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पांच राज्यों के चुनावों में निराशाजनक प्रदर्शन कांग्रेस के लिए सबक है। पर क्या वह इससे कुछ सबक लेगी भी?
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का संदेश यह है कि भाजपा ने अपनी ताकत बरकरार रखी है, जो दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में उसके लिए मददगार साबित होगी। दूसरा संदेश यह कि देश हिंदुत्व की तरफ और भी अग्रसर हो रहा है। पांच में से चार राज्यों में भाजपा ने अपनी सत्ता बरकरार रखी है-यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बरकरार है। भाजपा ने जिन तीन मुद्दों-हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा-को महत्व दिया, मतदाताओं ने भी उन्हें महत्वपूर्ण माना।
हालांकि इस बार हिंदुत्व का मुद्दा उतना प्रखर नहीं था, पर उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 80 फीसदी और 20 फीसदी की बात कही। राशन, नकदी और घर बनाने के लिए आर्थिक मदद पाने वालों का जो एक विशाल लाभार्थी वर्ग पैदा हुआ है, उसने भाजपा पर भरोसा जताया है। यानी हिंदुत्व के नारे, सामाजिक कल्याण योजनाएं और पिछड़ी जातियों को जोड़ने की सफलता ने भाजपा को एक बड़ी ताकत बनाया है। उत्तर प्रदेश में 1985 के बाद पहली बार कोई सत्तारूढ़ पार्टी दोबारा सत्ता में आई है। यहां का चुनाव योगी आदित्यनाथ के लिए बहुत बड़ी चुनौती था।
अगर उत्तर प्रदेश में भाजपा को 180 के आसपास सीटें मिलतीं, तो वह योगी के राजनीतिक भविष्य के लिए मुश्किल होता। लेकिन भाजपा को सूबे में शानदार जीत दिलाकर योगी नए सितारे के रूप में उभरे हैं। मोदी की तरह योगी की छवि भी एक सख्त नेता की है, जो बुलडोजर की बात करते हैं। उनके राज में उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था में काफी सुधार हुआ, इस कारण महिला वर्ग में योगी की काफी लोकप्रियता है। यह जीत सामान्य जीत नहीं है, बल्कि कसौटी पर खरा उतरकर योगी भाजपा में नेतृत्व की दौड़ में भी शामिल हो गए हैं। योगी के पक्ष में प्रचार करने वाले कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर कहा था कि यह सिर्फ योगी को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने का चुनाव नहीं है, बल्कि इस बार भाजपा की बड़ी जीत पार्टी में योगी की बड़ी भूमिका भी तय कर देगी।
सपा का प्रदर्शन पिछले चुनाव की तुलना में बहुत अच्छा है। पर सपा का गठबंधन बड़ा होना चाहिए था। गैर यादवों और गैर जाटवों को जोड़ने में सपा विफल रही। उसने अपने चुनाव अभियानों में महिलाओं को भी उतना महत्व नहीं दिया और और संगठन के मामले में वह भाजपा के इर्द-गिर्द भी नहीं थी। उत्तराखंड उन राज्यों में है, जहां भाजपा की लोकप्रियता सर्वाधिक है, जिसकी वजह उसका देवभूमि होना और मतदाताओं के बड़े हिस्से का सैन्य पृष्ठभूमि से होना है। इसके अलावा लाभार्थी वर्ग ने भी उस पर भरोसा जताया, हालांकि मुख्यमंत्री धामी का चुनाव हार जाना जरूर चौंकाने वाला है।
पंजाब में आप की जीत कई अर्थों में महत्वपूर्ण है। दिल्ली के बाद आप के हिस्से पंजाब के रूप में दूसरा राज्य मिला है। आप भी हिंदुत्ववादी राजनीति करती है, लेकिन वह मुस्लिम-विरोधी नहीं है और विपक्ष का खाली स्थान भर रही है। खासकर उत्तर भारत में वह वैकल्पिक पार्टी के रूप में उभर सकती है। कांग्रेस ने न सिर्फ पंजाब में सत्ता खो दी है, बल्कि उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर जैसे राज्यों में भी वह कुछ नहीं कर पाई। उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के चुनाव अभियानों से एक उम्मीद बनी थी, पर नतीजा निराशानजक रहा। उत्तराखंड में उसके लिए मौका हो सकता था, पर मुख्यमंत्री पद के दावेदार हरीश रावत भी चुनाव हार गए। गोवा में कांग्रेस को जीतना चाहिए था, जबकि मणिपुर में उसने पूरा जोर नहीं लगाया। पांच राज्यों के चुनावों में निराशाजनक प्रदर्शन कांग्रेस के लिए सबक है। पर क्या वह इससे कुछ सबक लेगी भी?
सोर्स: अमर उजाला
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