सम्पादकीय

एनपीएस की कतरब्यौंत

Rani Sahu
29 May 2023 1:49 PM GMT
एनपीएस की कतरब्यौंत
x
By: divyahimachal
आइंदा डाक्टरों की भर्ती में भी हिमाचल सरकार ने व्यवस्था परिवर्तन के पैगाम चस्पां करते हुए ‘एनपीएस’ यानी नॉन प्रैक्टिस अलाउंस हटा दिया है। सरकारी सेवा में डाक्टरों की सौ फीसदी प्रतिबद्धता के लिए एनपीएस का प्रावधान उन्हें नैतिकता का पाठ पढऩे को बाध्य करता था, लेकिन अब नई भर्तियों के डाक्टर इस तरह के लाभ से वंचित होंगे। इस तरह बीस प्रतिशत की दर से मिलने वाले नॉन प्रैक्टिस अलाउंस की कटौती से अब मेडिकल प्रोफेशन की नई व्याख्या होगी। चिकित्सक संघ ऐसे फैसले से नाखुश नजर आता है और सवाल यह पैदा जरूर होगा कि क्या आगे चलकर सरकारी डाक्टरों को इसके बदले निजी प्रैक्टिस या निजी अस्पतालों में ड्यूटी के बाद काम करने की छूट मिलेगी। बहरहाल व्यवस्था परिवर्तन की दूरबीन से यह तो देखा जा रहा है कि कहां धन का अपव्यय हो रहा है या वेतन विसंगतियों को एक जैसा या सीधा किया जाए। ऐसे कुछ अन्य प्रोफेशनल हैं जो ड्यूटी के बाद अपने हुनर के कारण अतिरिक्त कमा सकते हैं, लेकिन उन्हें सरकारी तौर पर ऐसा न करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन नहीं दिए गए।
डाक्टरों को नैतिकता के बदले वित्तीय प्रोत्साहन देने की परंपरा, कर्मचारियों के एक बड़े वर्ग की आंखों में खटकती रही है। दूसरी ओर निजी क्षेत्र के साथ अपनी गलबहियों के कारण कई वरिष्ठ व विशेषज्ञ संदेह के घेरे में आते रहे हैं। देखना यह होगा कि सरकार एनपीएस का फैसला लेते हुए धन की बचत कर रही है या नीतिगत सुधार ला कर ऐसी किसी गुंजाइश को सदा-सदा के लिए हटा रही है। जो भी हो इस तरह के फैसले का साहस दिखा कर सुक्खू सरकार ने एक ऐसी शुरुआत की है जिससे ‘विशेष कैटेगरी’ में होने के लाभों की कतरब्यौंत होगी। फिलहाल यह फैसला नई भर्तियों पर लागू होगा और इसके माध्यम से डाक्टरी व्यवस्था की परिभाषा से वित्तीय प्रयोग होगा। यह फैसला एक तरह की नैतिकता की फीस बन कर एनपीएस को अपना वित्तीय अधिकार मानने वाले डाक्टरों की पगार को मॉनिटर कर रहा है। जाहिर है ओपीएस बहाली के पलड़े पर कई ऐसे फैसले भी सवार होंगे ताकि वेतन के बिलों का प्रबंधन मैनेज हो सके। इसे हम आर्थिक सुधार की दृष्टि से जोड़ कर देखें, तो भविष्य में सरकार को भी अपने खर्चों में कटौती, फिजूलखर्ची में पूर्ण रोक तथा सरकार का कद घटाना होगा।
अभी ऐसा कोई कदम दिखाई नहीं दे रहा, लेकिन कड़े निर्णय लिए बिना कर्जदार हिमाचल खुद को आर्थिक दबाव से बचा नहीं पाएगा। कर्मचारी-अधिकारी बिरादरी को भी अपने-अपने संदर्भों में प्रदेश की कंगाली देखनी होगी। सरकारी क्षेत्र के एक कर्मचारी या अधिकारी को मासिक पगार देने के बदले प्रदेश के खजाने को वापसी में जो मिलता है, वह प्रदेश के प्रति व्यक्ति के हिसाब से बढ़ते ऋण की दर से मालूम हो जाएगा। करीब 75 हजार करोड़ के ऋण की ब्याज अदायगी ही अगर अतिरिक्त कर्ज का बोझ बढ़ा रही है, तो इस स्थिति का कहीं तो अंत करना होगा। हम यह नहीं जानते कि एनपीएस बंद करके सरकार अपने खजाने की कितनी रक्षा कर पाएगी या इस दस्तूर को कितना आगे बढ़ा पाएगी, लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि वर्तमान सरकार कठिन राहों पर चलते हुए कठिन फैसले ले सकती है। यह मजबूरी हो सकती है और सत्ता का मंतव्य भी कि डाक्टरों के वित्तीय प्रोत्साहन के बाद सरकार कहां-कहां खर्च घटाने को बाध्य होती है। चिकित्सक संघ के लिए यह मामला अस्तित्व से जुड़ा है, लेकिन देखना यह होगा कि सरकार इस तरह के आक्रोश को किस तर्क से शांत करती है। ऐसे कड़े फैसलों को एक तयशुदा नीति व आर्थिकी सुधारों के पैमानों पर लिया जाए तो सहमति का माहौल बनाया जा सकता है।
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story