सम्पादकीय

हरियाणा की ये महा-पंचायतें

Triveni
13 July 2021 4:00 AM GMT
हरियाणा की ये महा-पंचायतें
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देश में अब हिंदुत्व की पैरोकार पार्टी की एक तरह के ऐसी सत्ता है, जिसे फिलहाल कोई चुनौती नहीं है।

देश में अब हिंदुत्व की पैरोकार पार्टी की एक तरह के ऐसी सत्ता है, जिसे फिलहाल कोई चुनौती नहीं है। बहुत से दूसरे राज्यों की तरह हरियाणा में भी वही पार्टी सत्ता में है। बीते सात साल में इस पार्टी की सरकारों की चाहे कोई उपलब्धि हो या ना हो, यह तो साफ है कि उन्होंने हिंदुत्व के एंजेडे को लागू करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। तो जो बात एक समय विचारों में थी (जिसकी वजह से देश के बहुसंख्यक समुदाय में अल्पसंख्यकों के कथित तुष्टिकरण की शिकायत बनी रहती थी) वह अब व्यवहार में उतर चुकी है।

अल्पसंख्यक- खासकर मुसलमान आज हर तरह से मुख्यधारा से बाहर कर दिए गए हैँ। इसीलिए अब यह समझना मुश्किल है कि आखिर ऐसी महा-पंचायतें क्यों होती हैं, जिनमें मुसलमानों का भय दिखाय जाता है? खासकर ऐसी महा-पंचायतों का हरियाणा में सिलसिला चल रहा है। अभी तक कम से कम ऐसी दो महापंचायतें हो चुकी हैं।
पहली 30 मई को नूह में हुई थी और दूसरी चार जुलाई को पटौदी में। इन दोनों इलाके में हरियाणा के बाकी हिस्सों के मुकाबले मुस्लिम आबादी ज्यादा है। नूह तो मेवात इलाके का हिस्सा है, जो हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ है। दोनों महापंचायतों में कई हिंदुत्ववादी संगठनों के सदस्यों ने भाग लिया और विशेष रूप से मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे भाषण दिए। भाषण देने वालों में हरियाणा में भाजपा के प्रवक्ता सूरज पाल अम्मु भी शामिल हैं। नूह की महा पंचायत में 16 मई को नूह में कुछ लोगों द्बारा पीट पीट कर मारे गए जिम प्रशिक्षक आसिफ की हत्या के आरोपियों के समर्थन में भाषण दिए गए।
Haryana nuh pataudi mahapanchayats पटौदी वाली महा पंचायत में "लव-जिहाद", "बाजार-जिहाद", "जमीन-जिहाद" जैसे शब्दों का इस्तेमाल हुआ। बाकी भड़काऊ बयानों की कोई कमी नहीं रही। ऐसे बयान आज निर्भय होकर दिए जा सकते हैं और उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती, इसी से जाना जा सकता है कि आज असल स्थिति क्या है। गौरतलब है कि नूह और पटौदी दोनों ही जगह पुलिस ने इन भाषणों पर कोई कार्रवाई नहीं की है। तो आखिर ऐसे आयोजनों का मकसद क्या है? क्या सत्ताधारी दल को शांति से एलर्जी है या वह मानती है कि ऐसे भड़काऊ माहौल ही उसकी सत्ता का आधार हैं? क्या वह इसके संभावित भयानक नतीजों से नावाकिफ है? ये तमाम सवाल उठते हैँ, जिसका जवाब क्या है, कहना कठिन है।


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