 मोबाइल, सोशल नेटवर्क और क्लाउड तकनीकों के सहारे संचालित होता है, जबकि हो सकता है कि वेब 3.0 एज कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और विकेंद्रीकृत डाटा नेटवर्क पर आधारित हो। जिस तरह से स्मार्टफोन, कंप्यूटर, तमाम इलेक्ट्रानिक उपकरण, सेंसर और यहां तक कि इंटरनेट आधारित वाहन ताकतवर डिवाइसों में बदल गए हैं, उससे यह संभावना जगती है कि भविष्य में ये खुद में एक डाटा सेंटर का काम कर रहे होंगे। इससे इंटरनेट का तेज और व्यापक विकेंद्रीकरण हो जाएगा।
ऐसा दावा भी किया जा रहा है कि ये सारे उपकरण वर्ष 2025 में यानी अब से सिर्फ तीन साल बाद वर्ष 2010 के मुकाबले एक सौ साठ गुना ज्यादा डाटा की खपत करने योग्य बन जाएंगे। जब ये डिवाइसें इतनी भारी मात्रा में डाटा का संसाधन करेंगी, तो निश्चय ही इंटरनेट की एक केंद्रीकृत व्यवस्था की जरूरत स्वाभाविक रूप से खत्म हो जाएगी।
कहने-सुनने में वेब 3.0 से जुड़ी बातें काफी रोमांचक लगती हैं, लेकिन ध्यान रखना होगा कि अभी यह अपने प्रारंभिक चरण में है। सच्चाई यह है कि इसे लेकर कोई व्यापक सहमति नहीं बनी है कि वेब 1.0 या वेब 2.0 की तरह इसकी असल में शुरुआत होने जा रही है। समस्या का एक अलग मोर्चा यह है कि खुद इंटरनेट उद्योग से जुड़ी कंपनियों, अकादमिक स्तर पर और तकनीकी महारथियों में इसे लेकर काफी संदेह किया जा रहा है कि वेब 3.0 से इंटरनेट की मौजूदा समस्याओं का कोई हल निकल भी सकता है या नहीं।