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- फिर 9/11 हमले के पहले...
बीते दिनों जब तालिबान का एक प्रतिनिधिमंडल संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि से मिल रहा था, तब उसी समय काबुल में तालिबानी आठ महीने की गर्भवती एक महिला पुलिस अधिकारी की उसके ही बच्चों के सामने निर्मम हत्या कर रहे थे। पिछली बार जब तालिबान शासन में था तो उसने बामियान में बुद्ध की प्रतिमाओं को तोप से उड़ा दिया था और 9/11 के हमलावरों को संरक्षण भी दिया था। इस बार उसने शुरुआत अफगानिस्तान के सम्मानित शिया नेता अब्दुल्ल अली मजारी के स्मारक को नष्ट करके की है। स्पष्ट है कि तालिबान नहीं बदला है। ऐसे में यह विचारणीय है कि अगर वामपंथी झुकाव वाले बाइडन प्रशासन और चीन की सहायता से तालिबान संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर स्वीकार्यता पा भी लेता है तो क्या अफगानिस्तान की स्थिति से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित देश भी क्या तालिबान के प्रति अपने रवैये को बदल सकते हैं? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया का एक धड़ा इस प्रचार में लगा है कि तालिबान को व्यापक वैश्विक स्वीकार्यता मिल रही है। इस प्रश्न का उत्तर भारत की भावी अफगानिस्तान नीति निर्धारण के लिए भी अहम है।