सम्पादकीय

सारा खेल समझ का है, जिसके विकसित होते ही भेदभाव खत्म हो जाते हैं

Gulabi Jagat
15 March 2022 8:25 AM GMT
सारा खेल समझ का है, जिसके विकसित होते ही भेदभाव खत्म हो जाते हैं
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दुनिया में कई तरह के भेद हैं। हम दुनिया वालों ने सबसे बड़ा भेद बना रखा है स्त्री-पुरुष का
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
दुनिया में कई तरह के भेद हैं। हम दुनिया वालों ने सबसे बड़ा भेद बना रखा है स्त्री-पुरुष का। ऊपर वाले ने तो इन दोनों के बीच भेद नहीं रखा था। अपने-अपने अहंकार के कारण इनमें भेदभाव का खेल नीचे वालों ने खेला। चौदह वर्ष वनवास के बाद जब श्रीराम अयोध्या लौट रहे थे तो उन्हें भीलों का राजा निषाद फिर से मिला और तब राम ने जो किया उस पर तुलसी ने एक छंद लिखा जिसकी पहली पंक्ति है- 'लियो हृदय लाइ कृपा निधान सुजान रायं रमापती।'
सुजानों के राजा लक्ष्मीकांत भगवान ने उसे गले लगा लिया। यहां तुलसी ने राम के लिए 'सुजान' लिखा है। सुजान यानी सयाना, समझदार। साथ में 'लक्ष्मीकांत' लिखकर सीताजी को भी याद किया गया। राम उस समय समाज की सबसे बड़ी हस्ती, निषाद सबसे छोटा व्यक्ति, लेकिन उसे गले लगाकर भगवान ने भेद मिटाया था। सारा खेल समझ का है।
जिस दिन पति-पत्नी के बीच समझ विकसित होती है, जिस दिन महिला-पुरुष का भेद मिटता है, उस दिन समाज के सारे भेदभाव बहुत छोटे या लगभग समाप्त हो जाते हैं। तो माता-बहनों के मामले में पुरुषों को विशेष रूप से सयाना होना चाहिए। महिलाओं के भीतर सयानापन स्वाभाविक रूप से उतर आता है, जबकि पुरुष को इसके लिए प्रयास करना पड़ता है। दोनों के सयानेपन का यदि मणिकांचन योग हो जाए तो स्वर्ग की कल्पना घर बैठे साकार हो सकती है।
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