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- कोरोना के खिलाफ जंग...
आग लगने पर कुआं खोदना समझदारी नहीं, बल्कि बुद्धिमता यही है कि पहले ही पानी की व्यवस्था होनी चाहिए। मुसीबत के प्रति सावधानी आवश्यक है और कोरोना जैसी महामारी का दंश दुनिया के नक्शे पर मौजूद 90 फीसदी झेल चुके हैं। भारत ने अपने 1,56,000 से ज्यादा नागरिक इसी कोरोना की चपेट में आते हुए देखे हैं, इसीलिए हम आज भी अलर्ट हैं परन्तु सावधानी में चूक ठीक इसी तरह है कि सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। दिल्ली और देश ने कोरोना के खिलाफ एक वर्ष तक करोना महामारी से लम्बी जंग लड़ी, तब कहीं जाकर इस पर विजय के लक्षण दिखाई दिए। पर जरा सी ढील का परिणाम सारा काम खराब कर रहा है। पीएम मोदी ने देशवासियों के नाम एक ही मंत्र दिया था कि जब तक दवाई नहीं, कोरोना में ढलाई नहीं परन्तु लोगों ने आरम्भ में इसका पालन किया और बाद में ढील देनी शुरू कर दी।
महाराष्ट्र, केरल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और पंजाब में कोरोना के नए केस एक बार फिर बढ़ने लगे हैं तो यह एक खतरे की घंटी है, जिसे सुनकर आंखें मूंद कर हम सोने की कोशिश करके खुद को भ्रमित नहीं कर सकते। अगर चिकित्सा की तुलना में परहेज को महत्व दिया जाए तो सब ठीक, वर्ना महामारी सिर पर मंडरा रही है और इन पांच राज्यों में संक्रमण के केस बढ़ने से दिल्ली में एक बार फिर सतर्कता बढ़ाई है परन्तु हमारा मानना है कि बीमारी से सावधानी को जीवन का अंग बनाना और इसे मानना दोनों ही आवश्यक हैं। किसी भी सूरत में हम ये आंकड़े भुला नहीं सकते। विदेश में अभी भी एक करोड़ 11 लाख से ज्यादा एक्टिव केस हैं। सम्पूर्ण विजय के बाद जश्न मनाना चाहिए लेकिन लोग आधी अधूरी जीत के बाद मास्क छोड़ कर सार्वजनिक जीवन में उतरे हुए हैं। सोशल डिस्टन्सिंग के नियम से दूर हो रहे हैं, यह प्रवृत्ति बेहद घातक है। हमने दो वैक्सीनेशन ईजाद कीं। टीकाकरण सफलतापूर्वक चल रहा है लेकिन हम सफलता के आगाज को ही पूर्ण परिणाम मान कर ढिलाई बरतेंगे तो कोरोना दानव झपट्टा मारने को तैयार है।