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- हिमाचल का थिंक टैंक-1
हिमाचल प्रदेश को पर्वतीय राज्यों का शिरोमणि और प्रगतिशील माना गया है, लेकिन सुनहरे शब्दों के ठीक नीचे प्रदेश के प्रति भविष्य की समझ या विजन की अस्पष्टता साफ जाहिर है। इसका एक कारण तो यह है कि राज्य में स्वतंत्र, मौलिक, गैर राजनीतिक तथा गैर सरकारी विवेचन नहीं होता या यूं कहें कि आज तक ऐसे थिंक टैंक स्थापित नहीं हुए, जो हिमाचल की संपूर्णता, संभावना और संकल्पों के सूत्रधार बन पाते हैं। राज्य के बजट से महामंडित दिशाओं में दीप जलाती हमारी आशाएं भी दरअसल सरकारी भुजाएं बनने की अजीबो-गरीब शिरकत हैं। बेशक हमने केंद्रीय योजनाओं का आवरण ओढ़ रखा है या इनके निपटारे में अव्वल अनुसरण करने का मतैक्य है, लेकिन हिमाचल को हिमाचल की आंख से कब देखेंगे। पश्चिम बंगाल जैसे राज्य ने कोविड की महामारी के दौरान अपने थिंक टैंक के बलबूते ऐसी परिकल्पना कर ली कि वहां ग्रामीण आर्थिकी को जनसहयोग के सहारे आत्मिक शक्ति मिल रही है। हिमाचल के नागरिक समाज जिसमें बहुतायत सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों या पेंशनर्ज की है, क्या कोरोना से हारते निजी क्षेत्र के लिए कोई सोच, विचार या पेशकश की।