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मोदी विरोधी उनके खिलाफ किसी भी हद तक जा सकते हैं
प्रदीप सिंह। कर्नाटक के उडुपी से उठा हिजाब विवाद एक तरह से अंतरराष्ट्रीय रूप ले चुका है। जो दुनिया इससे पहले हिजाब से मुस्लिम महिलाओं को मुक्ति दिलाने का अभियान चला रही थी, उसे अचानक याद आया कि अरे हिजाब तो इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है। हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा हो या न हो, लेकिन मोदी सरकार को अस्थिर करने के षड्यंत्र का हिस्सा तो है ही। पिछले ढाई साल में यह तीसरी कोशिश है। मोदी देश में तो अपने राजनीतिक विरोधियों की आंखों की किरकिरी बने ही हुए हैं, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के एक हिस्से को भी वह रास नहीं आ रहे हैं। ये दोनों मोदी विरोधी ताकतें मिल गई हैं। दोनों का लक्ष्य एक ही है कि या तो मोदी कमजोर हों और उनके अनुसार चलें या फिर सत्ता से बाहर हो जाएं।
चूंकि मोदी के खिलाफ कोई प्रभावी मुद्दा मिल नहीं रहा, इसलिए भारतीय जनतंत्र को एक अंधेरी गली में धकेलने का प्रयास हो रहा है, जहां अराजकता का बोलबाला हो। मोदी को पता था कि पहली कोशिश सैन्य ताकत के जरिये होगी यानी सीमा पर दबाव बनाकर। इसलिए प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही वह युद्धस्तर पर सेना को सुसज्जित करने और रक्षा उत्पादन के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के अभियान में जुट गए। इसके बाद मोदी विरोधियों की ओर से दूसरा रास्ता अपनाया गया-अराजकता और सांप्रदायिकता का। अराजकता के लिए पहला मुद्दा चुना गया नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के विरोध का। मोदी विरोधी ताकतों की ओर से अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने पर भी विचार हुआ, लेकिन शायद लगा कि इन दोनों मुद्दों पर कामयाबी कठिन होगी। दोनों ही मुद्दे दशकों से लोगों के मानसपटल पर थे और भाजपा के मूल मुद्दे रहे हैं। इसलिए सीएए का मुद्दा चुना गया। पूरी तैयारी करके दिल्ली में पहले अराजकता पैदा की गई, फिर दंगा कराया गया। इसके बाद कथित किसान आंदोलन के बहाने एक और कोशिश हुई।
गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर जो कुछ हुआ, वह सिर्फ और सिर्फ केंद्र सरकार के संयम के कारण भयानक त्रासदी में नहीं बदला। प्रधानमंत्री ने अपनी छवि पर धक्का लगने का जोखिम उठाकर भी उसे निपटा दिया। अफसोस की बात यह रही कि दोनों मुद्दों पर देश की सर्वोच्च अदालत अराजक तत्वों से सहमी हुई नजर आई। अब तीसरा वार हिजाब के नाम पर हो रहा है। इसके पीछे वही मानसिकता है, जिसने अकबर को सहिष्णु और शिवाजी को असहिष्णु बना दिया। हिजाब के बहाने हिंदुओं को असहिष्णु और मुसलमानों को पीड़ित बताया जा रहा है। जो तत्व यह सब कर रहे हैं, वे देश को जोड़ने की हर कोशिश के प्रति संदेह का माहौल बनाते हैं
और तोड़ने वाले हर काम को कभी पंथनिरपेक्षता और कभी अल्पसंख्यकों के अधिकारों की चिंता के रूप में पेश करते हैं। याद कीजिए, किसान हित के नाम पर करीब एक साल तक दिल्ली की सीमा पर जो
लोग सड़कों पर कब्जा करके बैठे रहे, उनके पक्ष में देश और विदेश में क्या-क्या नहीं लिखा गया? मोदी सरकार को हृदयहीन, किसान विरोधी, जनतंत्र विरोधी आदि करार दिया गया।
जिन्होंने यह सब किया और जो कथित तौर पर मौलिक अधिकारों की चिंता में दुबले होते रहते हैं, उनके मुंह से कनाडा के ट्रक ड्राइवरों के समर्थन में एक शब्द नहीं निकला। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को कोई जनतंत्र विरोधी और फासिस्ट नहीं कह रहा। जस्टिन ट्रूडो किसान आंदोलन के समय भारत को जितना उपदेश दे रहे थे, वह सब हवा हो गया। कहावत है, पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे आचरहिं ते नर न घनेरे। जस्टिन ट्रूडो को अब समझ आ रहा होगा कि मोदी उनसे कितने बड़े और दूरदर्शी नेता हैं।
दरअसल हिजाब, किसान और सीएए सब बहाना हैं। यह 2024 की तैयारी है। जो लोग 2014 और 2019 में मुंह के बल गिरे, वे मोदी सरकार के खिलाफ किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। इसके लिए वे मुसलमानों का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें पता है कि मुसलमान 'इस्लाम खतरे में है' के नाम पर तुरंत मैदान में उतर आता है। दुनिया भर में फैले भारतीय मूल के तमाम लेखकों, समाजशास्त्रियों और पत्रकारों का एक वर्ग यह बताने में लगा हुआ है कि जाति के आधार पर भारतीय समाज में कितना शोषण होता है। मोदी को इसका अंदाजा था। इसलिए जातीय चेतना को मद्धिम करने के लिए उन्होंने राष्ट्रवाद को सशक्त करने और लाभार्थी वर्ग बनाने का रास्ता चुना। एक और तरीका है, जिसे उन्होंने गुजरात में आजमाया था। वह है शहरीकरण की रफ्तार बढ़ाना। हाईवे, एक्सप्रेसवे, एयरपोर्ट, रेलवे लाइन, बंदरगाह, जल परिवहन, मेट्रो और नगरीय रेल नेटवर्क का विस्तार जैसे तमाम काम आने वाले समय में शहरीकरण की रफ्तार को तेज करेंगे। शहरी जीवन में आकर व्यक्ति अपने जातीय आग्रह की जकड़न से निकलने लगता है।
यह कोई सामान्य बात नहीं है कि कर्नाटक के एक जिले में उपजे हिजाब विवाद पर आर्गेनाइजेशन आफ इस्लामिक कोआपरेशन भी कूद पड़ा। भारत सरकार ने सख्ती से इसका जवाब दिया है। आपको सीएए, किसान आंदोलन और अब हिजाब मुद्दे के तार जुड़े हुए नजर आएंगे। जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव का समय नजदीक आता जाएगा, यह षड्यंत्र तेज होता जाएगा, क्योंकि इन अंतरराष्ट्रीय ताकतों को एक बात समझ में आ गई है कि भारत को कमजोर करना है तो मोदी को कमजोर करना पड़ेगा। मोदी इन ताकतों की भारत की डेमोग्राफी बदलने के रास्ते का भी बड़ा रोड़ा बन गए हैं।
कोविड महामारी के बाद विश्व व्यवस्था में बदलाव आ रहा है। मोदी के नेतृत्व में भारत की भूमिका और बड़ी होने वाली है। भारत के उभार को रोकना अब कठिन है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की निरंतर बुलंद होती आवाज से बहुत सी ताकतों के पेट में दर्द हो रहा है। बाहर के दुश्मन से लड़ना अपेक्षाकृत हमेशा आसान होता है, बजाय अंदर के। इसलिए मोदी के सामने चुनौती बड़ी भी है और कठिन भी। इसलिए वक्त की जरूरत है कि देश भितरघातियों से सावधान रहे। भीतर का दुश्मन हमेशा दोस्त का चोला पहनकर आता है। जब तक आपको समझ में आता है, देर हो चुकी होती है। तो जागिए, इससे पहले कि देर हो जाए।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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