सम्पादकीय

फिर वही राग

Subhi
12 April 2022 4:56 AM GMT
फिर वही राग
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कश्मीर को लेकर शाहबाज शरीफ ने जो कहा, उसमें नया कुछ नहीं है। कश्मीर मुद्दे पर उन्होंने भी वही राग अलापा जो अब तक उनसे पहले के हुक्मरान अलापते आए हैं।

Written by जनसत्ता: कश्मीर को लेकर शाहबाज शरीफ ने जो कहा, उसमें नया कुछ नहीं है। कश्मीर मुद्दे पर उन्होंने भी वही राग अलापा जो अब तक उनसे पहले के हुक्मरान अलापते आए हैं। रविवार को इस्लामाबाद में प्रधानमंत्री पद के लिए परचा भरने के बाद शाहबाज ने कहा था कि जब तक कश्मीर का मसला हल नहीं हो जाता, तब तक भारत के साथ रिश्ते नहीं सुधर सकते। इसमें ऐसी कौन-सी नई बात है जो उन्होंने कही! बल्कि बेहतर यह होता कि कश्मीर मुद्दा कैसे हल हो, इस पर उनके मुंह से कुछ निकलता।

वे कोई रास्ता सुझाते या ऐसा कोई संकेत देते, जिससे लगता कि वे वाकई कश्मीर समस्या हल करने के प्रति गंभीर हैं। इसके बजाय जिस अंदाज में उन्होंने कश्मीर की बात की, उससे दूर-दूर तक नहीं लगता है कि उनकी प्राथमिकता दशकों पुराने इस मसले का समाधान निकालने की रही होगी। शाहबाज ने जो कहा है, उससे तो यही ध्वनि निकलती है कि कश्मीर समस्या भारत ने ही पैदा की है और वही इसका हल निकाले। इसलिए शाहबाज ने कश्मीर को लेकर कहा, उसका कोई मतलब नहीं रह जाता। बल्कि पाकिस्तान को यह याद रखना चाहिए कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है।

सवाल है कि आखिर शाहबाज शरीफ को इतनी जल्दी क्या पड़ी थी कि शपथ लेने से पहले ही वे कश्मीर को लेकर इतने मुखर दिखे? दरअसल, कश्मीर पर शाहबाज ने वही उद्गार प्रकट किए हैं जो सेना चाहती है। पाकिस्तान का इतिहास गवाह है कि सेना के लिए कश्मीर कितना अहम मुद्दा है। अगर कश्मीर का मसला नहीं होता तो पाकिस्तान की सेना के पास कुछ बचता नहीं करने को। इसलिए दशकों से उसने कश्मीर को न केवल मुद्दा बना रखा है, बल्कि इसकी आड़ में भारत के खिलाफ सीमापार आतंकवाद के रूप में छद्म युद्ध छेड़ रखा है।

गौरतलब है कि शाहबाज शरीफ से पहले जब इमरान खान सत्ता में आए थे, तो उन्होंने भी कश्मीर को लेकर लंबी-चौड़ी बातें की थीं। इमरान ने कहा था कि कश्मीर पर अगर भारत एक कदम बढ़ेगा तो वे दो कदम बढ़ेंगे। हकीकत में हुआ क्या? बल्कि उन्होंने शायद ही कोई मौका छोड़ा हो जब संयुक्त राष्ट्र से लेकर इस्लामिक देशों के संगठन (ओआइसी) तक में उन्होंने कश्मीर का मसला उठा कर सहानुभूति बटोरने की कोशिश न की हो। इसलिए अगर शाहबाज भी इसी रास्ते पर हैं तो वे अपने मुल्क की सियासी परंपरा को ही ढो रहे हैं।

इतिहास गवाह है कि दुनिया के सबसे गंभीर विवाद भी बातचीत से हल हुए हैं। फिर कश्मीर का समाधान क्यों नहीं निकल सकता? यह पाकिस्तान के नए हुक्मरान को सोचना चाहिए। दरअसल, पाकिस्तान में सरकार पर सेना जिस तरह से हावी रहती है, उसमें जटिल तो क्या, सामान्य विवाद भी हल होने की गुंजाइश रहती नहीं है। पाकिस्तान के हुक्मरान भी इस कड़वी सच्चाई को समझते हैं।

भारत ने तो अपनी ओर से न जाने कितनी बार शांति के प्रयास किए होंगे! याद किया जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी तो पहल करके खुद लाहौर गए थे शांति के लिए। तब शाहबाज के भाई नवाज शरीफ प्रधानमंत्री थे। पर पाकिस्तान ने इसके बदले में भारत को क्या दिया- कारगिल का जख्म! आज शाहबाज को खुद से पूछना चाहिए कि आखिर क्यों हुआ था यह? अगर वे कश्मीर का मुद्दा हल करना चाहते हैं तो पहले अपनी फौज को राजी करें। पर क्या ऐसा हो पाएगा?


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