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- चौराहे पर बत्तियों की...
तीरथ सिंह खरबंदा; हमारे शहर में एक मशहूर चौराहा है- तीन बत्ती चौराहा। यह महज एक चौराहा नहीं, बल्कि पूरे देश का प्रतिबिंब है। कहने को इस चौराहे पर कई सालों से तीन बत्तियां लगी हुई हैं, लेकिन आजकल अक्सर ये बंद ही पड़ी रहती हैं। हमारे शहर के तीन बत्ती चौराहे पर लगी हुई तीनों लाल, पीली और हरी बत्तियां महज यातायात संकेतक नहीं, बल्कि प्रजातंत्र की प्रतीक हैं।
जिन दिनों ये तीनों बत्तियां बंद रहती हैं, उन दिनों इन बत्तियों का काम एक अदद सिपाही अपनी दो भुजाओं और मुंह में रखी हुई एक अदद सीटी के भरोसे संभाले रहता है। वहां से गुजरने वाले वाहन चालक जितनी परवाह लाल बत्ती की करते हैं, शायद उतनी ही परवाह उस सिपाही के संकेतों की भी करते होंगे। कुछ तो कानून के साथ आंख-मिचौली करने में ही बड़े गर्व का अनुभव करते हैं और कुछ के लिए तो यह सब शगल बनकर रह गया है।
जबकि चौराहे पर लगी तीनों बत्तियां चौराहे की व्यवस्था का आधार स्तंभ हैं। इन बत्तियों में तालमेल कुछ ऐसा है कि कभी कोई एक दूसरे के अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं देती। तीनों बत्तियां हमेशा एक साथ एक ही जगह पर पाई जातीं। तीनों सुबह एक साथ समय से काम पर लग जातीं। उनके बीच इतना अच्छा तालमेल देख कई लोग मन ही मन उनसे ईर्ष्या करते थे। ऐसे लोग हमेशा अपना उल्लू सीधा करने की फिराक में रहते और जिन्हें कभी भी कोई काम कायदे से करना पसंद नहीं था, वे अपने आप को कानून से ऊपर समझते थे।
इन तीनों बत्तियों की सारी व्यवस्था एक मजबूत खंभे पर टिकी हुई थी। आंधी हो या बरसात, खंभा अपने स्थान से टस से मस नहीं होता और तीनों बत्तियों के बीच संतुलन बनाए रखने की जिम्मेदारी ऐसे संभाले हुए था , मानो प्रजातंत्र का कोई अहम खंभा हो। भले लोग इन तीनों बत्तियों की बहुत इज्जत करते, क्योंकि वे जानते थे कि ये हमेशा हमारे ही भले की चिंता करती हैं। वहां से गुजरते समय उनके मात्र एक इशारे पर रुकने और चलने के लिए सदैव तत्पर रहते। ऐसे लोग पीली बत्ती की नसीहत का भी पूरा सम्मान करते। यों भी, एक सभ्य और जिम्मेदार नागरिक अपनी जिम्मेदारियों को समझता है।
सब कुछ अच्छा-भला चल रहा था कि अचानक कुछ ऐसा हुआ कि वह खंभा निकटता का लाभ उठाकर पहले चुपचाप लाल बत्ती के कानों में और फिर खुलेआम उसके पक्ष में कुछ ज्यादा ही बोलने लगा। अक्सर वह उससे कहता रहता कि तुम्हारे बगैर पीली और हरी बत्तियों का कोई अस्तित्व नहीं है। असली ताकत तुम्हारे अंदर है। इसीलिए तुम्हारा स्थान सबसे ऊपर है।
तुम्हारी चेतावनी को नजरअंदाज करने वालों को उसके परिणाम भी भुगतने पड़ते हैं। सरकारी आय में इजाफा करने में तुम्हीं सदैव अग्रणी भूमिका में रहती हो। तुम्हारे भीतर ही सारे जीवन रक्षक गुण विद्यमान है। रात-दिन अपनी तारीफ सुन-सुनकर कानों की कच्ची लाल बत्ती भी उसकी बातों में आ गई और उसे भी यह गुमान हो गया कि वही तीनों में श्रेष्ठ है।
दूसरी तरफ, वही खंभा हरी बत्ती के कानों में जाकर कहता कि असली ताकत तो तुम्हारे पास है। तुम्हारे एक इशारे पर थमे हुए पहिए दौड़ने लगते हैं, वरना सब कुछ ठप्प पड़ा रह जाता। उसकी बातों में आकार लाल और हरी बत्तियां इस गलतफहमी का शिकार हो गर्इं कि सारी व्यवस्था उन्हीं के भरोसे चल रही है। वे भूल बैठीं कि असली ताकत तो उस ऊर्जा में है जो उनके अंदर प्रवाहित हो रही है और जिसका मूल स्रोत कहीं और किसी अन्य तंत्र में है, जिससे उनकी दुनिया की चमक कायम है। पीली बत्ती बड़े ही शांत भाव से सबकी चिंता करती। साथ ही समय- समय पर सबको सावधान भी करती रहती कि देखो ध्यान से आगे बढ़ना, तुम्हारा जीवन बहुत मूल्यवान है।
इसी बीच, एक दिन आकाश में गहरे काले बादल छाए और फिर तेज बारिश के साथ कुछ ऐसी आंधी उठी कि हवा के तेज थपेड़ों के बीच वह खंभा अपनी जगह ठीक से खड़ा नहीं रह सका। शायद उसका आधार कुछ कमजोर था, जिससे वह हिल कर एक तरफ झुक गया। तभी से उस चौराहे की सारी व्यवस्था गड़बड़ा गई। हरी और लाल बत्तियों के अंदर का प्रकाश बुझ-सा गया।
सिर्फ शीशे और रंग की चमक दिखाई पड़ती है। हालांकि सारे हालात के बीच पीली बत्ती फिर भी मद्धिम ही सही, जल-बुझ रही है। वहां से गुजरने वालों को सावधान करती अभी भी आगाह कर रही है कि सावधान रहें, देख कर ही आगे बढ़ें, दुर्घटना से बचें। अपनी सुरक्षा का खुद ध्यान रखें। किसी और के भरोसे न बैठे रहें।
बहुत दिनों से शहर की जनता इंतजार कर रही है कि कब यह असंतुलित होकर झुका हुआ खंभा फिर से अपनी जगह पर ठीक से खड़ा हो सकेगा, कब चौराहे की तीनों बत्तियां फिर जगमगा उठेंगी, कब चौराहे की बिगड़ी हुई व्यवस्था फिर अपनी पटरी पर वापस लौट सकेगी और कब आम जनता को सुकून नसीब हो सकेगा।