सम्पादकीय

फिर शिक्षा का आसमान खुला

Rani Sahu
24 Sep 2021 7:00 PM GMT
फिर शिक्षा का आसमान खुला
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स्कूल बिन तड़पती शिक्षा को फिर इसकी वस्तुस्थिति में लाने की परिस्थितियां बन रही हैं

दिव्याहिमाचल स्कूल बिन तड़पती शिक्षा को फिर इसकी वस्तुस्थिति में लाने की परिस्थितियां बन रही हैं। अंततः हिमाचल मंत्रिमंडल की बहुप्रतीक्षित घोषणा बाहर निकली और उधर स्कूलों के माहौल में फिर से छात्रों के पांवों में खुजली शुरू हो गई। आगामी सोमवार से नौवीं से बारहवीं कक्षा के लिए स्कूल घूंघट उठाएंगे और तब हफ्ते के बीच झीनी दीवारों से बारी-बारी पहले सोम से बुधवार दसवीं व बारहवीं के छात्र पढ़ेंगे और उसके बाद गुरुवार से शनिवार तक नौवीं व ग्यारहवीं के छात्रों के लिए शिक्षा का आसमान खुलेगा। शिक्षा की दूरियां पाटने के लिए जिस मशक्कत का सामना सरकार व स्कूल शिक्षा विभाग को करना पड़ रहा है, उससे भी कहीं अधिक मनोवैज्ञानिक प्रभाव से जूझ रहे अभिभावक व शिक्षक समाज के लिए यह एक तरह से राहत भरी खबर है, क्योंकि एक बार चक्र या सत्र घूम गया तो आगे निचली कक्षाओं के लिए भी स्कूल के दरवाजे खुल जाएंगे। शिक्षा के अधीर लम्हों में शिक्षक की भूमिका निरापद नहीं रही है। वह भी शिक्षा के करीब आकर टूटा और बार-बार बिखरा है। उसके संबोधन बार-बार मोबाइल या कम्प्यूटर से टकराए और इस तरह ऑनलाइन पढ़ाई के निरीह वातावरण में वह अपाहिज साबित हुआ।

सबसे अधिक मानसिक दबाव में निजी स्कूल रहे, जहां अर्थ के गणित में संचालन की शर्तें धराशाही हुईं। इस दौरान आवेदन स्कूलों को ही बंद करवाने के टाइप हुए, तो शिक्षा के प्रांगण रोए होंगे। वे तमाम परिसर खुद से रूठे और अपनी ही वीरान आंखों से इस इंतजार में रहे कि कभी तो स्कूल खुलने की चिट्ठी आएगी। कभी तो कोविड काल की पपड़ी उतार कर फिर से शिक्षा के नारे लिखे जाएंगे। फिर निजी स्कूल की बस अपने बाजुओं में छात्रों को भर कर तन के चलेगी, तो अभिभावकों के हिलते हाथों से भविष्य का सफर शुरू होगा। इस दौरान केवल बंदिशों के पहरे में स्कूल अकेला नहीं हुआ, बल्कि निजी संस्थानों की मिट्टी भी पलीद हुई है। भले ही स्कूलों की कलगी नजर आए, लेकिन अभी प्रवेश के मार्ग और शिक्षा के प्रवेश का अंतर स्पष्ट है। निचली क्लासों में जब तक ज्ञान का अंधेरा दूर करने के लिए स्कूल की राह प्रकाशमान नहीं होती, तब तक किसी मां को यकीन नहीं होगा कि घर की किलकारियां किसी पाठ्यक्रम से आ रही हैं। लगभग दो सालों से कोविड की परेशानियों ने सबसे प्रतिकूल असर छोटे बच्चों की आदतों में डाला है। यह विडंबना रही है कि बचपन को इस दौरान शिक्षा के सबसे बड़े अक्षरों से महरूम रहना पड़ा और अब भी यह इस इंतजार में है कि स्कूल में अपना आरंभिक उत्थान कर सके। बहरहाल हिमाचल ने अपने खाके में शिक्षा के जितने भी चरण जमीन पर उतारे हैं, उसका स्वागत हर कोई करेगा।
हिमाचल मंत्रिमंडल ने शिक्षा के साथ रोजगार के लिए पनवाड़ी जैसी दुकान भी खोल दी है। यानी स्कूल परिसर में दबे पांव फिर ऐसी अप्रत्यक्ष भर्ती होने जा रही है, जिसके तहत राजनीतिक धकमपेल देखी जाएगी। मासिक 5525 रुपए के भुगतान पर 'मल्टी टास्क वर्कर' रखे जाएंगे, जो आरंभ में भले ही स्कूल की घंटी बजाएंगे या नीर जैसी नीयत से जल वितरण करेंगे, लेकिन यही आगे चलकर वेतन विसंगतियों का परिमार्जन ही होगा। जेबीटी-सीएंडवी काडर के अंतर जिला स्थानांतरण पर सरकार नरम हुई है। अंतर जिला स्थानांतरण के लिए तेरह साल का बैरियर टूट रहा है और इस तरह मात्र पांच साल बाद उपर्युक्त काडर के ट्रांसफर आर्डर के लिए राहत का संदेश जुड़ जाएगा। यह एक व्यावहारिक व मानवीय संवेदना से जुड़ा विषय था, जिसके ऊपर जयराम सरकार ने विवेकपूर्ण फैसला लिया है। यह दीगर है कि वर्षों बाद भी स्थानांतरणों की पाजेब सरकारों के हाथ मंे रहती है और इसलिए ट्रांसफर का हर घुंघरू एक मोहलत या वरदान की तरह राजनीतिक परवरिश या सिफारिश का ही इंतजाम है। मंत्रिमंडल के आगामी फैसलों में आगे चलकर भी कर्मचारी खाका और रंग भरता हुआ नजर आ सकता है, जबकि इंतजार है कि शीघ्र अति शीघ्र स्कूल की घंटी हर श्रेणी के छात्र के लिए बजे।


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