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- श्रीलंका की समस्याओं...
Written by जनसत्ता: पिछले साल श्रीलंका में जिस पैमाने पर आर्थिक संकट पैदा हुआ और व्यापक अराजकता का माहौल बना, उसकी वजह से वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को अपनी सत्ता छोड़नी पड़ी थी। उस दौरान हालात इस कदर हिंसक और जटिल हो गए थे कि उन्हें संभालना मुश्किल लग रहा था। मगर गोटबाया के सत्ता छोड़ने के बाद रानिल विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति का पद संभाला और तब उनके सामने सबसे बड़ी और प्राथमिक चुनौती यही थी कि वे देश को कैसे उस जटिल हालात से बाहर लाएं।
इसी क्रम में विक्रमसिंघे ने जो प्रयास शुरू किए, उसकी वजह से वहां हालात बेहतर हुए, लेकिन संकट के दीर्घकालिक हल के लिए ठोस नीतिगत पहल की जरूरत थी। शायद यही वजह है कि भारत के दो दिनों के अपने ताजा दौरे में उन्होंने दोनों देशों के बीच संबंधों को नए सिरे से मजबूत करने और सहयोग को नया आयाम देने के स्पष्ट संकेत दिए। गौरतलब है कि श्रीलंका के राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री की मुलाकात के बाद दोनों देशों के बीच आर्थिक गठजोड़ को विस्तार देने के लिए एक महत्त्वाकांक्षी दृष्टिपत्र अपनाने पर सहमति बनी।
फिलहाल एक आर्थिक और प्रौद्योगिकी करार पर बातचीत शुरू करने, विद्युत ग्रिड को जोड़ने का काम तेज करने, एक पेट्रोलियम पाइपलाइन की व्यावहारिकता पर अध्ययन करने के साथ-साथ दोनों पड़ोसी देशों के बीच संपर्क को मजबूत करने के लिए अन्य रास्तों पर ठोस कदम बढ़ाने की कोशिश होगी।
निश्चित रूप से यह श्रीलंका की समस्याओं का कोई समग्र हल नहीं है, लेकिन यह कहा जा सकता है कि भारत के साथ सहयोग की दिशा में बढ़े उसके कदम नई राह तलाशने की इच्छाशक्ति का संकेत देते हैं। वहीं, सहयोग के कई जरूरी बिंदुओं पर बात आगे बढ़ाने के साथ-साथ भारत ने श्रीलंका में तमिलों की आकांक्षाओं को पूरा करने और समानता, न्याय और शांति के लिए पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को बढ़ाने का भरोसा जताया।
दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में श्रीलंका का झुकाव चीन की ओर रहा और खासकर आर्थिक मामलों में उस पर निर्भरता रही। चीन ने पिछले दशक के दौरान श्रीलंका को भारी मात्रा में ऋण दिया और एक तरह से उसकी स्वनिर्भरता के पक्ष को कमजोर किया। इसका सबूत तब दिखा, जब पिछले साल श्रीलंका अपने सबसे बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा था, तब चीन ने उसकी सहायता करना जरूरी नहीं समझा।
कहा जा सकता है कि शायद तभी श्रीलंका को वास्तविकता का अहसास हुआ। अब रानिल विक्रमसिंघे के भारत दौरे में साझेदारी को नया आयाम देने के लिए जिन मुद्दों पर सहयोग को बढ़ाने और मजबूत करने पर सहमति बनी है, उससे श्रीलंका को लाभ होगा, लेकिन यह भारत के लिहाज से भी कई स्तरों पर सकारात्मक स्थिति है। यों भी बीते कुछ वर्षों में भारत ‘पड़ोस प्रथम’ की नीति पर ठोस तरीके से काम कर रहा है।
फिर कूटनीति के मोर्चे पर देखा जाए तो भारत और श्रीलंका, दोनों ही एक दूसरे के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण हैं। साथ ही सामरिक और व्यापारिक दृष्टि से भी हिंद महासागर भारत के लिए एक संवेदनशील क्षेत्र है। इस लिहाज से भारत के लिए श्रीलंका की अहमियत समझी जा सकती है। इसलिए अगर दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूती देने के लिए ठोस नीतिगत रास्ते तैयार होते हैं, तो इससे एक ओर जहां श्रीलंका के लिए फिर से संभलने का रास्ता तैयार होगा, वहीं भारत का भी सुरक्षा घेरा और मजबूत होगा।