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- किसान आंदोलन की जिद के...
तीनों कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर पिछले करीब तीन महीने से कुछ किसान संगठनों का आंदोलन जारी है। यह आंदोलन एक तरह से भ्रम और झूठ की राजनीति का विषवृक्ष है। कई विपक्षी दल इसे सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ एक अवसर के रूप में देख रहे हैं। नागरिकता संशोधन कानून के समय भी विपक्ष ने ऐसा ही भ्रमजाल फैलाया था। उस समय जिस प्रकार मुसलमानों को नागरिकता छीनने और 'देश निकाले' का डर दिखाया गया था, ठीक उसी प्रकार इस बार किसानों को जमीन छीनने और कॉरपोरेट का बंधुआ मजदूर बनने का डर दिखाया जा रहा है। किसान संगठनों और विपक्ष को अन्नदाताओं को बहकाने का अवसर इसलिए मिला, क्योंकि सरकार सही समय पर किसानों को सही बात बताने में नाकाम रही। संपर्क और संवाद की कमी इस आंदोलन की उपज का एक बड़ा कारण है। जिन दो-तीन बिंदुओं पर विपक्ष को किसानों को भड़काने और भरमाने का मौका मिला, उनमें केंद्र सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी और सरकारी खरीद-व्यवस्था की समाप्ति, बड़े कॉरपोरेट घरानों द्वारा ठेके पर किसानों की जमीनें लेकर उन्हेंं हड़प लेने तथा किसानों को बंधुआ मजदूर बना लेने की आशंका और विवाद होने की स्थिति में न्यायालय जाने की विकल्पहीनता का भय खड़ा किया गया।