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सम्पादकीय
...कुछ किए बिना ही जय-जयकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती'
Gulabi Jagat
20 March 2022 10:08 AM GMT
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एक ऐसी गरीब आदिवासी लड़की के बारे में कल्पना कीजिए, जो घर के बाहर झूले पर बैठी है
एन. रघुरामन का कॉलम:'
एक ऐसी गरीब आदिवासी लड़की के बारे में कल्पना कीजिए, जो घर के बाहर झूले पर बैठी है, और ऊपर-नीचे झूलते हुए अपनी जनजातीय भाषा में गीत गा रही है। गीत का अगर अनुवाद करें तो वो कुछ इस तरह से होगा- 'मैं बहुत समय पहले घर से दूर चली आई थी। झूले को और ऊंचा धकेलो, आकाश की ओर। मैं इतना ऊंचे उठ जाऊं कि मुझे अपना गांव दिखलाई दे, और घर का बरामदा भी...' उस गरीब लड़की के मुंह से इस सरल किंतु दिल को छू लेने वाले गीत के बोल सुनकर हर किसी की आंखों में आंसू आ जाएंगे।
जनजाति के लोग मानते हैं कि इतनी ऊंचाई से अपने घर को देख पाना ही उनके लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि उन्हें पता नहीं कि कल कैसा होगा। अगर आप भी यह गीत सुनें तो भावनात्मक रूप से जुड़ सकते हैं और मन होगा कि इसे अपनी भाषा में अनूदित करें ताकि औरों को भी इसके बारे में बता सकें। 57 साल की प्रो. सतुप्ति प्रसन्ना श्री ने भी यही सोचा था और फिर उन्हें यह अहसास हुआ कि एक गीत को अनूदित करने भर से भाषा सहेजी नहीं जा सकेगी।
तब उन्होंने उस भाषा के लिए लिपि विकसित करने का सोचा, ताकि भाषा के साथ उसके गीतों-कहानियों को भी लुप्त होने से बचा सकें। वे यह भी चाहती थीं कि भाषा को उन आदिवासियों के रहने की जगहों के पास स्थित स्कूलों में पढ़ाया जाए। वह दुनिया की पहली ऐसी व्यक्ति बनीं, जिन्होंने 19 अल्पसंख्यक भाषाओं के लिए लिपि तैयार की और उन्हें विलुप्त होने से बचाया। इनमें से कुछ हैं- वाल्मीकि, गोंडु, कोया, कोलमी, राना, सुगली, येरुकुला, भगथा और सबसे दुर्लभ भाषा ध्रुव के साथ ही और भी अनेक।
पहाड़ों-मैदानी इलाकों की 19 जनजातियों के मौखिक-साहित्य के पृथक दस्तावेजीकरण, बाद में बोली गई भाषाओं की ध्वनियों के आधार पर उनकी वर्णमाला बनाने के लिए उन्हें अभी तक 15 अंतरराष्ट्रीय, 8 राष्ट्रीय, 16 प्रांतीय पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। लिम्का बुक में भी नाम दर्ज है। वर्ष 2020-21 में उन्हें महिलाओं के लिए भारत सरकार का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'नारी शक्ति पुरस्कार' भी मिला। उन्होंने यह पुरस्कार इस साल महिला दिवस पर राष्ट्रपति से ग्रहण किया।
वे तेलुगुभाषी आंध्रप्रदेश-तेलंगाना से यह पुरस्कार पाने वाली इकलौती महिला हैं। बीते तीन दशक से विशाखापत्तनम की प्रसन्ना श्री अराकु के पहाड़ी इलाकों में जनजातियों से संवाद करने का प्रयास कर रही हैं। शुरुआत में आदिवासी लड़कियों ने जब उनके हुलिए, कपड़ों और भाषा को पूरी तरह से अजनबी पाया तो उन्होंने उन्हें वहां से चले जाने को कहा। उन्हें लगता था कि मैदानी इलाकों से आने वाले लोग अपने साथ बीमारियां लेकर आते हैं और उनका मकसद आदिवासियों का शोषण करना होता है।
तब उन्होंने आदिवासियों की शैली की साड़ी पहनी और इस तरह उन लड़कियों से मेलजोल कायम किया। प्रो. प्रसन्ना श्री ने अनेक किताबें और थिसीस लिखी हैं। 'लुक बैक एट द लॉन्गिंग हिल्स', 'रिप्पल्स ऑन द स्टिल वॉटर', 'व्हिसपर्स विदिन' और 'शेड्स ऑफ साइलेंस' उनके कुछ संग्रहों के शीर्षक हैं।
दिलचस्प बात यह है कि उनकी कुछ कविताएं अफ्रीकी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं! अगर आप प्रसन्ना की तरह लोकप्रिय होने का सोच रहे हैं तो दूसरों के प्रति समानुभूति रखें, भावनाओं का सम्मान करें, अपनी कीमत पहचानें, जीवन का प्रयोजन तय करें और उसके लिए खुद को मजबूत बनाएं।
फंडा यह है कि यकीन मानिए, कड़ी मेहनत किए बिना आपको अपने कॅरिअर में ऊंचाई नहीं हासिल हो सकती। मैं सोहनलाल द्विवेदी की कविता की इन पंक्तियों से सहमत हूं कि '...कुछ किए बिना ही जय-जयकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।'
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