सम्पादकीय

फिर चेहरा बदल रहा आतंक

Rani Sahu
16 Sep 2021 6:30 PM GMT
फिर चेहरा बदल रहा आतंक
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दबिश डालते हुए दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने छह आतंकियों को धर दबोचा है

सुशांत सरीन। दबिश डालते हुए दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने छह आतंकियों को धर दबोचा है। दावा है कि ये सभी त्योहारी मौसम में देश को अशांत करने की योजना बना रहे थे। इनकी गिरफ्तारी उन आशंकाओं को पुष्ट करती है, जो अफगानिस्तान में तालिबानी राज के शुरू होने के साथ जाहिर की गई थीं। काबुल में तख्तापलट के बाद यही कहा गया था कि इस पूरे खित्ते में अब आतंकवाद में बढ़ोतरी होगी और दहशतगर्दों को शह मिलेगी। कयास यह भी है कि चूंकि पाकिस्तान ने दो दशकीय जंग में दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका व उसके मित्र राष्ट्रों की फौज को शिकस्त दी है, और यह जीत भी ऐसी कि हार के बावजूद इस्लामाबाद के प्रति वाशिंगटन का रवैया नरम है, इसलिए विशेषकर भारत के खिलाफ पाकिस्तान पोषित आतंकी जमातों का इस्तेमाल कहीं अधिक होगा। इन गिरफ्तारियों के बाद ये आशंकाएं सच प्रतीत होने लगी हैं।



अच्छी बात यह है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां तत्पर हैं और देश विरोधी षड्यंत्रों को सफलतापूर्वक बेनकाब कर रही हैं। मगर मसला यह है कि अगर एक बार भी इन आतंकियों के नापाक मनसूबे कामयाब हो गए, तो हमारी सुरक्षा व्यवस्था कठघरे में आ जाएगी। पिछले कुछ दिनों से ऐसी कोशिशें हो भी रही हैं। मसलन, हाल के दिनों में कश्मीर में आतंकी वारदातों में एक तरह की बढ़त दिख रही है। खबर यह भी है कि उत्तरी कश्मीर में, जहां हालात काफी हद तक ठीक रहते हैं, दहशतगर्दों की सीमा पार से घुसपैठ हुई है। पिछले एक महीने से वहां एनकाउंटर में इजाफा हुआ है। सरहद पार के आतंकी शिविरों में भी हलचल तेज है। जाहिर है, पाकिस्तान के भीतर जश्न का माहौल है। 1992 में जब अफगानिस्तान में डॉक्टर नजीबुल्लाह की सरकार को मुजाहिदीन ने पलट दिया था, तब भी पाकिस्तान में इसी तरह की खुशियां मनाई जा रही थीं। उल्लेखनीय है कि उसी दौर में कश्मीर की सुकून भरी वादियों में सीमा पार से आतंकवाद की धुंध पसरनी शुरू हुई थी। आज फिर से हमारे लिए वही खतरा सिर उठा रहा है।
मंगलवार को पकडे़ गए आतंकियों के बारे में कहा गया है कि दाऊद इब्राहिम के भाई के साथ उनके तार जुड़े हुए हैं और डी-कंपनी के नेटवर्क का इस्तेमाल हो रहा था। इसमें सीधे-सीधे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का नाम नहीं लिया गया। क्या ये आतंकी बिना आईएसआई की मदद से इतनी बड़ी हिमाकत कर सकते हैं? अफगानिस्तान में हुकूमत बदलने के बाद यह कहा भी गया था कि यह मुल्क अब दहशतगर्दी का अड्डा बनेगा। छोटे-बड़े तमाम दहशतगर्दों की अफगानिस्तान की ओर रवानगी इसकी तस्दीक भी कर रही थी। चूंकि इन आतंकियों को पाकिस्तान की शह हासिल है, इसलिए भारत में होने वाली ऐसी किसी घटना में हमें 'नॉन-स्टेट एक्टर्स' के शामिल होने जैसे दावों पर यकीन नहीं करना चाहिए, बल्कि सीधे-सीधे पाकिस्तानी हुकूमत और उसकी एजेंसियों को घेरना चाहिए।
हमें यह स्वीकार करना होगा, और संभवत: हमारी खुफिया एजेंसियां इसे मानने भी लगी हैं कि आतंकवाद का चरित्र अब बदल रहा है। तकनीक और तरीकों ने इसका रूप काफी हद तक खौफनाक बना दिया है। अब ड्रोन जैसी नई प्रौद्योगिकी की भी इसमें आमद हो गई है, और कई देशों में अत्याधुनिक तकनीक से आतंकी हमलों को अंजाम दिया गया है। भारत भी इन सबसे नहीं बच सकता। खतरा यह है कि तालिबान आत्मघाती दस्ता तैयार करने की बात खुलेआम स्वीकारता है। यानी, हमारे यहां देर-सवेर ऐसे हमले होंगे ही। नई प्रकार की आईईडी का इस्तेमाल भी होगा। लिहाजा, हमें पहले से अपनी तैयारी चाक-चौबंद करनी होगी।
एक अन्य पहलू यह भी है कि बम बनाने की तकनीक जिस तरह से उन्नत होती जा रही है, उसको रोकने के लिए हमें विशेष नजर रखनी होगी। हमें न सिर्फ इन सबको बेनकाब करना होगा, बल्कि इनकी तह तक भी पहुंचना होगा। घाटी में फिलहाल जैसी सुरक्षा व्यवस्था है, वह 1990 के दौर के हिसाब से काफी बेहतर है, लेकिन जब हम अपनी सुरक्षा व्यवस्था को उन्नत बनाने की बात करते हैं, तब हमारे लिए यह देखना जरूरी है कि सुरक्षा बलों के पास पारंपरिक हमलों के खिलाफ ही सुरक्षा कवच न हो, बल्कि नए तकनीकी हमलों के खिलाफ भी वे बखूबी मोर्चा ले सकें।
नए खतरों से बचने के लिए देश में नई तकनीक की आमद, नए तरह के प्रशिक्षण, नई प्रौद्योगिकी पर विश्वास और नए निवेश की दरकार है। इन सबकी पूर्ति जल्द से जल्द होनी चाहिए। खतरा पैदा होने के बाद उसका मुकाबला करने से बेहतर है कि खतरे को पैदा होने से रोक दिया जाए और वक्त से पहले उसे खत्म कर दिया जाए। यही रणनीति हमें अब अपनानी चाहिए।
एक बड़ा खतरा आतंकियों के स्लीपर सेल से भी है। इस तरह के मॉड्यूल में आतंकियों को तमाम तरह के प्रशिक्षण देकर आम लोगों के बीच भेज दिया जाता है, जहां वे कुछ वक्त तक बिल्कुल आम जनजीवन बिताते हैं। चूंकि दहशतगर्द समाज में घुल-मिल जाते हैं, इसलिए उन पर कोई शक नहीं करता और सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर भी वे नहीं आते। और, जब आतंकी संगठन को उनकी जरूरत होती है, तब वे तुरंत उपलब्ध हो जाते हैं। इसलिए इनसे पार पाने के लिए हमें अपनी आंख और कान खुले रखने होंगे। स्थानीय पुलिस और खुफिया एजेंसियों को इस तरह का प्रशिक्षण देना होगा कि कुछ भी असामान्य दिखने पर वे तुरंत सावधान हो जाएं। रेहड़ी-पटरी पर रहने वाले लोग भी इसमें खासा मददगार हो सकते हैं। उन्हें इस कार्य में ज्यादा से ज्यादा जोड़ना चाहिए। अब 26/11 या 9/11 जैसी वारदातें शायद ही होंगी। बिल्कुल नए तरह के आतंकी हमलों के हम गवाह बन सकते हैं। लिहाजा, हमें इतनी तैयारी रखनी ही होगी कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था में कतई सेंध न लगने पाए। हमारी सुरक्षा एजेंसियों को इसी दिशा में काम करना होगा।


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