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अमूर्त सांस्कृतिक विरासत ‘योग’ सदियों से चली आ रही ऋषि परंपरा और भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है
स्वामी चिदानंद सरस्वती,
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत 'योग' सदियों से चली आ रही ऋषि परंपरा और भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। भारतीय जीवन पद्धति सनातन संस्कृति, प्राचीन हड़प्पा सभ्यता से लेकर आधुनिक समय तक योग, धर्म, दर्शन और संस्कारों आदि के मिलन से अत्यंत समृद्ध हुई है और इसकी निरंतरता आज भी भारतीय जीवन पद्धति में स्पष्ट दिखाई देती है।
भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक व्यवस्थित रूप सबसे पहले वैदिक युग में ही प्राप्त होता है। उस युग में योग, ध्यान, शास्त्रों की रचना, आयुर्वेद से युक्त जीवन और प्रकृति संरक्षण के अनेक उदाहरण मिलते हैं। भारतीय संस्कृति प्राचीन काल से अत्यंत उदात्त, समन्वयवादी, जागृत एवं जीवंत रही है, जिसमें जीवन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा आध्यात्मिकता का अद्भुत समन्वय स्पष्ट दिखाई देता है।
भारतीय संस्कृति संपूर्ण विश्व को एक परिवार के रूप में स्वीकार करती है। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम् के दिव्य सूत्र में गहरी आस्था रखती है। शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों का विकास ही भारतीय संस्कृति का प्रमुख आधार है। स्वस्थ, नैतिक और समुन्नत जीवन शैली के कारण ही सदियों से हमारा दृष्टिकोण सभी के प्रति उदार रहा है और इस उदार दृष्टिकोण में ध्यान और योग रूपी विद्याओं का महत्वपूर्ण योगदान है। सनातन काल से ही भारत में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए योग द्वारा शरीर, मन और मस्तिष्क को पुष्ट किए जाने का उल्लेख मिलता है, इसलिए लोग निरोग और दीर्घजीवी होते थे।
भारतीय संस्कृति और दर्शन किसी देश या जाति के लिए नहीं, अपितु समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए हैं। अत: भारतीय संस्कृति को सच्चे अर्थ में मानवता की संस्कृति कहा जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को 'मानवता के लिए योग' की थीम को समर्पित कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे चरितार्थ भी कर रहे हैं। योग हमें वैज्ञानिकता के साथ समग्र जीवन शैली के प्रति जागरूक करता है, जिससे जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न होता है। साथ ही, इससे न केवल शांतिप्रिय जीवन पद्धति को बढ़ावा मिलता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति के साथ मानवतापूर्ण संबंध स्थापित करने का संदेश भी प्राप्त होता है। भारत ने योग को हमेशा से सीमा, संस्कृति व भाषा से ऊपर रखा है। इसे सही तरीके से समझा जाए और नियमित अभ्यास किया जाए, तो कई समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है। 'योग' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'युज' शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य जोड़ना एवं एकीकरण करने से है। आध्यात्मिक स्तर पर जुड़ने का अर्थ है, आत्मा का सार्वभौमिक चेतना से मिलन, वहीं व्यावहारिक स्तर पर योग को शरीर, मन और भावनाओं को संतुलित करने तथा सामंजस्य बनाए रखने का एक साधन माना जाता है।
भारत में योग की शुरुआत करीब दस हजार साल पहले हुई थी। यह ऋषियों द्वारा परिष्कृत जीवन पद्धति है। वैदिक संहिताओं के अनुसार, अगस्त्य मुनि ने भारत में योग को सबके जीवन का हिस्सा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ईसा पूर्व दूसरी सदी में महर्षि पतंजलि ने 'पतंजलि योग सूत्र' के माध्यम से योग की विभिन्न विधाओं का सुव्यवस्थित ज्ञान कराने में अद्भुत योगदान दिया। 'पतंजलि योग सूत्र' आधुनिक योग विज्ञान की अत्यंत महत्वपूर्ण रचना मानी जाती है।
कोरोना काल में न केवल भारत, बल्कि वैश्विक स्तर पर सभी ने योग की महत्ता को देखा और जाना कि योग तनाव घटाता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। यह प्राचीन विद्या है और जीवन को निरोगी बनाने की एक दिव्य विद्या है, इसलिए योग, ध्यान, प्राणायाम करके तो देखें। मेरा सभी से यही निवेदन है, 'योग करें, रोज करें और मौज करें।' 'कुछ दिन तो करें योग, फिर देखिए मिट जाएंगे सारे रोग।' कोरोना काल में हम सभी ने अनुभव किया है कि योग हमें भय में नहीं, भाव में जीना सिखाता है। योग स्वस्थ और सुखी रहने के लिए अद्भुत प्रभावी विधि है, इसलिए घर-घर, हर घट, हर घाट पर योग होना चाहिए।
योग सदाबहार है, योग रामबाण है, योग संजीवनी है। योग से तन स्वस्थ और मन विकार मुक्त होता है। मेरा मानना है, जो अवसाद को उत्सव बना दे, वही है योग; अवसाद को भी अवसर बना दे, वही है योग और जो अवसाद को भी प्रसाद बना दे, वही है योग। हम योग को एक टोल फ्री नंबर की तरह उपयोग कर सकते है। जिस प्रकार टोल फ्री नंबर को कोई भी, कहीं से, कभी भी डायल कर सकता है, उसी प्रकार योग भी है। जब तन-मन के लिए सच्चे मन से जागिए, तभी योग साकार हो जाता है। समस्या शारीरिक हो या मानसिक या फिर पर्यावरण की, सभी का समाधान है योग। योग मन और मस्तिष्क के तनाव को दूर करता है। तनाव से मुक्त व्यक्ति ही सही, स्पष्ट और सुव्यवस्थित निर्णय ले सकता है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखें, तो योग अपने भीतर के प्रकाश को जानने और जीने का नाम है। योग के माध्यम से हम जितने गहरे उतरेंगे, उतने शांत होंगे और पाएंगे कि अशांत करने वाले सारे तत्वों की धीरे-धीरे पहचान हो रही है और घने अंधेरे की जगह प्रकाश ले रहा है तथा जीवन निरंतर आनंदमय हो रहा है।
हमारी जीवनशैली सात्विक और आध्यात्मिक; सहयोगी और उपयोगी होगी, तो प्रकृति भी प्रफुल्लित होगी। योग जीवन को सक्रिय और प्रभावी बनाता है। आज बढ़ते प्रदूषण का समाधान केवल प्रकृतिमय जीवन पद्धति और सतत व सुरक्षित विकास में निहित है। यह संदेश योग के माध्यम से जीवन में आता है। अत: योग को आत्मसात कर हम स्वस्थ प्रकृतिमय जीवन जी सकते हैं।
अभी योग का दुनिया में आधिकारिक रूप से सम्मान और बढ़ना चाहिए। योगियों को साथ मिलकर इस दिशा में काम करना होगा। अपने व अपने संगठन के 'लोगो'(प्रतीक चिह्न) और 'ईगो'(अहंकार) को किनारे रखकर लोगों के हित में काम करना होगा। योग के प्रचार के लिए किसी प्रतिशोध की नहीं, बल्कि शोध की यात्रा करनी पडे़गी। पिछली बार अमेरिका गया, तो वहां जो भी योगी मिलने आए, सबने कहा, योग करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। निस्संदेह, युगों बाद दुनिया ने योग के महत्व को पहचान लिया है। अब योग का कोई विकल्प नहीं।
सोर्स- Hindustan Opinion Column
Rani Sahu
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