सम्पादकीय

हर कहीं टक्कर है

Subhi
15 May 2022 4:57 AM GMT
हर कहीं टक्कर है
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जब-जब बिल गेट्स किसी चैनल पर दिखाई देते हैं, कोरोना की नई लहर का डर सताने लगता है। एक शाम बिल गेट्स एक अंग्रेजी चैनल पर भारत की ‘कोरोना फाइट’ की तारीफ कर देते हैं।

सुधीश पचौरी; जब-जब बिल गेट्स किसी चैनल पर दिखाई देते हैं, कोरोना की नई लहर का डर सताने लगता है। एक शाम बिल गेट्स एक अंग्रेजी चैनल पर भारत की 'कोरोना फाइट' की तारीफ कर देते हैं। 'कोरोना फाइट' में वे भारत को दस में से आठ नंबर देते हैं और अपनी नई किताब 'हाउ टू प्रीवेंट नेक्स्ट पेंडेमिक' का प्रचार करके निकल जाते हैं। एंकर धन्य होता है और फिर दो लात 'लाबी' पर लगाने लगता है कि अब 'कोरोना मौतों' के बारे में 'लाबी' क्या कहेगी?

फिर एक दिन जब शाहीनबाग की भीड़ बुलडोजर का विरोध करती है, तो वह चुपके से लौट जाता है और बुलडोजर का रुतबा खत्म हो जाता है। एमसीडी को कौन समझाए कि 'अति सर्वत्र वर्जयेत!' मगर अगले दिन चार बड़ी खबरें दर्शकों को हिलाने लगती हैं : काशी में ज्ञानवापी के सर्वे की मांग, मथुरा में मस्जिद के सर्वे की मांग, ताजमहल के बाईस कमरों के तालों को खोलने की मांग और दिल्ली की कुतुब मीनार के आगे हनुमान चालीसा का पाठ और उसका नाम विष्णु स्तंभ करने की मांग… और अकबर रोड, तुगलक रोड, औरंगजेब रोड का नाम बदलने की मांगें…

फिर एक रोज अदालत 'ताजमहल के बाईस कमरों के ताले खोलने' की मांग को खारिज कर देती है और याचिकाकर्ता को सख्त स्वर में समझाती है कि पीआइएल का दुरुपयोग न करे…। ताजमहल के बारे में कुछ पढ़े-लिखे… कल कोई जजों के चैंबरों के ताले खुलवाने के लिए कहेगा… इसी क्रम में अदालत ने मथुरा अदालत से कहा कि 'कृष्ण जन्म भूमि विवाद' से जुड़े सभी मामलों को चार महीने में निपटाएं और फिर राज्य अदालत ने ज्ञानवापी के अवरुद्ध किए गए वीडियो सर्वे को सत्रह अप्रैल तक पूरा करने का आदेश देकर विवाद को विराम दिया।

मगर तुरंत एक नए किस्म की हाय हाय शुरू होती दिखी! सर्वे के आदेश के जवाब में 'एआइएमआइएम' के ओवैसी ने एक चैनल पर गुस्से में बोला, जिसे एक चैनल ने बार-बार बजाया : 'जिस तरह बाबरी मस्जिद को छीना गया, अब फिर से वही होने जा रहा है। मैं एक मस्जिद खो चुका हूं, दूसरी के लिए तैयार नहीं हूं… कोर्ट को कानून सामने रख कर फैसला देना होगा। आप कानून का अनादर कर रहे हैं। यह अदालत का आदेश गलत है। सुप्रीम कोर्ट जाएंगे, बताएंगे कि कानून का हनन हो रहा है…'

और लीजिए, शुक्रवार की सुबह ज्ञानवापी मस्जिद के वकील सर्वे के आदेश को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाते हैं, लेकिन वह सर्वे को नहीं रोकता। ज्ञानवापी में ऐसा क्या है, जिसे कुछ लोग छिपाना चाहते हैं, यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।

फिर एक दिन सरकार सुप्रीम कोर्ट से कह देती है कि वह स्वयं 'देशद्रोह कानून' को सुधारना चाहती है। समय चाहिए… अदालत कानून को रद्द नहीं करती और सरकार को संशोधन का समय दे देती है। सरकार की ठुकाई पर जो लाबी खुश हो रही थी अब रोती दिखती है।

टीवी की बहसों में कई वक्ता-प्रवक्ता आजकल धमकी की भाषा का इस्तेमाल करते हैं और अगर एंकर उनको खामोश करे तो एंकर को ही ठोकने लगते हैं। कई बार एंकरों को उन्हें बाहर का दरवाजा दिखाना पड़ता है।

इस सप्ताह का सबसे बड़ा राग रहा 'फोबिया राग' : एक एंकर ने 'इस्लाम से डर' (इस्लामोफोबिया) को समझाया तो दो अंग्रेजी एंकरों ने 'हिंदू से डर' (हिंदू फोबिया) के बारे में बताया। उदाहरण बनी कश्मीर के बड़गाम में पुनर्वासित कश्मीरी पंडित राहुल भट की नृशंस हत्या।

उससे पूछा, 'तेरा नाम क्या है' और जैसे ही उसने कहा, 'राहुल भट', उसको नजदीक से गोली मार दी! यह थी 'टारगेटेड हत्या'! इसके पीछे है 'हिंदू फोबिया' और आतंकियों का खुला ऐलान कि कश्मीर से हिदुओं को साफ करो। शुक्रवार को एक चैनल खबर देता है कि उमर अब्दुल्ला ने इस हत्या की निंदा की। चलिए, देर आयद, दुरुस्त आयद।

मगर अब किसी के मारे जाने पर किसी का रोना किसी को नहीं रुलाता! सब दूसरों के डरों से डरते हुए दूसरों को डराने की जुगत में रहते हैं। यह डर से डर का खुला विनिमय है! अब तक बोली की गोली चलती थी, अब गोली ही बोली है।

एक बहस में एक हिंदू नेता कहता है अयोध्या, मथुरा, काशी- तीन ले लो, बाकी छोड़ दो! उसी बहस में एक पैनलिस्ट कहता है, तीन ही क्यों, उन्होंने चौवालीस हजार मंदिर तोड़े हैं, चौवालीस हजार ही वापस चाहिए… मंदिर मस्जिद पर कई बहस करने वाले कहने लगते हैं कि यह सब महंगाई, बेरोजगारी से ध्यान हटाने की भाजपा की तिकड़म है, लेकिन जैसे ही मंदिर-मस्जिद राग छिड़ता है, सब मंदिर मस्जिद करने लगते हैं। जारी है एक धर्मयुद्ध!


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