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- सोच, दुनिया बदलने की

'यह है तो कहानी, पर मैं शायद कुछ कम खुशकिस्मत हूं कि मैंने भी यह कहानी बुढ़ापे में आकर सुनी है। काश, मैं इसे तब सुनता जब अभी मैं जवान था।' आज सवेरे सैर करते समय मेरे एक मित्र ने जब मुझे यह कहा तो मैं चौंक गया और उनकी कहानी सुनने की उत्सुकता जाग उठी। मैंने उनसे वह कहानी सुनाने को कहा तो वे बोले, 'गांव के एक घर में एक बूढ़े दादा जी उदास बैठे थे। बड़ा व्यापार था उनका। व्यापार के साथ-साथ ब्याज पर पैसे देने का भी कारोबार था। बड़े ठसक वाले थे। आज उनको उदास देखकर बच्चों को हैरानी हुई। तब बच्चों ने उनसे पूछा, 'क्या हुआ दादा जी, आज आप इतने उदास बैठे क्या सोच रहे हैं?' दादा जी बोले, 'कुछ नहीं, बस यूं ही अपनी जि़ंदगी के बारे में सोच रहा था!' 'जि़ंदगी के बारे में? मतलब? आपका भरा-पूरा परिवार है, पोते-पोतियां, सब हैं। पहनने को कपड़े हैं, खाने को भोजन है, रहने को सिर पर छत है। बहुत बड़ा व्यापार है। कमी कहां है, जो आप जैसा आदमी उदास बैठा है?' एक बड़े बच्चे ने उत्सुकता ज़ाहिर की। दादा जी कुछ देर सोचते रहे और फिर बोले, 'जब मैं छोटा था तो मेरे ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं थी, मेरी कल्पनाओं की भी कोई सीमा नहीं थी। मैं दुनिया बदलने के बारे में सोचा करता था। जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ, बुद्धि कुछ बढ़ी तो सोचने लगा कि ये दुनिया बदलना तो बहुत मुश्किल काम है, इसलिए मैंने अपना लक्ष्य थोड़ा छोटा कर लिया, सोचा दुनिया न सही, मैं अपना देश तो बदल ही सकता हूं। पर जब कुछ और समय बीता, मैं अधेड़ होने को आया तो लगा ये देश बदलना भी कोई मामूली बात नहीं है।
