सम्पादकीय

नए शीतयुद्ध में पश्चिम का सामना कमजोर और असंगठित ईस्टर्न-फ्रंट से है

Gulabi Jagat
29 March 2022 8:41 AM GMT
नए शीतयुद्ध में पश्चिम का सामना कमजोर और असंगठित ईस्टर्न-फ्रंट से है
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आज जहां सबका ध्यान पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूस की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था पर है
रुचिर शर्मा का कॉलम:
आज जहां सबका ध्यान पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूस की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था पर है, वहीं उसका सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी चीन भी पूरी तरह से ठीक नहीं है। वास्तव में आज किसी और बड़ी अर्थव्यवस्था के सामने इतने बड़े संकट नहीं हैं। बीते कुछ हफ्तों में चीन का प्रॉपर्टी सेक्टर अभूतपूर्व वित्तीय संकट से ग्रस्त हुआ है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था अस्थिर हो गई है।
इसकी उम्मीद कम ही है कि यूक्रेन पर चढ़ाई में बीजिंग रूस का आक्रामक रूप से साथ देगा। चीन के बड़े ऋणदाता आज दुविधा की स्थिति में हैं और नए कर्ज देने से कतरा रहे हैं। वे निश्चय नहीं कर पा रहे हैं कि प्रॉपर्टी डेवलपरों के पास अस्थायी रूप से पैसों का अभाव है या वे दिवालिया होने के कगार पर आ चुके हैं। कोई सूरत न देखकर डेवलपरों को ज्यादा दरों पर विदेशों से कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ रहा है।
विदेशी चीनी बाजार के हाई-यील्ड्स बॉन्ड्स और सरकारी बॉन्ड्स के बीच का अंतर अब 3000 बेसिस पॉइंट्स तक पहुंच गया है। इससे पहले इतना अंतर 2008 की आर्थिक मंदी में ही देखा गया था। चीन में विकास के लिए प्रॉपर्टी केंद्रीय महत्व की चीज है। चीन की जीडीपी का 25 प्रतिशत और बैंक सम्पत्तियों का 40 प्रतिशत हिस्सा प्रॉपर्टी मार्केट से जुड़ा है। विदेशी पूंजी पर निर्भरता बढ़ गई है।
फरवरी में विदेशियों ने चीन के स्थानीय मुद्रा सरकारी बॉन्ड्स को ऐतिहासिक तेजी से बेचा, जो कि इससे पहले के अधिकतम मासिक स्तर का दोगुना है। आज चीन में वैसी ही अनिश्चितताएं दिखाई दे रही हैं, जैसी 2008 की मंदी में दुनिया में दिखलाई दी थीं। तब ऋणदाता यह निश्चित नहीं कर पा रहे थे कि कौन-सा बड़ा लेनदार इस संकट से सफलतापूर्वक बाहर आ सकेगा और क्रेडिट बाजार गतिरोध का शिकार हो गया था।
चीनी नीति निर्माताओं को पता होगा कि ऐसे में वे लड़ाई की दिशा में नहीं जा सकते हैं। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शीर्ष आर्थिक सलाहकार लियू हे ने हाल ही में यह कहकर बाजार को शांत करने की कोशिश की थी कि सरकार प्रॉपर्टी सेक्टर की समस्याओं का इलाज खोज रही है। उन्होंने बड़े तकनीकी संस्थानों के विनियमन और बढ़ते कोविड-मामलों पर भी सरकार के कदमों के बारे में बताया।
इससे बाजार को थोड़ी राहत मिली, लेकिन प्रॉपर्टी सेक्टर में खतरा बरकरार है। अर्थव्यवस्था में गति लाने के लिए केंद्रीय बैंक के प्रयासों के बावजूद चीन में पूंजीगत विकास कमजोर बना हुआ है, जो इस बात के आरम्भिक संकेत हैं कि उसकी भी दशा जापान जैसी होती जा रही है। 1990 के दशक में जापान भी इसी स्थिति में था, जब वहां कर्ज बढ़ रहे थे, काम करने वाली आबादी घट रही थी और बाजार में उथल-पुथल थी।
तभी जापान मंदी के जाल में फंसा था, क्योंकि केंद्रीय बैंक के द्वारा सिस्टम में चाहे जितनी लिक्विडिटी पम्प की जाए, ऋणदाता झिझक से भर गए थे। काम करने वाली आबादी का कम होना यानी विकास में सुस्ती। बीते छह दशकों में 200 देशों के आंकड़े देखने पर मैंने पाया कि 38 ऐसे मामले हैं, जिनमें किसी देश की कामकाजी आबादी पूरे दशक तक घटती रही थी।
इन देशों की जीडीपी विकास दर औसतन 1.5 प्रतिशत थी और केवल तीन ही मामले ऐसे थे, जिनमें यह 6 प्रतिशत को पार कर पाई। ये तीनों छोटे देश थे। आज बीजिंग की उत्पादकता जैसे घट रही है, उससे लगता तो नहीं कि वह 6 प्रतिशत के अपने ग्रोथ-टारगेट को प्राप्त कर सकेगा। सरकार तकनीकी जैसे उच्च-उत्पादकता वाले क्षेत्रों पर नए नियम लाद रही है और महामारी को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठा रही है।
चीन की जीरो-कोविड पॉलिसी ने उसकी एक बड़ी आबादी को नए वैरिएंट्स के लिए कमजोर बना दिया है। अब जब ये वैरिएंट्स बढ़ रहे हैं तो चीन नए लॉकडाउन लगा रहा है। फैक्टरी आउटपुट और रीटेल सेल्स जैसी गतिविधियां ठप हो रही हैं।
चीन की समस्याओं पर इतना ध्यान नहीं दिया जा रहा है। लेकिन वह आज इस स्थिति में नहीं है कि विदेशी पूंजी के लिए अपने दरवाजे बंद कर दे। युद्ध में रूस का साथ देने और पश्चिमी ताकतों से लड़ाई मोल लेने से पहले चीन दो बार सोचेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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