सम्पादकीय

राज्यों में कुर्सी के लिए उठापटक भारतीय राजनीति को कभी नीरस नहीं होने देती

Gulabi
7 Jun 2021 11:42 AM GMT
राज्यों में कुर्सी के लिए उठापटक भारतीय राजनीति को कभी नीरस नहीं होने देती
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तीन राज्यों में इन दिनों काफी राजनीतिक हलचल मची हुई है

अजय झा। तीन राज्यों में इन दिनों काफी राजनीतिक हलचल मची हुई है. पंजाब (Punjab), उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और कर्नाटक (Karnataka) के मुख्यमंत्रियों की कुर्सी डोलती दिख रही है. जहां पंजाब में कांग्रेस पार्टी (Congress Party) सत्ता में है, वहीं बाकी दो राज्यों में बीजेपी की सरकार है. जनतंत्र में सत्ता की होड़ लगी ही रहती है. विपक्षी दल सत्तारूढ़ दल की सरकार गिराने की कोशिश में लगे रहते हैं और सत्तारूढ़ दल में सर्वोच्च पद पाने के लिए जोड़-तोड़ लगी रहती है. शायद जनतंत्र का यही रोमांच है. अगर ऐसा ना हो तो फिर राजनीति में नीरसता आ जाती है.

एक बात जो इस प्रकरण में उभर कर आती है वह काफी दिलचस्प है कि कुर्सी के लिए उठा-पटक बड़े राष्ट्रीय दलों में ही देखा जाता है, क्षेत्रीय दल इस बीमारी से मुक्त होते हैं. कारण संभवतः यह है कि क्षेत्रीय दलों की स्थापना किसी बड़े नेता द्वारा की जाती है जिसे उसके पद से हटाने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता. क्षेत्रीय दलों में मुख्यमंत्री और आलाकमान एक ही होते हैं और उन दलों में सिर्फ एक ही नीति चलती है- (My Way Or Highway) यानि या तो मेरे रास्ते चलो या फिर अपने रास्ते निकल लो. क्योंकि ममता बनर्जी, स्टालिन, उद्धव ठाकरे, जगनमोहन रेड्डी या फिर के. चन्द्रशेखर राव को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बारे में सोचना भी अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के समान होगा.
तीनों राज्यों की क्या स्थिति है
अब नज़र डालते हैं कि पंजाब, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में ऐसी क्या बात हो गयी कि वहां के मुख्यमंत्रियों के सर पर खतरे का बादल मंडराने लगा है. कुछ बातें जो कैप्टन अमरिंदर सिंह, योगी आदित्यनाथ और बी.एस. येदियुरप्पा के बीच समान हैं वह हैं कि यह तीनो जनता के बीच लोकप्रिय हैं और अपने दम पर मुख्यमंत्री बने हैं. वहीं उनपर आरोप है कि वह तानाशाह प्रकृति के हैं और विधायकों की नहीं सुनते. अमरिंदर सिंह और येदियुरप्पा अब उम्र के उस दराज़ पर पहुंच चुके हैं कि उन्हें स्वेक्षा से किसी को कुर्सी सौंप कर रिटायर हो जाना चाहिए. अमरिंदर सिंह 79 साल के हैं और येदियुरप्पा 78 साल के. लेकिन दोनों अपनी राजनीतिक पारी ख़त्म करने के बारे में सोच भी नहीं रहे हैं. योगी आदित्यनाथ पर यह बात लागू नहीं होती, क्योंकि वह कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से एक वर्ष छोटे हैं और मात्र 49 साल के ही हैं.
पंजाब और उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होना है और कर्नाटक में 2023 के अप्रैल-मई में. इस तीनो मुख्यमंत्रियों में से सिर्फ येदियुरप्पा ने ही कहा है कि जिस दिन भी बीजेपी आलाकमान चाहे, वह इस्तीफा देने को तैयार हैं. पर बात इतनी सरल भी नहीं है. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी येदियुरप्पा के नेतृत्व में बहुमत से सिर्फ सात सीटों से पीछे रह गयी और कांग्रेस पार्टी ने जनता दल (सेक्युलर) के नेता एच.डी. कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री पद के लिए समर्थन दे दिया, सिर्फ इसलिए कि बीजेपी को सत्ता से बाहर रख सके. पर एक वर्ष होते होते जेडी(एस) बिखरने लगी और बीजेपी के पास पर्याप्त विधायक हो चुके थे कि वह सरकार बना सके.
येदियुरप्पा उस समय 76 वर्ष के हो चुके थे और बीजेपी को उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए अपने 75 वर्ष की आयु सीमा के नियम को ताख पर रखना पड़ा था. ऐसा भी नहीं है कि येदियुरप्पा बीजेपी आलाकमान के कहने पर पद त्याग देंगे, बीजेपी को भी पता है कि अगर उन्हें ऐसा करने को कहा गया तो पार्टी के सरकार का पतन भी हो सकता है. बीजेपी कतई यह नहीं चाहेगी, क्योंकि पार्टी को पता है कि येदियुरप्पा थोड़े जिद्दी किस्म के इंसान हैं.
अमरिंदर सिंह की कुर्सी सेफ है
जहां तक अमरिंदर सिंह की बात है तो लगता है कि वह फ़िलहाल चैन की सांस ले सकते हैं. कांग्रेस आलाकमान ने मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में तीन सदस्यों के एक कमेटी बनायी थी जिसे अमरिंदर सिंह के खिलाफ आरोप पर सभी से बात कर के रिपोर्ट देने को कहा गया था. कमेटी ने पंजाब कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं से जिसमें पार्टी के बागी विधायक भी शामिल थे, पिछले हफ्ते नयी दिल्ली में अलग अलग बैठक की. कमेटी अपना रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक-दो दिन में सौंप देगी. खबरों की अगर माने तो अमरिंदर सिंह पर थोड़ा लगाम जरूर लगा दिया जाएगा पर उनके पद पर कोई खतरा नहीं आएगा. बस देखने वाली बात होगी की किस तरह से बागियों को पार्टी मनाएगी या फिर बागी कांग्रेस पार्टी की लुटिया डुबो कर ही मानेंगे.
बागियों की सूची में सबसे ऊपर नवजोत सिंह सिद्धू का नाम आता है. संभव है कि उन्हें पार्टी में कोई पद दे दिया जाए. संकेत यह भी हैं कि अगले साल का चुनाव अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा और संभव है कि एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनने के थोड़े समय के बाद वह इस्तीफा दे देंगे. पर अमरिंदर सिंह से यह उम्मीद करना थोड़ा ज्यादा ही आशावादी होने जैसा है, क्योंकि 2017 के चुनाव में उन्होंने जनता में ऐलान किया था कि वह उनका आखिरी चुनाव होगा और अब वह उससे मुकर चुके हैं. अगर कांग्रेस पार्टी चुनाव जीती और अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री बने तो फिर उनसे स्वेक्षा से पद त्याग करने की उम्मीद करना चांद को धरती पर उतारने के जैसा है.
योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कैसे बना माहौल?
रही बात योगी आदित्यनाथ की तो उनके खिलाफ यकायक कैसे माहौल बन गया ज़रा समझ से परे है. खबर आ रही है कि उनके और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच मोदी के नजदीकी माने जानेवाले एक पूर्व सरकारी अधिकारी को उपमुख्यमंत्री बनाने पर कुछ विवाद है. मोदी के खिलाफ ढेर सारे आरोप लगते रहते हैं, पर इतना तय है कि मोदी इतने भी जिद्दी नहीं है कि किसी पूर्व आधिकारी को उत्तर प्रदेश सरकार में पद देने की बात पर वह चुनाव के कुछ ही महीनों पहले सरकार गिरा देंगे.
इस सच्चाई से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि 2017 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत मोदी के नाम पर हुई थी क्योंकि बीजेपी ने उस समय योगी या किसी और को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित नहीं किया था. अगले साल बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतना अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका सीधा असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा, वह भी खासकर जबकि मोदी खुद ही उत्तर प्रदेश से सांसद हैं.
चुनाव के ठीक पहले अगर किसी नए मुख्यमंत्री को पद सौंपा जाएगा तो उसे इतना समय ही नहीं मिलेगा कि वह पार्टी और सरकार पर अपनी पकड़ बना सके और जनता के बीच लोकप्रिय हो जाए. इसलिए यह मान कर चलना चाहिए कि योगी आदित्यनाथ की कुर्सी फिलहाल सुरक्षित है.
हां, इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि उत्तर प्रदेश में सरकार और पार्टी में कुछ बदलाव हो सकता है. वैसे भी इतिहास गवाह है कि 90 के दशक से जब दिल्ली में साहिब सिंह वर्मा की जगह चुनाव के कुछ ही महीनों पहले सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया गया था, नेतृत्व परिवर्तन की वजह से पार्टी जीत नहीं पायी और यह फार्मूला कई बार फ्लॉप ही रहा है. हम यहां किन स्थितियों में गुजरात में पहली बार केशुभाई पटेल की जहां मोदी को मुख्यमंत्री बनाया गया था और कैसे मोदी के नेतृत्व में बीजेपी फिर से चुनाव जीतने में सफल रही थी, जिक्र नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उसका कारण ही कुछ और था.
बीजेपी के लिए चुनौती बरकरार
बीजेपी की सबसे बड़ी समस्या कर्नाटक है. अगर येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने रहे तब भी इसकी कोई गारंटी नहीं है कि बीजेपी चुनाव जीत ही जायेगी, क्योंकि उनपर परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद और भ्रष्ट्राचार का आरोप है, जो उनपर पूर्व में भी लगता रहा था. अभी भी लग रहा है. यानी येदियुरप्पा उनमें से नहीं है कि वह बदल जायें, ना ही वह बदलें. बीजेपी आलाकमान के लिए अगले कुछ समय में चुनौती यही रहेगी कि कैसे येदियुरप्पा को स्वेक्षा से पद छोड़ने के लिय मनाया जाए. फिलहाल इतना तो तय है कि भारत में राजनीति नीरस और बेरोचक नहीं होने वाली है.
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