सम्पादकीय

निष्ठा, प्रतिष्ठा और अपनों के बदले तेवरों से दिलचस्प हुआ यूपी में राज्यसभा चुनावों का नजारा

Gulabi Jagat
25 May 2022 8:26 AM GMT
निष्ठा, प्रतिष्ठा और अपनों के बदले तेवरों से दिलचस्प हुआ यूपी में राज्यसभा चुनावों का नजारा
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उत्तर प्रदेश से राज्यसभा की 11 सीटों के चुनाव के लिए सियासी चौसर सज गई है
रंजीव |
उत्तर प्रदेश से राज्यसभा की 11 सीटों के चुनाव (Rajya Sabha Elections) के लिए सियासी चौसर सज गई है. इसमें सहयोगी दलों की निष्ठा परखी जाएगी तो वहीं बीजेपी और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) से टिकट पाने की जुगत में लगे बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा का भी इम्तिहान होगा. इन चुनावों के लिए नामांकन मंगलवार, 24 मई से शुरू हो गया है. यूपी से राज्यसभा (UP Rajya Sabha Seats) की जो 11 सीटें खाली हो रही हैं, उनमें बीजेपी के पास पांच, एसपी के पास तीन, बीएसपी के पास दो और कांग्रेस के पास एक सीट है. कोरम के हिसाब से 1 सीट जीतने के लिए 37.63 (लगभग 38) वोटों की जरूरत होगी. बीजेपी गठबंधन के पास 273 विधायक हैं और ऐसे में बीजेपी की 7 सीटों पर जीत पक्की है और वह प्रथम वरीयता के बचे हुए वोट के साथ दूसरी वरीयता के वोटों को जोड़कर अपना आठवां प्रत्याशी भी उतारने और जीत जाने की स्थिति में होगी. जिसके लिए सहयोगी दलों की निष्ठा गठबंधन के प्रति बने रहना जरूरी होगा.
दूसरी तरफ 125 सीटों वाले एसपी गठबंधन की 3 सीटों पर जीत तय है. अगर गठबंधन एकजुट होकर चुनाव लड़ जाता है तो प्रथम वरीयता के बचे हुए करीब एक दर्जन वोट के साथ एसपी अपना चौथा प्रत्याशी उतारने की सोच सकती है. ऐसे में चुनाव की नौबत आएगी और फिर मामला दिलचस्प हो जाएगा क्योंकि ऐसी स्थिति में विधायकों की दलीय निष्ठा डगमगाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. चूंकि राज्यसभा के चुनाव में विधायकों को अपना वोट दिखाकर डालना होता है ऐसे में इन चुनावों में किसी बड़े पाला बदल की संभावना कम ही है, लेकिन दोनों बड़ी पार्टियों यानी बीजेपी और एसपी के लिए अपने गठबंधन के सहयोगियों को साधे रखने की बड़ी चुनौती है.
समाजवादी पार्टी को अपने सहयोगियों को संभाले रखना होगा
हालांकि, किसी ने अभी प्रत्याशियों के नामों का ऐलान नहीं किया है, लेकिन विपक्षी खेमे में बिखराव साफ-साफ दिखाई दे रहा है. मसलन जेल से रिहा होकर विधायक पद की शपथ ले चुके एसपी नेता आजम खान के लगातार आ रहे बयान इस ओर संकेत करते हैं कि एसपी नेतृत्व से उनकी अनबन अभी खत्म नहीं हुई है. वहीं एसपी के टिकट पर जीते शिवपाल यादव भी बागी तेवर अपनाए हुए हैं. जेल से रिहा होने के बाद आजम खान की एसपी मुखिया अखिलेश यादव से अभी तक कोई मुलाकात नहीं हुई है, लेकिन शिवपाल यादव और आजम दो बार मुलाकात कर चुके हैं जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इन दोनों नेताओं के बीच कोई न कोई खिचड़ी जरूर पक रही है.
वहीं समाजवादी पार्टी गठबंधन के प्रमुख घटक दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभाएसपी) के नेता ओमप्रकाश राजभर ने बीते दो दिनों में लगातार एसपी मुखिया अखिलेश यादव के खिलाफ बयानबाजी की है. पहले तो उन्होंने विधानसभा का सत्र शुरू होने पर राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान समाजवादी पार्टी के विधायकों के प्रदर्शन और नारेबाजी पर आपत्ति जताई, वहीं अगले ही दिन यह भी कहा कि अखिलेश यादव को एसी के कमरे वाली राजनीति छोड़कर 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटना होगा.
उनके इन बयानों के तेवर से ऐसा लग रहा है कि राज्यसभा चुनाव में तीनों सीटें जीतने के लिए गठबंधन के सभी सहयोगियों का पूरा समर्थन पाने की समाजवादी पार्टी की कोशिश इतनी आसान नहीं होगी, क्योंकि एक और सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी ने राज्यसभा चुनाव के मौके पर अभी तक खामोशी ओढ़ रखी है. ऐसी संभावना जताई जा रही है एसपी अपने 3 प्रत्याशियों में से एक प्रत्याशी के तौर पर जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजेगी, लेकिन इसमें बड़ा पेंच यह है कि उसे ओमप्रकाश राजभर को भी संतुष्ट करना होगा. अगर समीकरण ऐसे ही बनते हैं तो अगले कुछ महीने में होने वाले विधान परिषद के चुनाव में सुभाएसपी के लिए एसपी को 1 सीट छोड़नी पड़ सकती है.
बीजेपी गठबंधन की 7 सीटें पक्की हैं
एसपी के लिए प्रत्याशियों के चयन में चुनौती इतनी भर नहीं है, क्योंकि आजम खान अपने वकील और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल को एसपी की ओर से राज्यसभा में भेजे जाने की संभावना के सवाल पर यह कह चुके हैं कि इससे अच्छी बात कोई नहीं हो सकती. ऐसे में यह माना जा रहा है कि उनकी नाराजगी का एक सिरा कपिल सिब्बल के लिए टिकट सुनिश्चित करने से भी जुड़ता है. यानी सिब्बल को एसपी प्रत्याशी बनाए तो रूठे आजम मान सकते हैं.
यदि जयंत चौधरी और कपिल सिब्बल को एसपी को टिकट देना पड़ा तो उसके पास अपनी पार्टी के लिए एक ही सीट बचेगी और जिस पर नाम तय करना आसान नहीं होगा, क्योंकि मुस्लिम समुदाय के बीच एसपी को लेकर उठ रहे हालिया सवालों के दौर में पार्टी की एक मजबूरी यह भी है कि वह एक प्रत्याशी इस समाज से भी बनाए. एसपी के जिन नेताओं का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है उनमें रेवती रमन सिंह, सुखराम सिंह यादव और विशंभर निषाद शामिल हैं. इनमें से किसी को पार्टी दोबारा मौका देगी इसके आसार कम ही हैं. इनमें सुखराम सिंह यादव के हाल के दिनों में बीजेपी के करीब जाने के पर्याप्त संकेत मिलते रहे हैं.
बीजेपी के जिन नेताओं का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है वे हैं संजय सेठ, सुरेंद्र नागर, जफर इस्लाम, शिव प्रताप शुक्ला और जयप्रकाश निषाद. इनमें से पार्टी किसी को दोबारा मौका देगी या नहीं यह देखना दिलचस्प होगा. वहीं बीजेपी के खेमे में नरेश अग्रवाल समेत कई अन्य बड़े नाम भी चर्चा में हैं. बीजेपी गठबंधन के लिए भी बड़े चेहरों के समायोजन के साथ सहयोगियों को साधने की भी चुनौती रहेगी. सत्तारूढ़ बीजेपी के पास 255 विधायक हैं, जबकि उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल सोनेलाल के पास 12 और निषाद पार्टी के 6 विधायक हैं. इस आंकड़े के साथ बीजेपी गठबंधन की 7 सीटें पक्की हैं. जिसके बाद गठबंधन के पास 12 विधायक बचेंगे. राजा भैया के जनसत्ता दल के दो विधायकों का भी बीजेपी को साथ मिल सकता है और पार्टी इनके सहित दूसरी वरीयता के वोटों के साथ आठवीं सीट जीतने की स्थिति में होगी.
कांग्रेस और बीएसपी एक भी उम्मीदवार नहीं उतार पाएगी
वहीं यदि वह नवां उम्मीदवार उतारती है तो उसे एसपी गठबंधन में तगड़ी सेंधमारी करनी होगी यानी पक्ष और विपक्ष दोनों के गठबंधन को तय से अधिक सीटों पर जीत के लिए दूसरे पाले के विधायकों की निष्ठा बदलवानी होगी जो सेंधमारी से ही संभव होगी. यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों पाले अभी-अभी हुए विधानसभा चुनाव की पृष्ठभूमि और अगले कुछ महीने में होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव के पहले ऐसा कोई राजनीतिक जोखिम उठाते हैं या राज्यसभा सीटों के इन चुनावों को निर्विरोध संपन्न करवाने को ही प्राथमिकता देते हैं.
इन चुनावों की एक खास बात यह भी है कि कभी यूपी में सरकार चला चुकी कांग्रेस और बीएसपी के पास इतने विधायक भी नहीं हैं कि वह अपना कोई प्रत्याशी उतारने के लिए प्रस्तावक भी जुटा सके. बीएसपी के सतीश चंद्र मिश्र और अशोक सिद्धार्थ का कार्यकाल भी खत्म हो रहा है, लेकिन पार्टी इस स्थिति में नहीं है कि किसी को राज्यसभा में भेज सके.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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