सम्पादकीय

उन्हें महंगाई और बेरोजगारी से प्यार है

Subhi
11 Sep 2022 5:39 AM GMT
उन्हें महंगाई और बेरोजगारी से प्यार है
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पिछले रविवार को कांग्रेस पार्टी ने बेरोजगारी और महंगाई के खिलाफ ‘हल्ला बोल’ रैली की। ऐसा माना जाता है कि बेरोजगारी और महंगाई से हर कोई आहत है और यह भी कि हर कोई बेरोजगारी और महंगाई को कम करने के लिए दृढ़संकल्प है।

पी. चिदंबरम; पिछले रविवार को कांग्रेस पार्टी ने बेरोजगारी और महंगाई के खिलाफ 'हल्ला बोल' रैली की। ऐसा माना जाता है कि बेरोजगारी और महंगाई से हर कोई आहत है और यह भी कि हर कोई बेरोजगारी और महंगाई को कम करने के लिए दृढ़संकल्प है। खेद है कि मुझे इन व्यापक रूप से अपनाए गए (गलत) विश्वासों की हवा निकालनी पड़ रही है। आबादी का एक वर्ग और- अपनी सांस रोके रखिए- सरकार के कुछ हिस्से ऐसे हैं, जो बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई से खुश हैं और वे बेरोजगारी और मुद्रास्फीति के झंडे को ऊंचा रखने के लिए वह सब कुछ गुप्त रूप से करेंगे, जो करना संभव है। आइए, बात शुरू करते हैं कि 'बेरोजगारी किसे पसंद है?'

व्यापार को बेरोजगारी अच्छी लगती है। क्योंकि, नौकरियां कम हैं और उन्हें चाहने वालों की तादाद ज्यादा है, इसलिए बढ़ती बेरोजगारी में नौकरी देने वालों के लिए सौदेबाजी करना आसान रहता है। नतीजतन, मेहनताना कम देना पड़ता है। वेतन वृद्धि नगण्य होती है।

उदाहरण के लिए, मुद्रास्फीति की दर अधिक होने के बावजूद वर्ष 2021-22 में कृषि मजदूरी में तीन प्रतिशत से भी कम की वृद्धि हुई। वर्ष 2019 में भारत में एक कृषक परिवार की औसत मासिक आय 10,213 रुपए थी (स्रोत: ईएस 2021-22) जो भोजन, आश्रय, कपड़े, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, अवकाश के लिए परिवार के चार-पांच सदस्यों के लिए शायद ही पर्याप्त हो।

चूंकि नौकरी-पेशा लोगों या यहां तक कि स्वरोजगार करने वालों की सौदेबाजी की शक्ति कमजोर है, इसलिए परिवार की औसत आय में मामूली वृद्धि होती है। कम आर्थिक वृद्धि या मंदी के दौर में औसत परिवार की स्थिति और खराब हो जाती है।

सरकारी भर्ती निकायों और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को बेरोजगारी अच्छी लगती है। जब कुछ सौ निम्न-श्रेणी की रिक्तियों के लिए स्नातक और स्नातकोत्तर सहित हजारों आवेदक होते हैं, तो नियुक्ति करने वाले अधिकारियों को भारी शक्ति और विवेक प्राप्त होता है। दलाल फलते-फूलते हैं, पैसा हाथ बदलता है, घोटाले होते हैं।

नौकरी चाहने वालों की संख्या चूंकि नौकरियों से अधिक है- निजी, सार्वजनिक और सरकारी क्षेत्रों में नौकरियों में अस्थायीकरण और अनौपचारीकरण बढ़ रहा है। श्रम कल्याण कानूनों को दरकिनार कर दिया गया है। मजदूर संगठन के आंदोलन काफी कमजोर पड़ गए हैं।

आपराधिक गठबंधनों को भी बेरोजगारी पसंद है। मादक पदार्थों की तस्करी, अवैध शराब व्यापार, अवैध सट्टेबाजी और जुआ, मानव तस्करी और इसी तरह की अवैध गतिविधियों के लिए लोगों की भर्ती करने का यह एक बड़ा अच्छा अवसर होता है। आइए देखते हैं कि 'महंगाई किसे पसंद है?'

राजस्व विभाग और कर संग्रहकर्ता महंगाई से प्यार करते हैं। महीने-दर-महीने, कर संग्रहकर्ता कर संग्रह में एक 'नई उच्चता'दर्ज करते हैं, उदाहरण के लिए जीएसटी संग्रह। वे कभी भी मुद्रास्फीति-समायोजित संख्या को दर्ज नहीं करते हैं।

अगस्त, 2022 में, जीएसटी संग्रह 1,43,612 करोड़ रुपए था (अगस्त 2021 में यह 1,12,020 करोड़ रुपए था), लेकिन पिछले बारह महीनों में औसत मुद्रास्फीति के लिए समायोजित, जीएसटी प्राप्तियों का वास्तविक मूल्य केवल 1,33,559 करोड़ रुपए था। यथामूल्य करों के मामले में, कर दरों को स्थिर रखते हुए भी, कर संग्रहकर्ता एक बोनस प्राप्त कर सकता है। बजट निमार्ताओं को महंगाई पसंद आती है।

बजट दस्तावेजों में संख्या मौजूदा कीमतों में होती है। आबंटन मौजूदा कीमतों में होते हैं। इसलिए, बजट निर्माता दावा कर सकता है कि उसने पिछले वर्ष की तुलना में वर्तमान वर्ष में अधिक धन आबंटित किया है। मगर कुछ नागरिक इसे मुद्रास्फीति समायोजन के आधार पर देखेंगे, तो हकीकत समझ आएगी।

मसलन, मुद्रास्फीति समायोजन के आधार पर देखें तो वर्ष 2022-23 के बजट में रक्षा, उर्वरक, खाद्य, कृषि, ऊर्जा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और शहरी विकास के लिए आबंटन वर्ष 2021-22 के संशोधित अनुमानों से कम था।

सरकारी ऋण प्रबंधकों को मुद्रास्फीति पसंद है। चूंकि कर्ज उधार लिया जाता है और मौजूदा कीमतों में चुकाया जाता है, इसलिए मुद्रास्फीति की दर कर्ज के मूल्य को कम करती है। यानी उधार लेने वाला वास्तव में उससे कम भुगतान करता है, जो उसने उधार लिया था।

उपरोक्त के आधार पर ही, गौरतलब है कि वित्तमंत्री ने कहा कि महंगाई उनके लिए लाल अक्षरों में लिखी प्राथमिकता वाली चिंता नहीं है! विक्रेताओं को मुद्रास्फीति पसंद है। न्यूनतम खुदरा मूल्य में काफी वृद्धि हुई है, भले ही इनपुट लागत में मामूली वृद्धि हुई हो।

विशेष रूप से आवश्यक वस्तुओं के मामले में यह बात लागू होती है। मसलन, हाल ही में सरकारी और निजी डेयरियों द्वारा पूरे भारत में दूध की कीमतों में वृद्धि की गई थी।

निर्यातकों को महंगाई पसंद है। निर्यातक को निर्यात में कीमत के रूप में प्रत्येक डालर के लिए अधिक रुपए मिलते हैं। बेशक, आयात-गहन निर्यात के मामले में, अप्रत्याशित लाभ कम होगा।

उधार देने वालों को मुद्रास्फीति पसंद है। दरअसल, यह ब्याज दरों को बढ़ाने का एक अवसर होता है, भले ही पैसे की लागत में वृद्धि न हुई हो। व्यापार, विशेष रूप से बड़े निगम, एकाधिकार और कुलीन वर्ग मुद्रास्फीति पसंद करते हैं।

इससे उन्हें अधिक मूल्य निर्धारित करने की शक्ति प्राप्त होती है, खासकर मूल्य-असंवेदनशील वस्तुओं और सेवाओं के मामले में। उदाहरण के लिए, अगर आपको कल दिल्ली से चेन्नई के लिए उड़ान भरनी है, तो आपके पास यात्रा की श्रेणी के आधार पर पचास हजार रुपए तक खर्च करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

'डायनेमिक प्राइसिंग' की सुविधा ने एयरलाइंस, उबर और ओला तथा राज्य के स्वामित्व वाली रेलवे को समृद्ध किया है। अगर आपको दावे पर संदेह है, तो कृपया वर्ष 2021-22 के लिए निजी कंपनियों के 'लाभ और लाभ' के बयान और चालू वर्ष के तिमाही विवरण देखें।

ठेकेदारों को महंगाई पसंद है। इसमें पुराने अनुमानों को संशोधित किया जा सकता है। कीमतों में बढ़ोतरी को आसानी से उचित ठहराया जा सकता है। नए ठेकों के मूल्य की बोलियां बढ़ाई जा सकती हैं।

संपादकीय लेखकों को बेरोजगारी और महंगाई पसंद आती है। अगर कोई संपादकीय लेखक नए घोड़े या गधे को कोड़े मारने के बारे में सोचने को लेकर बहुत आलसी है, तो वह बेरोजगारी या मुद्रास्फीति पर एक पुराना संपादकीय ले सकता है और पैराग्राफ को फिर से व्यवस्थित कर सकता है। कोई भी हाथ की सफाई पर ध्यान नहीं देगा, क्योंकि कोई भी संपादकीय नहीं पढ़ता है।

और आखिरकार, सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल बेरोजगारी और मुद्रास्फीति से प्यार करते हैं। विपक्ष के हाथों में, यह शासकों को पीटने के लिए एक उपयोगी लाठी है। नारा होगा 'मोदी है, तो महंगाई है'और 'मोदी है, तो बेरोजगारी है'! सत्ता पक्ष पलटेगा और कहेगा कि 'मेरी बेरोजगारी और महंगाई तुमसे बेहतर है!'एक दिन ऐसा आ सकता है, जब हर कोई बेरोजगारी और महंगाई से प्यार करेगा।


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