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बिजली है शक्ति, इसे व्यर्थ न गंवाओ, जितनी जरूरत हो, उतनी जलाओ
आलोक जोशी,
बिजली है शक्ति, इसे व्यर्थ न गंवाओ, जितनी जरूरत हो, उतनी जलाओ! यह नारा हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। मगर इस वक्त अचानक सबको यह फिर याद आ गया है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर लोगों से अपील की है कि 'एकजुट होकर परिस्थितियों को बेहतर करने में सरकार का साथ दें। अपने निवास या कार्यक्षेत्र के गैर-जरूरी बिजली उपकरणों को बंद रखें। अपनी प्राथमिकताएं तय कर बिजली का उपयोग जरूरत के मुताबिक करें।' अशोक गहलोत अकेले नहीं हैं, जो बिजली की कमी से चिंतित हैं। उनके राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी पहले ही फेसबुक पर लिख चुके हैं कि देश में गंभीर बिजली संकट चल रहा है और अनेक राज्यों में लोग आठ-आठ घंटे की बिजली कटौती झेल रहे हैं। दिल्ली के बिजली मंत्री सत्येंद्र जैन तो यहां तक चेतावनी दे चुके हैं कि अस्पतालों और मेट्रो तक की बिजली आपूर्ति में कटौती की नौबत आ सकती है।
चिंता की बात यह है कि बिजली संकट पहली बार नहीं आया है। सात महीने पहले अक्तूबर में भी करीब-करीब यही हाल था। देश के बिजली घरों में कोयले का स्टॉक खत्म होने की नौबत थी और बिजली की कमी देश के बड़े हिस्से में लोगों को परेशान कर रही थी। अब संकट और गंभीर हो रहा है, क्योंकि अप्रैल में ही गरमी का पारा जून वाले रिकॉर्ड को तोड़ता दिखा। इससे मुकाबले के लिए पंखे, कूलर और एसी का इस्तेमाल तेज हो रहा है, और बिजली की मांग में भी अचानक उछाल आया है।
संकट की दूसरी वजह है, कोयले की कमी। और, कोयले या बिजली की कमी से ज्यादा यह समस्या इंतजाम या दूरंदेशी के अभाव का नतीजा दिखती है। दसियों साल से यह बात कही जाती रही है कि भारत में जितनी जरूरत है, उससे बहुत कम बिजली बनती है, इसलिए बिजली की बचत जरूरी है। लेकिन अब तस्वीर उलट चुकी है। केंद्रीय बिजली मंत्री आर के सिंह ने मार्च में संसद में दावा किया था कि भारत में बिजली का संकट नहीं हो सकता है, क्योंकि हम अपनी जरूरत से कहीं ज्यादा बिजली बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष 2020-21 में देश में बिजली की पीक डिमांड, यानी जिस दिन सबसे ज्यादा बिजली की जरूरत पड़ी, वह थी 203 गीगावाट। और इस समय देश की कुल बिजली उत्पादन क्षमता है 39,9417 मेगावाट, यानी लगभग 399 गीगावाट। तो फिर क्या वजह है कि देश के आधा दर्जन राज्यों में बिजली का संकट गहराता दिख रहा है? सबसे बुरा हाल राजस्थान का है, जहां 182 करोड़ यूनिट की मांग के सामने करीब 19 करोड़ यूनिट की कमी पड़ रही है। हरियाणा में 108.94 करोड़ यूनिट के सामने नौ करोड़ यूनिट की कमी, उत्तर प्रदेश में 295 करोड़ यूनिट की मांग पर 6.5 करोड़ यूनिट की किल्लत और मध्य प्रदेश में 190 करोड़ के मुकाबले 5.5 करोड़ यूनिट की कमी है। झारखंड में तो मांग 21.67 करोड़ यूनिट होने के बाद भी 4.5 करोड़ यूनिट की कमी है। उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू कश्मीर और लद्दाख भी बिजली की कमी का सामना कर रहे हैं। पिछले एक हफ्ते में ही 62.3 करोड़ यूनिट बिजली की कमी पड़ चुकी है, जबकि मार्च के पूरे महीने में बिजली की कमी जोड़कर भी यहां नहीं पहुंचती।
आखिर इस किल्लत की वजह क्या है? इसके अलग-अलग जवाब हैं। केंद्रीय बिजली मंत्री का कहना है कि संकट के लिए राज्य सरकारें ही जिम्मेदार हैं। वही नहीं, केंद्रीय बिजली सचिव आलोक कुमार ने भी कहा कि केंद्र के खाते में चार से पांच हजार मेगावाट बिजली उपलब्ध थी, जो राज्यों की मांग पर दी जा सकती थी, लेकिन कहीं से कोई मांग नहीं आई। राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं या नहीं, इस पर विवाद हो सकता है, लेकिन यह बात सच है कि बिजली की कमी या कोयले की कमी के पीछे असली कारण पैसे की कमी और इंतजाम की कमी है।
भारत में बिजली उत्पादन की जिस क्षमता का दावा किया जा रहा है, उसका 53 प्रतिशत हिस्सा कोयले से बनने वाली बिजली का है। भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा कोयला भंडार है, लेकिन देश के बहुत से बिजलीघर विदेशों से कोयला खरीदकर इस्तेमाल करते हैं। इसकी दो वजहें हैं। एक तो यह कि भारत के खदानों से निकलनेवाले कोयले की गुणवत्ता कमतर है और दूसरी वजह यह कि देश के दूरदराज के इलाकों में कोयला पहुंचाने का खर्च आयातित कोयले की तुलना में ज्यादा है। पहले कोरोना और अब यूक्रेन संकट के कारण दुनिया भर के बाजारों में कोयले के दाम काफी चढ़ गए हैं, इसलिए इन बिजलीघरों के सामने मुश्किल खड़ी हो गई है। वे विदेश से महंगा कोयला खरीदकर पुराने भाव पर बिजली बेचना नहीं चाहते, तो अब वे कोल इंडिया से कोयला चाहते हैं। कोयले का बड़ा भंडार होने के बावजूद कोल इंडिया तुरंत यह मांग पूरी नहीं कर सकती, क्योंकि खदान से कोयला निकालने और उसे मालगाड़ी में लादकर बिजलीघर तक पहुंचाने में समय भी लगता है और पैसा भी। अगर पहले से तैयारी की गई होती, तो शायद हालात इतने बुरे नहीं होते।
Rani Sahu
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