सम्पादकीय

बात जो गौरतलब है

Subhi
5 April 2021 2:40 AM GMT
बात जो गौरतलब है
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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के इस सुझाव पर भारत सहित सभी देशों को जरूर ध्यान देना चाहिए कि अब जरूरत टैक्स ढांचे को न्यायपूर्ण बनाने की है।

NI एडिटोरियल: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के इस सुझाव पर भारत सहित सभी देशों को जरूर ध्यान देना चाहिए कि अब जरूरत टैक्स ढांचे को न्यायपूर्ण बनाने की है। आईएमएफ की ये चेतावनी भी अहम है कि अगर कर ढांचे को न्याय पूर्ण नहीं बनाया गया, तो सामाजिक अशांति भड़क सकती है। तो उसने नुस्खा दिया है कि अब जरूरत निम्न और मध्य आय वर्ग के लोगों पर कर्ज का बोझ घटाने और उसकी भरपाई धनी लोगों पर टैक्स बढ़ा कर करने की है। ये बात ध्यान में रखने की है कि आईएमएफ दुनिया भर के देशों को कर्ज उपलब्ध कराता है। कर्ज देने के साथ आम तौर पर वह ऐसी शर्तें थोपता रहा है, जिन्हें धनी तबकों और धनी देशों के हित में माना जाता है। लेकिन कोरोना महामारी के बाद पैदा हुए हालात में उसने अपनी सोच बदली है। अब उसने बढ़ी आर्थिक गैर- बराबरी का जिक्र करते हुए ध्यान दिलाया है कि कोरोना महामारी के कारण डिजिटल सेवाओं का उपयोग बढ़ गया है। इसका बुरा असर तकनीकी रूप से अकुशल कर्मियों पर पड़ेगा। इस वजह से बेरोजगारी बढ़ेगी।

इसका असर अलग- अलग देशों में ध्रुवीकरण बढ़ने, सरकार के प्रति भरोसा घटने और सामाजिक अशांति की प्रवृत्तियां पैदा होने के रूप में सामने आ सकता है। इसलिए जरूरी है कि समय रहते सरकारें जागें। इस सिलसिले में ये काबिल- ए- जिक्र है कि अमेरिका और यूरोप में हुए हाल के जनमत सर्वक्षणों में धनी लोगों पर टैक्स बढ़ाने के सुझाव के लिए समर्थन में भारी इजाफा हुआ है। लोगों की तरफ से स्वास्थ्य व्यवस्था, शिक्षा और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की मांग तेजी से उठ रही है। इसका असर भी दिखा है। मसलन, हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दो ट्रिलियन डॉलर के इन्फ्रास्ट्रक्चर पैकेज का एलान किया। साथ ही उन्होंने धनी तबकों पर टैक्स बढ़ाने की योजना भी पेश की है। न्यूजीलैंड में ऐसा कदम पहले ही उठा लिया गया है। वहां न्यूनतम वेतन बढ़ा कर 20 डॉलर प्रति घंटे कर दिया गया है। अति धनी लोगों के लिए इनकम टैक्स की दर बढ़ा कर 39 फीसदी कर दी गई है। ब्रिटिश सरकार ने भी निजी और इनकम टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स की दरों में इजाफे की योजना घोषित की है। क्या यह हैरतअंगेज नहीं है कि यह वैश्विक रूझान भारत में चर्चा में भी नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आईएमएफ ने जो खतरे बताए हैं, वो भारत के लिए नहीं हैं।


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