सम्पादकीय

फिर लड़कियों के कपड़ों पर मचा बवाल, आखिर क्या है इस सोच की असली वजह?

Rani Sahu
12 Sep 2021 6:47 AM GMT
फिर लड़कियों के कपड़ों पर मचा बवाल, आखिर क्या है इस सोच की असली वजह?
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जीन्स पहनने वाली लड़कियां परिवार नहीं संभाल सकती, लड़कियों का छोटे कपड़े पहनना खुद मुसीबत को दावत देना है

स्वाति शैवाल। जीन्स पहनने वाली लड़कियां परिवार नहीं संभाल सकती, लड़कियों का छोटे कपड़े पहनना खुद मुसीबत को दावत देना है, लड़कियों के कपड़े आजकल अश्लील हो रहे हैं, लड़कियां अपने कपड़ों से पुरुषों को उकसाती हैं, आदि- आदि। ऐसे न जाने कितने ही संवाद हमारे देश में आम हैं और ज्यादातर ये जिनकी जुबान से निकलते हैं, वे खुद पॉलिसी मेकर्स यानी नीति निर्माता होते हैं, जिनसे ये अपेक्षा की जाती है कि वे एक स्वस्थ समाज के निर्माण में योगदान देंगे।

बहरहाल, ताजा वाकया मध्यप्रदेश के राजगढ़ ज़िले का है, जहां एक शासकीय हायर सेकंडरी स्कूल में विदाउट यूनिफॉर्म स्कूल आई बच्चियों पर खुद प्रिंसिपल राधेश्याम मालवीय ने ताने कसे। प्रिंसिपल के खिलाफ दर्ज एफआईआर के मुताबिक, प्रिंसिपल ने उनसे कहा कि वे 'इस तरह के कपड़े' पहनती हैं, जिससे उनकी कक्षा के लड़के बिगड़ सकते हैं। इतना ही नहीं ग़ुस्से में प्रिंसिपल ने लड़कियों को सजा स्वरूप पहने हुए कपड़े उतार देने को कहा। लड़कियां सकते में आ गईं। पुलिस ने पॉक्सो एक्ट (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्चुअल ऑफेंसेस) के अंतर्गत भी मामला दर्ज कर लिया है।
बात सिर्फ यह नहीं है कि प्रिंसिपल ने लड़कियों को यूनिफॉर्म न पहनकर आने के लिए टोका। लड़कियों द्वारा यह कहे जाने के बावजूद कि स्कूल अभी खुले हैं तो उन्होंने यूनिफॉर्म सिलने के लिए दी है। लड़कियों ने भरोसा दिलाया कि सोमवार से वे स्कूल यूनिफार्म में ही आएंगी, लेकिन प्रिंसिपल साहब को नहीं मानना था, नहीं माने। बहरहाल, साहब फरार हैं और विभाग ने उनपर जांच बैठा दी है।
कपड़ों को लेकर इतना पूर्वाग्रह क्यों?
यह सही है कि हमारे देश की संस्कृति बहुत अलग है और विदेशों से इसकी तुलना नहीं हो सकती। असल में किसी भी एक संस्कृति की तुलना दूसरी संस्कृति से नहीं हो सकती, क्योंकि सबके अपने तौर-तरीके हैं। लेकिन भोजन की ही तरह कपड़े भी किसी व्यक्ति का बहुत निजी मामला है। तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश में अब हम ग्लोबल सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं ऐसे में कपड़ों को लेकर ऐसी सोच रखना हैरत जगाता है।
अब इसका दूसरा पहलू, हमारे देश में अंडरवियर-बनियान में घर के बाहर घूमते पुरुष मर्दानगी का प्रतीक हैं। वे अश्लील नहीं कहलाते। अगर लड़कियों-औरतों के छोटे कपड़े, आदमियों-लड़कों को भड़काते हैं, उन्हें बिगाड़ते हैं तो इस लहजे से अब तक लगभग हर लड़की/औरत को बिगड़ जाना चाहिए था, अंडरवियर/ बनियान धारी या रास्ते को बाथरूम बनाते पुरुषों को देखकर। लेकिन ऐसा नहीं है।
अश्लील सिर्फ लड़कियों का परिधान होता है। तो फिर उन नवजात बच्चियों और बुर्के वाली महिलाओं का क्या जो ब्लात्कार की शिकार हो जाती हैं और उनमें से अधिकांश तो अपने घरों या आस पड़ोस में ही शिकार बनती हैं। मुश्किल यह है कि हमारे समाज ने कई सारे स्वघोषित नियम कायदे बनाये हैं जिनमें से 95 प्रतिशत नियम महिलाओं के लिए होते हैं। और इनमें से आधे का भी अगर वो पालन न करें तो सजा निश्चित है।
इस तरह की सोच की जड़ कहां है?
जब पहली बार हम घर में एक बच्चे (यानी लड़के) को यह सिखा रहे होते हैं कि वह पुरुष है और बच्ची यानी (स्त्री) को उसके सामने हेय बना रहे होते हैं, तबसे ही हम असल में कपड़ों की यह सोच उनके दिमाग मे पैदा कर रहे होते हैं। पुरुष इसी सोच के साथ बड़ा होता है कि स्त्री को कायदे में रहना चाहिए। ताकि समाज पर अच्छा असर पड़े। असल में वह यह सोच ही नहीं पाता कि समाज तो स्त्री-पुरुष दोनों के कायदे में रहने से अच्छा बनेगा। किसी एक के अच्छे होने से बात बनेगी ही नहीं। जब स्त्रियां कायदे की इस परिभाषा पर खरी नहीं उतरतीं तो पुरुष उसके लिए सजा तय करता है। यही खाप पंचायतें करती हैं, यही तालिबानी करते हैं। तो फिर फर्क कहां रह गया?
यह मान लेते हैं कि अभी हमारा समाज वैचारिक स्तर पर उतना आधुनिक नहीं हुआ कि वह कपड़ों को लेकर खुले मन से सोच सके। शायद पूरी तरह होगा भी नहीं, क्योंकि जैसा कि मैंने पहले कहा- हर संस्कृति का अपना महत्व और अपने तौर तरीके हैं। और यहां एक बात और कि तथाकथित मॉडर्न कहे जाने वाले देशों में भी लड़कियों के कपड़ों या शरीर पर भद्दे रिमार्क्स होते हैं। लेकिन फिलहाल बात हिंदुस्तान की। तो हमारे यहां जीन्स, स्कर्ट आदि जैसे आधुनिक परिधान आज की भागदौड़ में महिलाओं के लिए आरामदायक और सहज होते हैं। इसलिए बड़ी संख्या में महिलाएं इन्हें पहन रही हैं।
अब यदि कोई परिधान आपको डेकोरम या अवसर के अनूकूल नहीं लगता तो आप पहनने वाले को विनम्रतापूर्वक सलाह जरूर दे सकते हैं कि आपका परिधान इस समय या स्थिति के अनूकूल नहीं है। लेकिन आप यह दबाव नहीं बना सकते कि उसे वह परिधान पहनना ही छोड़ देना होगा। न ही आप अशिष्टता से उसे इस बात के लिए सजा देने का अधिकार रखते हैं कि उसने आपके मुताबिक कपड़े नहीं पहने।
सजना संवरना किसी महिला का अधिकार है। इससे उसको वंचित करने की बजाय शुरू से लड़के और लड़की दोनो को वैचारिक, बौद्धिक और तार्किक स्तर पर आधुनिक बनने की प्रेरणा दें, ताकि वे भी यह समझ सकें कि उन्हें कब और क्या आचरण करना है। साथ ही लड़कियों को इतना मजबूत बनाएं कि वे केवल दिखावे की ओर न जाकर अपने अधिकारों के लिए खड़ी हो सकें। तब हम उम्मीद कर सकते हैं कि समाज मे परिवर्तन आएगा।

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