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By प्रीतम बनर्जी
पहली बार देश में राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति लायी गयी है. एक साल पहले प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना शुरू की गयी थी. सड़क, रेल, जलमार्ग आदि जो इंफ्रास्ट्रक्चर हैं, वे अलग-अलग मंत्रालयों के अधीन हैं, उनके बीच में सहकार बढ़ाना इस योजना का मुख्य फोकस है. वह योजना फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए है. लॉजिस्टिक पॉलिसी गति शक्ति योजना का अनुपूरक है क्योंकि विकास के लिए विभिन्न नीतियों, नियमों, केंद्र व राज्य सरकारों की इंसेंटिव योजनाओं आदि तथा डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के बीच में तालमेल और सुगमता भी जरूरी है.
लॉजिस्टिक पॉलिसी के तहत एक डिजिटल संरचना विकसित की जा रही है, जिसे यूलिप- यूनिफाइड लॉजिस्टिक इंटरफेस पोर्टल- का नाम दिया गया है. इसमें लॉजिस्टिक से संबंधित सरकारों के विभिन्न विभागों के बीच में सामंजस्य स्थापित किया जाना है. जिस प्रकार डिजिटल भुगतान के लिए यूपीआई संरचना है, उसी तरह यह यूलिप भी काम करेगा. इसके तहत स्टार्टअप कंपनियां अलग-अलग एप बना सकती हैं, जिनका इस्तेमाल लॉजिस्टिक उद्योग की कंपनियां या कार्यरत लोग कर सकते हैं.
अभी तक यह हो रहा था कि यूनिफाइड प्रक्रिया नहीं होने से केवल बड़ी लॉजिस्टिक कंपनियां ही कुछ जरूरी सुविधाएं व सेवाएं मुहैया कराती थीं. जैसे अगर आपको ट्रक की आवाजाही के बारे में पता लगाना हो, तो इस सेवा के लिए आपको बहुत अधिक मूल्य चुकाना होता था. यूलिप बनने से यह होगा कि कोई कंपनी इस सुविधा का इस्तेमाल कर सामान्य ट्रक कारोबारियों और वेयरहाउसों को भी मामूली शुल्क पर इस तरह की सेवाएं आसानी से दे सकती है.
यूलिप में वाहनों की स्थिति, आयात-निर्यात से जुड़े दस्तावेजों की जानकारी जैसी कई सुविधाएं सस्ते में उपलब्ध हो सकेंगी. इसके कई लाभ होंगे. मान लें कि कोई ट्रक सामान लेकर कहीं जा रहा है, तो वह यूलिप के जरिये यह पता लगा सकेगा कि वापसी में भी उसे ढुलाई मिल सकती है या नहीं. पांच-दस ट्रक रखने वाली कंपनी भी अपने ग्राहक को यह सुविधा दे सकेगी कि वह जान सके कि उसका सामान कहां तक पहुंचा है.
इस तरह छोटे कारोबारी भी बड़ी कंपनियों के साथ बेहतर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे. साथ ही, क्षमता में भी वृद्धि होगी. अक्सर यह पता नहीं चल पाता है कि खाली कंटेनर कहां उपलब्ध है. महामारी के दौर में यह समस्या बहुत गंभीर हो गयी थी. कुछ शिपिंग कंपनियां कंटेनर की कमी का फायदा उठाकर मुनाफा भी कमाने में लगी थीं. यूलिप प्रणाली में सभी कंटेनरों की स्थिति दर्ज रहेगी. खाली कंटेनर किस यार्ड में हैं, यह भी जाना जा सकेगा.
राज्य सरकारों के साथ तालमेल बेहतर करने के लिए राष्ट्रीय लॉजिस्टिक पॉलिसी में यह प्रावधान किया गया है कि राज्य स्तर पर भी एक समिति होगी, जो जिला स्तर तक संबंधित गतिविधियों को देखेगी. लॉजिस्टिक के मामले में राज्यों की प्रमुख भूमिका होती है. दो अहम लॉजिस्टिक गतिविधियों- सड़क यातायात ट्रैकिंग और वेयरहाउसिंग- के सारे नियम लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है. पॉलिसी के प्रावधानों और दिशा-निर्देशों को लागू करना या नहीं करना राज्य सरकारों के ऊपर है क्योंकि इन्हें अनिवार्य नहीं बनाया गया है.
इस नीति में एक सूचकांक की व्यवस्था भी है, जिसके तहत लॉजिस्टिक सुविधाओं व सेवाओं के आधार पर राज्य सरकारों की रैंकिंग की जायेगी. इस तरह मानकों का निर्धारण कर तथा उत्साहवर्धन का उपाय किया है कि अगर आप इन्हें लागू करेंगे, तो आपकी रैंकिंग अच्छी होगी, जिससे आपके यहां निवेश और कारोबार बढ़ाने में मदद मिलेगी.
केंद्र और राज्य के बीच सहकार व सामंजस्य के लिए भी व्यवस्था की गयी है. इस नीति को चार सालों की मेहनत के बाद तैयार किया गया है और इस प्रक्रिया में लॉजिस्टिक सेक्टर में सक्रिय तमाम लोगों से चर्चा की गयी है. देश की संघीय व्यवस्था को मद्देनजर रखते हुए बेहतर उपायों को इस नीति में शामिल किया गया है. जैसे-जैसे यह नीति लागू होती जायेगी और जो अनुभव सामने आयेंगे, उनके आधार पर बाद में जरूरी बदलाव भी किये जा सकेंगे.
यह नीति सफल तभी होगी, जब राज्य सरकारें उत्साह के साथ इसके प्रावधानों को अपनायेंगी. नीति में जो सुझाव और निर्देश दिये गये हैं, उन्हें लागू करना राज्यों पर निर्भर होगा. यूलिप बहुत ही ताकतवर माध्यम है. जिस प्रकार यूपीआई ने डिजिटल लेन-देन से भुगतान की पूरी व्यवस्था को बदल दिया है, वही संभावना यूलिप में है. आज छोटे दुकानदार से लेकर आम आदमी तक यूपीआई का इस्तेमाल कर रहा है.
यूलिप के तहत लॉजिस्टिक में भुगतान, दस्तावेज, सूचना तथा सरकारी विभागों के इंटरफेस जैसी तमाम सुविधाओं और सेवाओं को आसानी से पाया जा सकेगा. कुछ समय बाद हम देखेंगे कि लॉजिस्टिक के क्षेत्र में कार्यरत छोटे कारोबारी और कामगार, जैसे- ट्रक चालक, टेम्पो ड्राइवर, वेयरहाउस ऑपरेटर आदि भी इसका फायदा उठायेंगे. लॉजिस्टिक के हिसाब से देखें, तो भारत एक विशेष देश है क्योंकि जो बड़े देश या अर्थव्यवस्थाएं हैं, उनसे हमारी स्थिति अलग है. उन देशों में आर्थिक गतिविधियां कुछ खास इलाकों में सीमित हैं.
उदाहरण के लिए, चीन में समुद्र तटों के आसपास ही अधिकांश उद्योग और शहर स्थापित हैं. ब्राजील में भी यही स्थिति है. हमारे देश में अलग-अलग हिस्सों में अर्थव्यवस्था का विस्तार है. हमारी आबादी भी देशभर में बसर करती है. ऐसे में अगर हम वस्तुओं को ग्राहकों तक पहुंचाना चाहते हैं, जो अर्थव्यवस्था के विकास के लिए अनिवार्य शर्त है, तो हमें पूरे देश को जोड़ना होगा. इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक का विस्तार बहुत जरूरी है.
इसलिए राष्ट्रीय लॉजिस्टिक पॉलिसी बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है. इसके तहत जो मानक और निर्देश तैयार हुए हैं, उनके लागू होने से लॉजिस्टिक का पूरा परिदृश्य बदल जायेगा. जैसे, इसके तहत निर्धारित कंटेनरों के आकार को लें, तो वही कंटेनर ट्रक से ढोया जा सकेगा और उसे रेलगाड़ी पर भी लादा जा सकेगा. इससे समय और धन दोनों की बचत होगी. इस तरह के संरचनात्मक बदलावों को ऊपर से नहीं थोपा जा सकता है.
अगर कोई नियम बना दिया जाए और कहा जाए कि सभी को इसका पालन करना होगा, तो हंगामा मच जायेगा. वैसी नीति की सफलता भी संदिग्ध हो जाती है. हमें दिशा-निर्देशों और स्तरीय सुझावों के साथ धीरे-धीरे सुधार की ओर बढ़ना होगा. इस नीति का लक्ष्य भी क्रमिक सुधार का है. केंद्र और राज्य सरकारों के सहकार और समन्वय से यह नीति अगर कारगर होती है, तो लॉजिस्टिक के क्षेत्र में अच्छे परिणाम सामने आयेंगे. (ये लेखक के निजी विचार हैं.) (बातचीत पर आधारित)
Gulabi Jagat
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