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दुनिया और आलसियों का देश
क्या भारत के लोग वाकई आलसी हैं?
जाहिर है उपरोक्त लिखी पंक्ति से कितने लोग सहमत हैं, वैसे अधिकांश शोध तो इस बात को सिद्ध करते हैं। हालांकि, भारतीय किशोरों और युवाओं की शारीरिक गतिविधियों और निष्क्रिय व्यवहार का कोई व्यापक मूल्यांकन नहीं किया गया है। इस विषय को लेकर कई रिपोर्ट प्रकाशित हुई हैं और कुछ वर्ष पहले स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यहां तक निष्कर्ष निकाला था कि भारतीय पृथ्वी पर सबसे आलसी लोगों में से एक हैं। कुछ अन्य शोधों में भी परिणाम उत्साहजनक नहीं रहे हैं।
कहते हैं-
हेल्थ इज वेल्थ यानी सेहत ही धन है। हममें से कितने लोग इस पर गंभीरता विश्वास करते हैं। यदि हम शोध के आंकड़ों को देखें तो उपरोक्त बात का हम भारतीयों के लिए कोई खास अर्थ नहीं है। ऐसा क्यों है कि 140 करोड़ की आबादी वाले देश में बमुश्किल कुछ प्रतिशत आबादी स्वयं को स्वस्थ रखने में दिलचस्पी रखती है? क्या हम नहीं जानते कि एक निष्क्रिय जीवनशैली हमारे स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है।
यह सवाल मुझे हमेशा परेशान करता रहा है, क्योंकि इस आधुनिक युग में जब हर विषय की जानकारी उपलब्ध है और जब तथ्य बताते हैं कि हम एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या के कगार पर हैं तो हम चीजों को हल्के में क्यों लेते हैं?
चलिए, मैं आपके संग कुछ चौंकानेवाले तथ्य साझा करता हूं...
भारत को दुनिया की मधुमेह (डायबिटीज) की राजधानी माना जाता है। दुनिया के 50 प्रतिशत मधुमेह रोगी भारत में हैं। दुनिया में मधुमेह पीड़ित छह लोगों में से एक भारत से है। 7 करोड़ भारतीय मधुमेह से गंभीर रूप से पीड़ित हैं।
रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) को लेकर भी कुछ ऐसी ही कहानी है। वर्ष 2017 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार आठ भारतीयों में से एक हाईपरटेंशन (उच्च रक्तचाप) से पीड़ित था, यानी करीब 20.7 करोड़ लोग। इसी प्रकार पीठ दर्द, मोटापा जैसी परेशानियों को शारीरिक गतिविधि से नियंत्रित या रोका जा सकता है।
दुनिया के किसी भी देश की तुलना में भारत सबसे अधिक व्हिस्की की खपत करता है - अमेरिका की तुलना में लगभग तीन गुणा अधिक, जो दूसरा सबसे बड़ा उपभोगकर्ता है। दुनिया में व्हिस्की की प्रत्येक दो बोतलों में से एक भारत में बेची जाती है।
एक अनुमान के अनुसार भारत में करीब 15 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार दुनिया के धूम्रपानकर्ताओं में 15 प्रतिशत लोग भारतीय हैं। तंबाकू जनित रोगों से हर साल 10 लाख से ज्यादा अधिक लोगों की मृत्यु हो जाती है।
ऊपर गिनाई समस्याओं के अलावा स्मार्टफोन की लत एक नई समस्या के रूप में उभरी है। वर्ष 2020 के आंकड़ों की बात करें तो भारत में औसत स्मार्टफोन का उपयोग बढ़कर 7 घंटे हो गया, 70 प्रतिशत उपयोगकर्ता तो कहते हैं कि यह लत उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। लंबी अवधि तक बैठकर स्मार्टफोन का उपयोग करने से मुद्रा की समस्या, गर्दन में दर्द की समस्या, आंखों की समस्या, पीठ की समस्या आदि समस्याएं होती हैं। आप इसे आपदा की विधि का नाम दे सकते हैं।
वर्ष 2020 के आंकड़ों की बात करें तो भारत में औसत स्मार्टफोन का उपयोग बढ़कर 7 घंटे हो गया!
जब हम रोजाना औसतन 7 घंटे स्मार्टफोन देखते हुए बिता सकते हैं तो हमें आधा घंटा शारीरिक गतिविधि करने से कौन रोक रहा है?
कारण...
समस्या यह है कि भारत में शारीरिक गतिविधि/व्यायाम को एक असामान्य, सनक या अभिजात वर्ग के भोग के रूप में देखा जाता है। फिजिकल फिटनेस की कोई परंपरा नहीं है। मूल समस्या की जड़ में स्कूल हैं, जहां खेल के बजाय पढ़ाई को अधिक महत्व दिया जाता है। यही स्थिति घरों में है, जहां बच्चों को पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहा जाता है, ताकि अच्छी नौकरी मिल सके।
हमारे स्कूलों में खेलकूद अनिवार्य है (हालांकि, अक्सर इसका पालन केवल शब्दों से किया जाता है, न की व्यवहारिक रूप से)। 40 साल पहले स्पोर्ट्स की क्लास में शिक्षिका आकर पढ़ाती थी, क्योंकि उससे केवल पाठ्यक्रम के अधूरे हिस्से को पूरा कराना होता था... कमोवेश आज भी वही स्थिति है, खेल को विचार की अपेक्षा केवल विषय के रूप में लिया जाता है।
स्वयं स्पोर्ट्स टीचर फिट नहीं हैं। उन्हें तो खेलों का केवल प्रारंभिक ज्ञान है और खेलों के क्षेत्र में नवीन गतिविधियों की जानकारी तक नहीं है। शहरीकरण के चलते बड़े शहरों में भी स्कूल तंग स्थानों पर हैं और उनमें खेलों के लिए खुले मैदानों नहीं हैं। यदि किसी स्कूल में बच्चों के खेलने के लिए स्थान है तो उसे संभ्रांत स्कूल माना जाता है। सरकार स्कूलों में खेल और योग को अनिवार्य करने के प्रयास कर रही है, लेकिन इसकी पालना के लिए कोई उचित तंत्र विकसित नहीं हो पाया है।
एक देश के तौर पर हम फिटनेस से अधिक फूड (भोजन) के प्रति जुनूनी हैं। कहते हैं, आपने अपने 30 वर्ष कैसे जीएं, यह निर्धारित करता है कि आप 60 की उम्र में कितने स्वस्थ होंगे, लेकिन आज के युवा इससे बात को अनदेखा कर देते हैं। हम क्रिकेट को बाहर जाकर खेलने के बजाय अपने टीवी सेट के सामने बैठकर देखने में ज्यादा खुश होते हैं। एक देश जहां फास्ट फूड कंपनियां/फार्मा कंपनियां/शराब और सिगरेट निर्माता भर-भरकर पैसा बना रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं। जरा एक नजर इनकी स्टॉक कीमतों पर डालें।
कहावत है कि हम जो बचपन में करते हैं, वह हमारी कब्र (अंतिम समय) तक रहता है। इसलिए मैथ्य या साइंस की भांति खेलों को भी स्कूलों में अनिवार्य बनाने की जरूरत है। याद रखें, खेल एक ऐसी शिक्षा है, जो चरित्र निर्माण करती है। फिटनेस के स्तर को बढ़ाने और स्वस्थ रहने का एक बेहतरीन तरीका है।
यह तनाव, अवसाद और उत्कंठा को कम करने का सबसे अच्छा तरीका है। यह मस्तिष्क को तरो-ताजा करता, हमें जीवंत और ऊर्जावान बनाता है। यह स्किल और पर्सनालिटी डेवलपमेंट को विकसित करने का बड़ा अवसर प्रदान करता है। यह मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक गुणों के विकास में मदद करता है।
यह हमारी मनोदशा में सुधार करता है और लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कार्य पर ध्यान केंद्रित करने की हमारी क्षमता को बढ़ाता है। यह नए दोस्त बनाने, अधिक खुलेपन और हमें बुरी आदतों से बचाता है, क्योंकि एक बार जब आप अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत हो जाते हैं तो आप किसी भी तरह की बुराई में बचे रहते हैं। एक बहुत सुंदर उद्धरण है, अपने शरीर का ख्याल रखिए, यह एकमात्र स्थान है, जहां आपको रहना है। इससे अधिक सच कुछ नहीं हो सकता।
नियमित व्यायाम, चाहे वह किसी भी रूप में हो, हमारे भीतर एक महत्वपूर्ण आदत है, क्योंकि यह हमें फिट रखती है, मजबूत हड्डियों का निर्माण करती है, मांसपेशियों को मजबूत करती है, हमारी ऊर्जा को जलाती है और हमें संतुलित वजन बनाए रखने में मदद करती है। एक कहावत है, केवल कार्य और बिना खेल जैक को सुस्त लड़का बनाती है, इसलिए हम कार्यों में संतुलन बनाने का प्रयास करें।
हमारी तेज भागती जिंदगी में फिटनेस कोई सनक नहीं, बल्कि बुनियादी जरूरत है। जैसे हमें सांस लेने के लिए हवा और हमारे शरीर को भोजन की आवश्यकता होती है, वैसे ही हमें स्वस्थ और समृद्ध रहने के लिए शारीरिक गतिविधि की आवश्यकता होती है।
फिट रहो इंडिया...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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