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ऐसे बचकाने सवाल पूछने पर शायद कई लोग मुझे कोसेंगे क्योंकि उन्होंने नई कार सिर्फ पड़ोसियों को अपनी स्टाइल व स्टेटस दिखाने के लिए ही तो खरीदी है
एन. रघुरामन। ऐसे बचकाने सवाल पूछने पर शायद कई लोग मुझे कोसेंगे क्योंकि उन्होंने नई कार सिर्फ पड़ोसियों को अपनी स्टाइल व स्टेटस दिखाने के लिए ही तो खरीदी है। एक और स्टूपिड सवाल पूछकर आपकी उम्मीदों पर पानी फेरता हूं। क्या आप अपनी कार किसी के साथ साझा करेंगे? ओके..ओके... मुझे सुनाई दे रहा है कि आप जोर से कह रहे हैं, 'हर्गिंज नहीं'! इस सवाल को जरा दूसरे तरीके से पूछने दें।
क्या आप अपने बंगलो में पोर्च में खड़ी कार के बिना रहने के लिए तैयार हैं, क्योंकि आपके प्यारे घर से महज 30 सेकंड की दूरी पर कॉलोनी में तीन कारें खड़ी हैं, जहां से आप हमेशा कार उधार ले सकते हैं? मुझे लगता है मैंने आपको कहते हुए सुना 'मैं ऐसा कभी नहीं कर सकता, आप मेरे बारे में क्या सोचते हैं? क्या आप पागल हैं?'
आपसे ऐसे फिजूल के सवाल पूछने के लिए मुझे माफ करें। पर मैं आपको बता दूं कि वे फिजूल नहीं हैं। लंदन में इन दिनों ऐसा हो रहा है। पड़ोसियों के साथ कार शेयर करने वाला क्लब 'शेयर अवर कार्स' शुरू करने के महज सात हफ्ते बाद ही एमिली केर और उनके पति प्रोफेसर एलेक्जेंडर बैट्स ने अपनी खुद की कार बेचने का फैसला किया। इस आइिडया की ओर 40 विविध कम्युनिटी ग्रुप के खिंचे चले आने के बाद एमिली ने खुद के लिए लक्ष्य तय किया है कि 2025 तक वह दस लाख दूसरे मोटरिस्ट को इसका अनुसरण करने के लिए राजी करेंगी।
इस तरह के ग्रुप चलाने वालों में सिर्फ एमिली नहीं है, ब्रिटेन अकेले में ऐसे दो लाख 30 हजार कार क्लब मेंबर्स हैं और उनमें लगभग एक लाख लोगों ने कारें हटा दी हैं। फिर एमिली के आइिडया में नया क्या है? उनके आइडिया में अनजान लोगों के साथ कार शेयर नहीं होती। यह नया उपक्रम सिर्फ विश्वसनीय समूह सदस्यों जैसे पड़ोसियों को आपकी कार चलाने देता है। इसके फायदे हैं। एक आदमी अलग-अलग कार चला सकता है और आपकी कार किसी अनजान के हाथों में भी नहीं जा रही कि आपको संदेह करना पड़े। ग्रुप भी सिर्फ योग्य-जिम्मेदार ड्राइवर्स के बीच बनेंगे। और इसका खर्च आपस में बांटा जाएगा।
मेरा यकीन करें, मैं सिर्फ अनुमान लगा रहा हूं कि इस ड्राइविंग मशीन के बाद सामुदायिक का दर्जा पाने वाली अगली चीज वॉशिंग मशीन होगी। 2021 के एकदम आखिरी समय का एक और उदाहरण लें। 'टू गुड टू गो' एक एप है, इसके जरिए रेस्तरां अपना अतिरिक्त बचा खाना कम कीमत पर लोगों को बेच सकते हैं।
एप के नियमों के अनुसार रेस्तरां, मेन्यू में दी गई कीमत के एक तिहाई दाम से ज्यादा पर नहीं बेच सकते। जाहिर है ये लाभ के लिए नहीं है। पर कूड़े में जाने के बजाय कम से कम कुछ क्षतिपूर्ति तो हो रही है। मतलब ऐसे भी लोग होंगे जो भूख मिटाने के लिए इंतजार में रहते होंगे कि कब रेस्तरां इस एप पर बचे खाने की कम कीमत दर्शाएं और वे इसका लाभ ले सकें।
पूरे यूके में वायरस बढ़ने के साथ ऑर्डर रद्द होने के बीच ये नया एप रेस्तरां मालिकों की कुछ लागत बचाने के लिए शुरू हुआ था। यूके में वायरस के कारण इस सप्ताह खानपान का बिजनेस एकदम गिर गया है। खाना फेंकना ठीक नहीं, इसलिए हॉस्पिटेलिटी बिजनेस में ये एप जितना हो सके, उतना खाना फिकने से बचाने की कोशिश कर रहा है। मुझे लगता है ये सारे नए आइडिया हमें 'मिनिमलिस्ट जीवन' के रास्ते पर चलने के लिए कह रहे हैं, इस दुनिया में ये कॉन्सेप्ट तेजी से फैल रहा है।
फंडा यह है कि साल 2022 शायद एक नई विश्वव्यवस्था बना सकता है, जहां लोग अपनी सबसे पसंदीदा चीज़ें त्याग सकते हैं या साझा करेंगे वहीं ऐसे उपाय निकालेंगे कि जिससे दूसरे का बिजनेस भी चलायमान रहे और ये अपने आप में नया बिजनेस आइडिया बनेगा!
Rani Sahu
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