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क्या कोरोना वायरस (Corona Virus) के वेरिएंट का पूरा क्लस्टर समाप्त हो गया है
बिक्रम वोहरा
क्या कोरोना वायरस (Corona Virus) के वेरिएंट का पूरा क्लस्टर समाप्त हो गया है या वो अगले वार से पहले एकजुट होकर सिर्फ कहीं छिपा बैठा है? यह कहना पर्याप्त होगा कि दुनिया के अधिकांश लोग मानसिक रूप से इसे सामान्य सर्दी जैसा ही मान कर चल रहे हैं और हम कोरोना से पहले वाले सामान्य जीवन की तरफ वापस लौट चुके हैं. अब मास्क (Mask) घर पर लटकते रहते हैं, सोशल डिस्टेंसिंग इतिहास बन चुका है, सैनिटाइजर सूख चुके हैं और हम हजारों की संख्या में एक जगह पर इकट्ठा हो रहे हैं. आईपीएल (IPL) में संख्या के प्रतिबंध का ढोंग एक मजाक बन गया है क्योंकि वहां पर लोग एक दूसरे से चिपके बैठते दिखे.
यहां तक कि मीडिया ने भी कोरोना की रिपोर्टिंग में अपनी रुचि खो दी है और दुनिया के कुछ हिस्सों में कोरोना के बढ़ते मामलों को नजरअंदाज कर रहा है. यह कोई बड़ी बात नहीं है. क्या टीके इतने सफल हैं कि इससे हमारे ईर्द-गिर्द सुरक्षा का एक कवच तैयार हो गया है? विश्व के लगभग 66 प्रतिशत लोगों को किसी न किसी प्रकार का टीका लग चुका है जो वास्तव में उल्लेखनीय है. लेकिन हममें से एक तिहाई लोगों को टीका नहीं लगा है. फिर भी कोविड उन्हें वैसे प्रभावित नहीं कर रहा जैसा कि शुरुआत में देखने को मिला था, जब लोग बड़ी संख्या में मौत के आगोश में जा रहे थे.
आज दुनिया में कोविड के 504,000 मामले हैं
हम सबने अपने लोगों को खोया है. करीबियों को, दोस्तों को, जिन लोगों को हम जानते थे, हमारे दूर के रिश्तेदार. दुख का यह अंतहीन सिलसिला चलता रहा और पूरी दुनिया में करीब साठ लाख से ज्यादा लोग मारे गए. इस वक्त भी विश्व में करीब 5 लाख लोग कोरोना से संक्रमित हैं मगर आम धारणा यही है कि अब कोरोना से लोगों की मौत नहीं हो रही है और यह वायरस अब कमजोर हो चला है. हम इस बात को नहीं समझ रहे कि यह विषैला राक्षस अब भी हमारे आसपास किसी कोने में छिपा बैठा है और हम वायरस को एक बार और हमला करने के लिए एक आसान सा मौका दे रहे हैं.
इस वायरस के अस्तित्व को इनकार करने की मनोदशा इसलिए भी हो सकती है क्योंकि दोबारा कोरोना की उस भयावहता की तरफ लौटने का डर हमारे अंदर घर कर गया है. एक क्रिकेट स्टेडियम में छोटी सी जगह पर हजारों सार्डिन मछलियों की तरह मौजूद चिपके लोगों के बीच दिल्ली से खबर आई कि 13 अप्रैल को दिल्ली के एक स्कूल में बच्चों को सावधान रहने को कहा गया क्योंकि वहां पर बच्चों के बीच कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है. मैंने घबराहट के साथ पढ़ा कि राष्ट्रीय राजधानी में हाल ही में दो लोगों की मौत भी कोरोना से हो गई है.
कोरोना के वर्ल्डोमीटर के मुताबिक, आज दुनिया में कोविड-19 के 504,000 मामले हैं. हर दिन करीब 205,000 कोरोना के नए मरीज इसमें जुड़ते जा रहे हैं. इसका मतलब यह हुआ कि वायरस अब भी हमारे आस-पास मौजूद है और हम इस बात को जानते हुए भी सावधानियों को नजरअंदाज कर रहे हैं. ऐसे में क्या हम स्थिति को समझ पा रहे हैं? हम देख रहे हैं कि इन दिनों कोरोना का कोई खास वेरिएंट बच्चों पर ज्यादा हमला कर रहा है. ऐसे में हमें पहले से ज्यादा सतर्कता बरतनी चाहिए.
हर्ड इम्यूनिटी की बात अचानक हवा हो गई
क्या शुरुआती दिनों में कोरोना को इतने अनाड़ी की तरह से काबू में करने की कोशिश की गई कि पूरी दुनिया में घबराहट फैल गई? अगर हम घबराहट में उत्तेजित नहीं होते तो क्या यह वायरस कम घातक हो सकता था? हर्ड इम्यूनिटी की बात अचानक हवा हो गई. अगर हर्ड इम्यूनिटी इतनी ही कारगर होती तो सैकड़ों साल बाद भी टाइफाइड, हैजा, पेचिश, तपेदिक, चेचक और खसरा से हमें सुरक्षा क्यों नहीं मिली? बैक्टीरिया हो या वायरस, तथ्य यह है कि वे खत्म नहीं होते. यहां तक कि मेडिकल साइंस भी इस मामले में अपेक्षाकृत शांत हो गया है और ऐसा लगता है कि मीडिया भी ऊब चुका है.
अब जब हम यह सोच रहे हैं कि सबसे बुरा दौर गुजर चुका है, कोरोना के हर नये रिपोर्ट के साथ चिंता होती है कि क्या हमारी आर्थिक और वाणिज्यिक जरूरतें हमारे कॉमन सेंस से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है. यह वायरस बिल्कुल हमले को तैयार है. अगर हम लापरवाह और धोखे में रहे तो हो सकता है कि हमारे पास इससे लड़ने की न तो सहनशक्ति बचे न ही साधन. हालात कयामत के दिन की नहीं है, फिक्र इस बात की है कि ऐसा न हो कि हम शुतुरमुर्ग की तरह अपना सिर जमीन में गाड़ कर बैठे रहें और शिकारी हम पर हमला कर दे.
Rani Sahu
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