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आदित्य नारायण चोपड़ा: भारतीय धार्मिक परम्पराएं और संस्कृति इतनी समृद्ध है कि भारतीय समाज को नारी शक्ति के सम्मान के लिए भी जाना जाता है। आज दुर्गाष्टमी पर समूचे भारत में कन्या पूजन किया जाएगा। दुर्गा पूजा उत्सव की धूम मची हुुई है। लेकिन असुर आज भी अपना रूप बदल कर नारी शक्ति को कुचलने का प्रयास कर रहे हैं। फिर भी महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को लेकर भारत पर भरोसा किया जा सकता है। उधर ईरान में महिलाओं की हिजाब के विरुद्ध हुई क्रांति को दो हफ्ते से ज्यादा का समय हो गया है और सड़कों पर विरोध जारी है। पुलिस और प्रदर्शनकारियों की झड़प में लगभग 78 लोग मारे जा चुके हैं। हालात कोई अच्छे नहीं हैं। अफगानिस्तान में भी तालिबान शासन के चलते महिलाओं की स्वतंत्रतता और सम्मान पर लगातार चोट की जा रही है। ईरान में महसा अमिनी की मौत के विरोध प्रदर्शन का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। ईरान सरकार ने इंटरनेट, इंस्ट्राग्राम और व्हाट्सएप बैन कर दिए हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो और फोटो से पता चलता है कि ईरान के सुरक्षा बल प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए घातक हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। आज के आधुनिक समाज में क्या महिलाओं की अपनी खुद की जिन्दगी के अहम फैसलों पर भी कोई हक नहीं है? ईरान की धर्म आधारित सत्ता ने महिलाओं की जिन्दगी को नरक बना दिया है। भारत में जहां हिजाब के समर्थन में एक बड़ा तबका खड़ा है जो खुद को आधुनिक और महिलाओं की तरक्की का समर्थक मानते हैं। लेकिन ईरान से आने वाली तस्वीरों और जुल्म की कहानियों ने इन सबके मुंह सिल दिए हैं। यह वही लोग हैं जो खुद तो पश्चिमी कपड़े पहनते हैं लेकिन वो चाहते हैं कि मुस्लिम लड़कियां हिजाब और बुर्के में ढकी रहें। ईरान के लोग इतने हताश हैं कि उनका गुस्सा रोजाना सड़कों पर फूट रहा है। महिलाएं हिजाब की होलिका जला रही हैं, लेकिन धर्म पर आधारित कट्टरपंथी सरकार धार्मिक नियमों और कानूनों को लागू करने पर अडिग है। अनेक महिलाओं ने अपने लम्बे बालों को काटकर अपने गुस्से का इजहार किया। आज समूची दुनिया से ईरान सरकार के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव पारित किए जा रहे हैं। ईरान की महिलाओं को घर के बाहर अपना सिर ढककर रखना पड़ता है। कभी टीवी कार्यक्रम में बिना हिजाब पहने महिला दिखी तो अधिकारियों ने उसके निर्माता पर प्रतिबंध लगा दिया। ईरान के राष्ट्रपति ने अमेरिकी महिला पत्रकार को इंटरव्यू देने से पहले यह कहा कि उसे हिजाब पहन कर इंटरव्यू करना होगा। इस शर्त के विरोध में अमेरिकी महिला पत्रकार ने इंटरव्यू लेने से ही मना कर दिया। ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता खुमैनी हमेशा इस बात पर जोर देते रहे कि महिलाएं शालीन कपड़े पहनें। 1979 में उन्होंने इटली के पत्रकार ओरियाना फलाची से कहा था कि ''क्रांति में उन महिलाओं ने योगदान दिया था जो महिलाएं शालीन कपड़े पहनती हैं। यह नखरेबाज औरतें जो मेकअप करती हैं और अपनी गर्दन, बाल और शरीर की सड़कों पर नुमाइश करती हैं। उन्होंने शाह के शासन के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ी। उन्होंने कुछ भी सही नहीं किया। वो नहीं जानती कि कैसे उपयोगी हुआ जाये। न समाज के लिए, न राजनीतिक रूप से या व्यावसायिक रूप से। इसके पीछे कारण यह है कि लोगों के सामने वे अपनी नुमाइश कर उनका ध्यान भटकाती हैं।''संपादकीय :राजस्थान का खरा सोना!यूथ की काउंसलिंग बहुत जरूरी हैरूस-यूक्रेन विवाद और 'गांधीवाद'खड़गे और थरूर में टक्कर?दलित युवक का दारुण चीत्कार !पीएफआई की सही जगहईरान की क्रांति के बाद खुमैनी के यह विचार जब सामने आए थे तो साफ हो गया था कि वह एक कठोर रुढ़िवादी सामाजिक व्यवस्था कायम करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने परिवारिक मामलों के लिए धर्मनिरपेक्ष जैसे कदमों को पलट दिया। बाद में महिलाओं की स्वतंत्रता पर पाबंदियां लगाना सत्ता का विशेषाधिकार बन गया। ईरान की बहुत सारी महिलाएं इन बेतुकी बातों को खारिज करती हैं और उनका कहना है कि हमने क्रांति पीछे जाने के लिए नहीं की थी। पर्दा प्रथा पुुरानी व्यवस्था की पहचान बन गया। जो ईरान के सोच-समझ कर अपनाए गए पश्चिम विरोधी तौर-तरीकों का प्रतीक है। ईरान की महिलाएं ड्रैस कोड का ध्यान नहीं रखकर विरोध कर रही हैं। वे दिखा रही हैं कि वे अपनी देह पर अपना नियंत्रण चाहती हैं। वे तय कर रही हैं कि उनके बाल किस डिजाइन के होंगे और उनके कपड़े किस तरह के होंगे। आज के दौर में मध्ययुगीन बर्बरता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। कट्टरपंथी इस्लामी देश महिलाओं की कत्लगाह बनता जा रहा है। क्या ईरान के लोगों को धर्म आधारित सत्ता को पलटने के लिए एक नई क्रांति के लिए एकजुट होना होगा? ईरान की महिलाओं की जंग को पूरी दुनिया से समर्थन मिलना ही चाहिए। अगर इस समय दुनिया नहीं जागी तो यह महिलाओं की निरीह हत्या के समान है। दुनियाभर से यद्यपि हिजाब के खिलाफ महिलाओं की जंग को समर्थन मिल रहा है। लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। ईरान की जेल में 6 साल गुजारने वाली ब्रिटिश ईरानी नागरिक जगारी रेटफ्लिक ने अपना समर्थन जताते हुए अपने बाल काट लिए हैं। अमेरिका, फ्रांस और अन्य देशों में महिलाओं ने समर्थन देना शुरू कर दिया है।ईरान की बहादुर महिलाएं अब तक न तो थकी हैं और न ही उन्हें किसी तरह का डर लग रहा है। युवा लड़कियां दीवारों पर ग्रेफ्टी बना रही हैं और जमीनों पर अपना नाम लिख रही हैं। व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए लड़ रही महिलाओं के जज्बे को पूरी दुनिया सलाम करती है। भारतीय मुस्लिम जो बेवजह हल्ला मचा रहे हैं, उन्हें भारत और इस्लामी कट्टरपंथी देशों में फर्क महसूस होना ही चाहिए। जो लोग बेवजह बयानबाजी कर अपनी राजनीति की दुकानें चमकाना चाहते हैं, सुप्रीम कोर्ट उन्हें पहले ही आइना दिखा चुका है कि हिजाब इस्लाम का जरूरी अंग नहीं।