सम्पादकीय

सिर्फ संकट देकर नहीं जा रहा साल

Rani Sahu
26 Dec 2021 5:14 PM GMT
सिर्फ संकट देकर नहीं जा रहा साल
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वह कैसा सफर था कि चकरा गए। जहां से चले थे वहीं आ गए... साल 2021 का हिसाब-किताब भी कुछ ऐसा ही है

आलोक जोशीवह कैसा सफर था कि चकरा गए। जहां से चले थे वहीं आ गए... साल 2021 का हिसाब-किताब भी कुछ ऐसा ही है। पिछले साल और इस साल को मिलाकर भारत की अर्थव्यवस्था दो साल पहले के ठिकाने से अभी कुछ पीछे ही खड़ी हुई है। खड़ी हुई कहना तो ठीक नहीं होगा, लेकिन यह साफ है कि 2021 की शुरुआत जिस चुनौती के साथ हुई थी, देश उससे पार पाने में कामयाब नहीं हो पाया। हालांकि, यह कहना भी इस साल के साथ या इस साल जिंदगी को वापस पटरी पर लाने की कोशिश में लगे लोगों के साथ थोड़ी नाइंसाफी ही मानी जा सकती है, क्योंकि इससे एक साल पहले मानव जाति की सबसे बड़ी त्रासदी सामने आई थी और वह यूं आई कि संभलना तो दूर, ठीक से गिरने या लड़खड़ाने का मौका भी नहीं मिल पाया था।

परेशानियां तब से बनी रहीं। लेकिन साल 2020 खत्म होते-होते लगने लगा था कि हमने कोरोना के साथ जीना सीख लिया है और अब वक्त है वापस रफ्तार पकड़ने का। रफ्तार पकड़ने के अंदाज भी सीखे जा चुके थे। 'वर्क फ्रॉम होम' और 'स्टडी फ्रॉम होम' ये दो नए शब्द विन्यास हमारी जिंदगी में आते ही छा गए थे। एक साल पहले जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था, कामकाजी दुनिया में वह क्रांतिकारी बदलाव हो चुका था। इस साल की शुरुआत में ही यह कहा जाने लगा था कि ऑफिस, यानी दफ्तर अब करीब-करीब गायब हो जाएंगे। बहुत सी कंपनियों ने किराये पर लिए हुए बड़े-बड़े दफ्तर खाली कर दिए थे और अपने कर्मचारियों को यह छूट दे दी थी कि वे चाहें, तो जिंदगी भर घर से काम करने का विकल्प चुन सकते हैं। स्टाफ भी खुश और कंपनियां भी। कंपनियों के खुश होने के और भी कारण थे। उनकी बैलेंसशीट दिखाती हैं कि जिस दौरान दुनिया अपने सबसे बड़े संकट से जूझ रही थी, उसी समय भारत में निजी कंपनियों की कमाई अभूतपूर्व रफ्तार से बढ़ रही थी। इस साल सितंबर में खत्म हुई तिमाही में देश की बड़ी लिस्टेड कंपनियों ने कुल 2.39 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड मुनाफा कमाया। यह पिछले साल से करीब 46 प्रतिशत ज्यादा है। और पिछले साल भी इस तिमाही में चारों तरफ की तबाही के बावजूद कंपनियों का मुनाफा एक रिकॉर्ड ऊंचाई पर था। तब जबकि उसकी पिछली पांच तिमाहियों में बिक्री या आमदनी लगातार गिर रही थी।
बिक्री गिरने और मुनाफा बढ़ने का रिश्ता है रोजगार या कामगारों की कमाई से। कंपनियों ने कम लोगों से ज्यादा काम करवाना सीख लिया है और कामकाजी लोगों की कमाई बढ़ने की रफ्तार कंपनियों के मुनाफे या अमीरों की संपत्ति बढ़ने की रफ्तार से काफी कम है। विश्व असमानता रिपोर्ट के मुताबिक, भारत आर्थिक गैर-बराबरी के मामले में दुनिया में सबसे ऊपर के चंद देशों में शामिल है। यहां ऊपर के एक फीसदी लोग देश की कमाई का 22 प्रतिशत हिस्सा ले जा रहे हैं, जबकि नीचे के 50 प्रतिशत लोग महज 13 फीसदी में गुजारा कर रहे हैं। यानी, 1.35 करोड़ अमीर लोग नीचे के पायदानों पर खड़े 65 करोड़ लोगों के मुकाबले दोगुनी कमाई कर रहे हैं। प्यू रिसर्च की रिपोर्ट बताती है कि 1974 के बाद इस साल ऐसा पहली बार हुआ है कि देश में गरीबों की गिनती बढ़ गई है और भारत फिर एक गरीब देश वाला राष्ट्र बन गया है। कोरोना और लॉकडाउन का सबसे बुरा असर मध्यवर्ग पर पड़ा है और इस वर्ग से बड़ी संख्या में लोग गरीब बिरादरी में पहुंच गए हैं। इस साल ऐसे लोगों की गिनती 13.4 करोड़ हो गई है, जिनकी रोज की कमाई 150 रुपये से भी कम है। इनमें से छह करोड़ लोग इसी साल इस सूची में शामिल हुए हैं।
लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि 2021 सिर्फ परेशानियों का पिटारा छोड़कर जा रहा है। यहां खुद पर यकीन करनेवाले उद्यमियों की गिनती भी तेजी से बढ़ रही है और उनकी हैसियत भी। खासकर, स्टार्टअप के मामले में भारत अब ब्रिटेन को भी पीछे छोड़कर दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंच चुका है। भारत में यूनिकॉर्न, यानी एक अरब डॉलर से ज्यादा हैसियत वाले स्टार्टअप कारोबारों की गिनती अमेरिका और चीन से ही पीछे है।
बदलने या अपनी जिंदगी बेहतर बनाने की उम्मीद करोड़ों लोगों को शेयर बाजार में भी ले गई है। देश में डीमैट खातों की संख्या 7.75 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है। इनमें से करीब आधे तो पिछले दो साल में खुले हैं। निफ्टी और सेंसेक्स भी इसी दौरान 100 प्रतिशत से ऊपर की छलांग लगा चुके हैं। लेकिन यह कब तक चलेगा? जानकार बताते हैं कि दुनिया भर के बाजारों में तेजी की वजह सरकार की नीतियां हैं, जिनकी वजह से बाजार में लगातार पैसा आता गया और तेजी बढ़ती गई। उन्हें डर है कि अब किसी भी वजह से अगर बाजार बैठा या मंदी आई, तो सरकारों और केंद्रीय बैंकों को जनता के गुस्से का निशाना बनना पड़ सकता है।
डर सिर्फ इतना नहीं है। डर यह भी है कि किसी तरह पटरी पर आती अर्थव्यवस्था फिर ओमीक्रोन की शिकार तो नहीं हो जाएगी? जिस तरह 2020 के अंत में दूसरी लहर की आशंका तेज थी, अब तीसरी लहर का डर सताने लगा है। बीते साल में पूरी दुनिया को एक तगड़ा झटका सेमीकंडक्टर, यानी कंप्यूटर चिप्स की किल्लत से लगा। भारत को भी पता चला कि इस मामले में चीन और ताइवान के भरोसे रहना कितना महंगा पड़ सकता है। अब जोर-शोर से देश को सेमीकंडक्टर के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की तैयारी हो रही है।
उम्मीद है कि अब तक की मुसीबतों से सरकारों ने इतना सबक तो सीख लिया होगा कि हर मुसीबत के बीच अर्थव्यवस्था को लगातार आगे बढ़ाते रहना न सिर्फ जरूरी है, बल्कि वही हर तरह की मुसीबत के मुकाबले हमारा सबसे बड़ा हथियार भी है। इसीलिए संकट से निपटने की तमाम कोशिशों के बीच ही शिक्षा, स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर और आम आदमी का जीवन बेहतर बनाने की दीर्घकालीन योजनाओं से ध्यान हटाए बिना आगे बढ़ना होगा। यही 2022 में देश की और सरकार की सबसे बड़ी चुनौती होगी।


Rani Sahu

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