सम्पादकीय

महंगाई या अनाज की कमी नहीं, कुछ और है दुनिया में भुखमरी के शाश्वत होने का कारण

Gulabi Jagat
22 May 2022 7:16 AM GMT
महंगाई या अनाज की कमी नहीं, कुछ और है दुनिया में भुखमरी के शाश्वत होने का कारण
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दुनिया में भुखमरी
अनिमेष मुखर्जी |
महाभारत की एक कथा हम सबने सुनी है, द्रोणाचार्य के पास पैसा नहीं था. इसलिए, उनकी पत्नी ने उनके पुत्र अश्वत्थामा को दूध के नाम पर पानी में आटा घोलकर दिया. द्रोणाचार्य इससे आहत हुए और उन्होंने कौरवों और पांडवों को शिक्षा देनी शुरू की, लेकिन इस कहानी को थोड़ा और वास्तविक बनाते हैं. मान लें कि गरीबी इतनी थी कि आटा भी नहीं था, तो क्या होता? पिछली तमाम सदियों में दुनिया बेहद बदल गई है, लेकिन इसमें महंगाई और उसके चलते खाने-पीने की किल्लत अश्वत्थामा के रिसते घाव की तरह अब भी मौजूद है और दुनिया में इस तरह के लोग हैं जिनके नसीब में ताज़ा भोजन है ही नहीं. इस महीने भारत में महंगाई दर (Inflation Rate) रिकॉर्ड स्तर पर है. दुनिया भर में कई जगह से मंदी आने की बात कही जा रही है. श्रीलंका (Shri lanka Crisis) का हाल हम सब देख ही चुके हैं, और तो और सरकार ने राशन कार्ड की पात्रता के जो नियम बनाए हैं, उनके चलते तमाम लोगों को अनाज मिलना बंद हो जाएगा. लेकिन भोजन के अभाव का कारण मात्र महंगाई नहीं है. इसका एक बड़ा कारण भोजन की बर्बादी ( Wastage Of Food) भी है. चलिए आज इसी पर बात करते हैं.
जिंदा रहने के लिए चूहा और पैग पैग
भोजन के अभावों में पैदा हुए रचनात्मक पकवानों की अपनी स्वादिष्ट दुनिया है. उसपर किसी और दिन बात करेंगे, लेकिन अभावों से निकले कुछ अनाकर्षक विकल्पों को जानते हैं. उदाहरण के लिए भारत की मुसहर प्रजाति को देखिए. जाति प्रथा के सबसे निचले पायदान पर मौजूद इस जाति का भोजन चूहा है. वह जीव जिसे कोई अपने घर में नहीं देखना चाहता, जिसे फर्श पर चलता देखकर अभिजात्य लोग उछलकर बिस्तर पर चढ़ जाते हैं, भारत का एक समाज उसी पर ज़िंदा रहता है. खेतों से चूहा पकड़कर उसे भूनकर खा लेना कोई शौक का काम तो है नहीं. इससे भी बुरा उदाहरण फ़िलीपींस का है. फिलीपींस में गरीबों को भोजन में अक्सर पैगपैग मिलता है. बड़े-बड़े फास्टफूड रेस्त्रां रोज़ ढेर सारा भोजन फेंकते हैं. इसमें दोनों तरह का भोजन होता है, वह भी जो खराब हो रहा था और वह भी जो ग्राहक ने प्लेट या कार्डबोर्ड बॉक्स में जूठन के तौर पर छोड़ दिया.
इस भोजन को काली पन्नियों में बंद करके कूड़े के पहाड़ों पर फेंक दिया जाता है. लोग उस कूड़े में से ये पन्नियां तलाशते हैं और उसे जमा करते हैं. बीबीसी एक रिपोर्ट के मुताबिक इस जूठन के एक पैकेट की कीमत करीब 40-50 भारतीय रुपए के बराबर होती है. इस जूठन से हड्डियां वगैरह निकालकर उसे साफ़ किया जाता है और लहुसन, प्याज़ के साथ नई ग्रेवी बनाई जाती है. तैयार होने के बाद यह पैग-पैग 15-20 रुपए में प्लेट भरकर मिल जाता है. फिलीपींस की राजधानी मनीला के गरीब इलाकों में पैगपैग परोसने वाले कई लोग हैं और गरीब तबके के तमाम लोगों के लिए यह रोज़मर्रा का आहार है. हो सकता है कि हम इसे पचा भी न पाएं, लेकिन कहते हैं न कि मजबूरी हर चीज़ सिखा देती है, तो लोग इस पैग-पैग को आसानी से पचा लेते हैं.
भोजन का एक तिहाई बर्बाद होता है
आप कहें कि गरीबी और अभाव को दूर करना आसान काम नहीं होगा. सच इससे बिल्कुल उल्टा है. भोजन के उत्पादन से बड़ी समस्या भोजन की बर्बादी को रोकना है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनियाभर में रोज़ बनाए जाने वाले भोजन का एक तिहाई बर्बाद होता है. दुनिया में इतना भोजन बिना खाए ही खराब हो जाता है कि उससे 2 अरब लोगों का पेट पाला जा सके. यानि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप का पेट भरने लायक भोजन पकने के बाद बिना खाए ही बर्बाद हो जाता है. अगर आप इस बर्बादी के पीछे रेस्त्रां संस्कृति को दोष देना चाहें, तो बता दें कि इस बर्बादी में 61 प्रतिशत योगदान घरों का है. जबकि घर पर होने वाली इस बर्बादी को कम करना बेहद आसान है.
उदाहरण के लिए ब्रेड दुनिया का सबसे ज़्यादा फेंका जाने वाला भोजन है. ब्रेड और उससे मिलती-जुलती चीज़ों पर एक तारीख लिखी रहती है. बड़ी संख्या में लोग मानते हैं कि बेस्ट बिफ़ोर का मतलब है कि इसके बाद इसे खाया नहीं जा सकता. जबकि पैकेट पर लिखे बेस्ट बिफ़ोर का मतलब होता है कि इस तारीख से पहले इसकी गुणवत्ता सर्वश्रेष्ठ है. असल में यूज़ बाय की तारीख का मतलब है कि दी गई तारीख के बाद इस भोजन को न खाएं. अगर सही से स्टोर की गई हो, तो बेस्ट बिफ़ोर की तारीख के कुछ समय बाद तक वह सामग्री इस्तेमाल की जा सकती है. इसके अलावा ब्रेड के स्लाइस को फ्रीज़ करके उसे टोस्ट की तरह इस्तेमाल करने में कोई समस्या नहीं है.
बर्बाद होने वाली दूसरी चीज़ों में सबसे ऊपर दूध और आलू हैं. हर साल दुनिया में करीब 60 लाख गिलास दूध सिंक में बहा दिया जाता है. जबकि इस दूध को पनीर और दही में बदलकर इसकी शेल्फ़ लाइफ़ बढ़ाई जा सकती है. इसी तरह उबले हुए आलू को फ्रीज़ करके बहुत लंबे समय तक रखा जा सकता है. खराब होते फ़लों की प्यूरी बनाकर उसे शेक बनाने के लिए स्टोर किया जा सकता है. हरा धनिया या पुदीना सुखाकर उसका पाउडर बनाया जा सकता है, जो बहुत लंबे समय तक इस्तेमाल में आता है. ऐसा नहीं है कि ये सब कुछ नई चीज़ें हैं.
फसलें कम हो रहीं , खेती भी लोग छोड़ रहे
दुनियाभर में यह सब लंबे समय से इस्तेमाल हो रहा था. फिर ग्लोबलाइज़ेशन का दौर आया और हम सोचने लगें कि खाना बर्बाद कर सकना भी एक तरह की सम्पन्नता है. बात सही भी है कि जिस देश में आधे से ज़्यादा आबादी भूख से मर रही हो, वहां खाने की बर्बादी कर पाना एक तरह का प्रिविलेज ही कहा जाएगा. अब समस्या यह है कि आने वाले समय में भोजन का अभाव आर्थिक नहीं रह जाएगा. चीज़ें उगेंगी ही नहीं तो मिलेंगी कहां से. आज की तारीख में दुनिया की सबसे बड़ी समस्या ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज है. नेताओं की छोड़िए, इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले आम लोग तमाम तरह के मुद्दों पर चर्चा करते हैं. सदा जवान दिखने के लिए दूध की जगह बादाम के पानी को दूध के तौर पर इस्तेमाल करने पर भी खूब बात होती है, लेकिन हर तरह की बर्बादी को नज़रअंदाज़ करना एक विकल्प है. एक तो जलवायु परिवर्तन के चलते फ़सलें कम हो रही हैं ऊपर से लोग खेती करना छोड़ रहे हैं. कई तरह के फल तो इसलिए विलुप्त हो जाएंगे क्योंकि उनके पेड़ काटकर प्लॉट बनवाने का काम ज़ोर-शोर से चल रहा है. आने वाले समय में शायद हम उन चीज़ों की कमी से जूझ रहे होंगे, जिनके बारे में आज सोचना भी नहीं पड़ता है. दो दिन पहले का ही उदाहरण सुनिए. इस बार गर्मी के मौसम में मुझे सिर्फ़ एक बार फालसे चखने को मिले. जबकि 10-15 साल पहले तक हमारे यहां दिन में 3-4 फालसे वाले तो निकलते ही थे. पूछने पर पता चलता कि लगभग सारे पेड़ कटवाकर वहां प्लॉट बनवा दिए गए हैं और जो बचे खुचे हैं, वे कब तक रहेंगे पता नहीं.
हमने अभावों के भोजन और उसकी बर्बादी से बात करना शुरू किया था, इसलिए विषयांतर न करते हुए एक और निजी उदाहरण से बात खत्म करते हैं. पिछले साल कोरोना की दूसरी लहर खत्म होने के बाद मुझे और मेरे दोस्त को दिल्ली से अपने पैतृक शहर आना था. हमने तमाम सब्ज़ियां और खराब हो सकने वाले दूसरे मसाले पैक किए और उन्हें ट्रेन में साथ लेकर आए. ऐसा अमूमन होता नहीं है. हो सकता है किसी सहयात्री को यह अजीब लगा हो कि पैकेट में 200 ग्राम टमाटर, 4-6 मिर्च और लहसुन प्याज़ लेकर चलने का क्या मतलब, लेकिन बात यही है कि जब आप जानते हैं कि दुनिया में एक बड़ी आबादी पैगपैग जैसा भोजन खाकर जीवित है, तो छोटी-छोटी चीज़ें भी महत्व रखती हैं.
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