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त्योहारी मौसम में कीमतों की इतनी ज्यादा बढ़त बाजार ही नहीं, बल्कि लोगों की जेब पर सीधे असर डालेगी
पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में फिर वृद्धि न केवल ध्यान खींचती है, बल्कि सोचने पर विवश भी करती है। पेट्रोल की कीमत में 30 पैसे प्रति लीटर और डीजल में 35 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई। इस वृद्धि के साथ ही दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 102.94 रुपये प्रति लीटर और डीजल की कीमत 91.42 रुपये प्रति लीटर हो गई है। देश में कुछ शहर ऐसे भी हैं, जहां पेट्रोल की कीमत 105 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई है। पेट्रोल की कीमत में इसी वर्ष लगभग 18 रुपये की बढ़ोतरी हुई है। इसी वर्ष की शुरुआत में डीजल की कीमत 75 रुपये के करीब थी, पर इसमें भी इस वर्ष करीब 17 रुपये की बढ़ोतरी हो चुकी है। कुल मिलाकर, इसी वर्ष पेट्रोल, डीजल के भाव में 17-18 रुपये की बढ़त चिंता में डालने के लिए काफी है।
हालांकि, सबसे ज्यादा चिंता रसोई गैस को लेकर है। इसी साल रसोई गैस की कीमत में 205 रुपये तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। तेल विपणन कंपनियों ने बुधवार 6 अक्तूबर से घरेलू रसोई गैस सिलेंडर की कीमत में एक बार फिर 15 रुपये की बढ़ोतरी की है। यह दो महीने के भीतर चौथी कीमत बढ़ोतरी है। इस बढ़ोतरी के बाद 14.2 किलोग्राम के एलपीजी सिलेंडर की कीमत अब राजधानी दिल्ली में 899.50 रुपये हो गई है।
त्योहारी मौसम में कीमतों की इतनी ज्यादा बढ़त बाजार ही नहीं, बल्कि लोगों की जेब पर सीधे असर डालेगी। ऐसा आखिर क्यों हो रहा है? बताया गया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बढ़ते भाव के कारण पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी की गई है। जहां एक-एक पैसे की बढ़त से बजट पर असर पड़ता हो, वहां बीस-तीस पैसे की बढ़त बहुत गंभीर है। क्या कीमतों में कम वृद्धि मुमकिन नहीं थी? क्या सरकार को कर के स्तर पर रियायत देकर पेट्रोल की कीमत को 100 रुपये से नीचे नहीं रखना चाहिए? इसमें कोई शक नहीं कि सरकार को विकास कार्यों के लिए पैसे चाहिए? सरकार की अपनी बाध्यताएं भी हैं, वह कोरोना काल में अधिकांश ट्रेनों के बंद होने के बावजूद रेल कर्मचारियों को परंपरा के अनुरूप बोनस देने के लिए मजबूर है। त्योहारी मौसम में अन्य सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को भी कुछ न कुछ सरकार देगी। लेकिन सरकारी नौकरियों में देश के पांच प्रतिशत लोग भी नहीं हैं, बाकी लोगों को सरकार कीमतों में बढ़ोतरी न करते हुए ही राहत दे सकती है। उम्मीद करनी चाहिए कि अब पेट्रोलियम पदार्थों और आम लोगों की जेबों को नहीं छेड़ा जाएगा। बेशक, सरकार को पैसे चाहिए। वह कर या आयकर के स्तर पर ज्यादा वसूली नहीं कर पा रही है। जब अर्थव्यवस्था कठिन दौर है, जब लगभग हर उद्यम क्षेत्र को प्रोत्साहन की जरूरत है, तब सीधे कर वसूली करना आसान भी नहीं है। ऐसे में, सरकार को कैसे पैसे जुटाने चाहिए? यहां पैंडोरा का जिक्र गलत नहीं होगा। पैंडोरा ने यह संकेत कर दिया है कि देश के अनेक दिग्गज देश में कमाए गए धन को येन-केन-प्रकारेण देश से बाहर भेजते रहे हैं। ऐसा काली कमाई को छिपाने के लिए किया गया हो या टैक्स बचाने के लिए, दोनों ही स्थितियों में सरकार को आगे ऐसे उपाय करने चाहिए कि देश का पैसा देश में ही रहे। टैक्स चोरी की गुंजाइश को कम करना भी जरूरी है। सरकार को ऐसे प्रबंध करने ही पड़ेंगे, ताकि पेट्रोल-डीजल पर से दबाव कम हो।
हिंदुस्तान न्यूज
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