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- नजरिया तो वही है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर कोरोना महामारी के आकलन, प्रबंधन और वैक्सीन नीति के बारे में अपनी सरकार की गलतियों को स्वीकार करते, तो वे पूरे देश के नेता के रूप में बोलते नजर आते। इस महामारी से आहत आम लोग और उनके विरोधी वर्तमान मनोदशा के बीच भूल-चूक लेनी-देनी की सोच से आगे बढ़ने और मिल-जुल कर उस मुसीबत का सामना करने के लिए तत्पर होते, जो देश पर आई हुई है। लेकिन प्रधानमंत्री अपनी भूल को अपनी उपलब्धि बताने की सोच के साथ आए। वैक्सीन नीति में बदलाव किया, लेकिन पहले हुई गड़बड़ी के लिए राज्य सरकारों को जिम्मेदार ठहरा दिया। प्रबंधन में हुई घोर गड़बड़ी का दोष अपने पहले की सरकारों पर डाल दिया। झूठ नैरेटिव सेट करने की सोच से वे नहीं उबरे। तो जाहिर है, जो लोग उनके अंध समर्थक नहीं हैं, उनमें वैसी ही तीखी प्रतिक्रिया हुई। नतीजा है कि नरेंद्र मोदी और उनके समर्थक अपने नैरेटिव के साथ चलते रहेंगे और बाकी लोग अपनी समझ के साथ। देश में इस आपदा काल में विभाजन तीखा बना रहेगा।