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अमेजन कंपनी ने भारत में लगभग साढ़े आठ हजार करोड़ कानूनी व्यय के मद में खर्च किया
आज सबसे बड़ी समस्या यही है कि सार्वजनिक जीवन में विश्वास की कमी हो गई है। ये माहौल बनाने में चारों तरफ से आने वाली भ्रष्टाचार शिकायतों की भी बड़ी भूमिका है। चूंकि ये शिकायतें अब पारदर्शी जांच के दायरे में नहीं लाई जातीं, इसलिए विश्वास का संकट गहराता जाता है। amazon company legal fees
अमेजन कंपनी ने भारत में लगभग साढ़े आठ हजार करोड़ कानूनी व्यय के मद में खर्च किया। ये जानकारी सामने आने के बाद ये सवाल सहज ही उठा है कि आखिर ये खर्च कहां हुआ और इस रकम का भुगतान किसे किया गया? अगर कंपनी इस ब्योरे के साथ कानूनी व्यय की बात बताती, तो लोग खुद यह परखने की स्थिति में होते कि उनमें कितना खर्च तार्किक है, और कितना संदिग्ध। संदेह का सवाल इसलिए उठा है कि अक्सर बड़ी कंपनियां सरकारी नीतियों को अपने हित में प्रभावित करने के लिए लॉबिंग (या रिश्वत देने में) जो खर्च करती हैं, उसे वे एक कानूनी व्यय की अस्पष्ट श्रेणी में दिखा देती हैँ। इसलिए ये मांग वाजिब है कि या तो अमेजन कंपनी पूरे भुगतान का ब्योरा खुद जारी करे या फिर इसे सामने लाने के लिए निष्पक्ष जांच कराई जाए। ऐसी जांच तभी संभव है, जब ऐसे जजों की कमेटी बने, जिन पर सभी पक्षों को भरोसा हो।
आज सबसे बड़ी समस्या यही है कि सार्वजनिक जीवन में विश्वास की कमी हो गई है। ये माहौल बनाने में चारों तरफ से आने वाली भ्रष्टाचार शिकायतों की भी बड़ी भूमिका है। चूंकि ये शिकायतें अब पारदर्शी जांच के दायरे में नहीं लाई जातीं, इसलिए विश्वास का संकट गहराता जाता है। कथित भ्रष्टाचार का एक मामला बिहार में सामने आया है। हर घर नल का जल योजना बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षी सात निश्चय योजनाओं में से एक है। इन सभी योजनाओं को मुद्दा बनाकर सत्तारूढ़ जनता दल यू ने पिछला विधानसभा चुनाव लड़ा था। लगभग पांच साल पहले शुरू हुई इस योजना के तहत प्रदेश के करीब एक लाख से अधिक पंचायत वार्डों में हर घर तक पाइपलाइन के जरिए पीने का पानी पहुंचाने का लक्ष्य बनाया गया था। अब एक ताजा रिपोर्ट से सामने आया है कि इस योजना के तहत राज्य के उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद की बहू पूजा कुमारी, उनके साले प्रदीप कुमार भगत और अन्य करीबियों को नल जल योजना में 53 करोड़ का ठेका दिया गया। तारकिशोर प्रसाद ने माना है कि ये ठेके उनके रिश्तेदारों को मिले हैं, लेकिन उनकी सफाई है कि ये ठेके तब दिए गए जब वे विधायक थे। क्या इस सफाई से सत्ता के करीब लोगों के लाभान्वित होने की बात खत्म हो जाती है? जाहिर है, ऐसा नहीं है। तो यह एक और ऐसा मामला है, जिसने भरोसे के संकट को और गंभीर बनाया है।
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