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संविधान निर्माताओं ने संसद भवन को भारतीय लोकतंत्र का पवित्र स्थान मानते हुए जिस संविधान का गठन किया था, उस वक्त उन्हें भी इस बात का अंदाजा नहीं होगा कि यह भवन देश की अमन और तरक्की के रास्ते पर चलते हुए विश्व में लोकतंात्रिक आदर्शों पर चलने के बजाय राजनीति का शर्मसार करने वाला अखाड़ा बन जाएगा। पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल की सदस्यता के विवाद और अब संसद की नई इमारत सत्ता पक्ष और विपक्ष में फजीहत का कारण बन गई है। सत्तापक्ष और विपक्ष में नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर आई कड़वाहट से विश्व में भारत की छवि प्रभावित हो रही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष में तीखी टकराहट का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले विपक्षी दलों पर ईडी और सीबीआई की कार्रवाई के कारण भी ऐेसा नजारा देखने को मिला था। हालांकि इस मुद्दे पर विपक्ष को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिल सकी, किन्तु भाजपा और विपक्षी पार्टियों में तल्खी और बढ़ गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। उद्घाटन समारोह से पहले ही इसको लेकर सियासी घमासान छिड़ा हुआ है जो कम होने का नाम नहीं ले रहा है। विपक्ष नई संसद के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार कर रहा है, इस बहिष्कार में भी कई दलों में एकता दिख रही है, दरअसल विपक्ष अलग-अलग मुद्दों के जरिए 2024 के चुनाव में एकजुट होकर बीजेपी की ओर चुनावी तीर चलाना चाहता है। यह नया संसद भवन सरकार और विपक्ष के बीच कटुता एक नई इमारत के रूप में खुल रहा है। ऐसे संकेत हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव तक यह दरार और चौड़ी हो सकती है। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े और राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। समूचा विपक्ष राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से उद्घाटन कराने पर जोर देते हुए समारोह के बहिष्कार पर अड़ा हुआ है। खडग़े ने प्रधानमंत्री मोदी को कहा कि आपकी सरकार के अहंकार ने संसदीय प्रणाली को ध्वस्त कर दिया है। महामहिम राष्ट्रपति का पद संसद का प्रथम अंग है। सरकार के अहंकार ने संसदीय प्रणाली को ध्वस्त कर दिया है।
राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर ट्वीट किया कि ‘नए संसद भवन का राष्ट्रपति को उद्घाटन करना चाहिए, न कि पीएम को।’ गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के बहिष्कार को लेकर कहा कि आप इसे राजनीति के साथ मत जोडि़ए। सब अपने विवेक के हिसाब से काम कर रहे हैं। भाजपा ने भी कांग्रेस और दूसरे राज्यों की सरकारों के समय हुए ऐसे उद्घाटनों की फेहरिस्त गिनाई है, जिनमें राष्ट्रपति या राज्यपाल को आमंत्रित नहीं किया गया। नए संसद भवन का पीएम मोदी से उद्घाटन को लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी समेत 19 विपक्षी दलों ने बहिष्कार करने का ऐलान किया है। सभी दल अपनी सुविधा अनुसार और वोटों के समीकरण के आधार पर विरोध-समर्थन कर रहे हैं। सभी की निगाहें 2024 के लोकसभा चुनावों के साथ-साथ आगामी राज्य चुनावों पर भी टिकी हैं। कांग्रेस को एससी, एसटी और पिछड़ों को लुभाकर 2024 में अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह उनका मजबूत वोट बैंक रहा है और कर्नाटक में भी यह उनके पक्ष में गया। माना जा रहा है कि इसलिए बहिष्कार की राजनीति में यह मोड़ आया।
नए संसद भवन के बहिष्कार के मुद्दे पर कांग्रेस, टीएमसी, समाजवादी पार्टी (सपा) और आम आदमी पार्टी (आप) सहित 19 विपक्षी दलों ने हाथ मिलाने का फैसला किया है। वैसे इस बात पर भी आश्चर्य नहीं कि तेलुगु देशम पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल जैसे अन्य विपक्षी दल इस उद्घाटन समारोह में हिस्सा लेंगे। ये पार्टियां काफी लंबे समय से बीजेपी के करीब चल रही हैं और टीडीपी निश्चित रूप से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में फिर से शामिल होने की उम्मीद में बीजेपी के करीब आ रही है। नए भवन के उद्घाटन से पहले एक छोटा सा हवन किया जा रहा है और इस पर भी विपक्षी पार्टी नेताओं द्वारा आपत्ति जताई जा रही है। भाजपा निश्चित तौर पर हवन के विरोध को चुनावी मुद्दा बनाने से नहीं चूकेगी। राष्ट्रवाद और राष्ट्रहित के मुद्दों पर कांग्रेस, कुछ अन्य विपक्षी दलों की तरह बैकफुट पर रही है। कम से कम लोकसभा चुनाव के लिए तो बीजेपी और पीएम इसे अवश्य ही मुद्दा बनाएंगे।
विपक्षी दल इस मुद्दे पर केंद्र की भाजपा सरकार का पुरजोर तरीके से विरोध कर रहे हैं। विपक्षी दलों के विरोध से इस बात की ज्यादा संभावना नहीं है कि सभी एकजुट होकर आगामी लोकसभा और राज्यों में होने वाले विधानसभाओं के चुनाव मिल कर लडं़ेगे। संसद भवन से पहले राहुल गांधी की सदस्यता के मामले में विपक्षी दल एकता नहीं दिखा सके। भाजपा का विरोध करने मात्र से विपक्षी एकता की संभावना क्षीण है। विपक्षी दल विगत कई वर्षों से भाजपा का विरोध करते आ रहे हैं, किन्तु पूर्व में हुए चुनावों में भी उनका विरोध एकता को सिरे से नहीं चढ़ा सका। केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश जारी करके दिल्ली की अरविन्द केजरीवाल सरकार के अधिकारों को सीमित करने के मामले में विपक्षी दल राज्यसभा में कानून बनने से रोकने के लिए एकजुट होने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि कांग्रेस ने फिलहाल इससे दूरी बनाए रखी है, किन्तु संसद में इस कानून के पक्ष में वोट देना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा। ऐसे में कांग्रेस के पास बहिर्गमन ही एक रास्ता होगा। संसद भवन के उद्घाटन पर सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों में टकराव का मुद्दा बेशक चुनावी बने, किन्तु इसमें लोकतंत्र की ढहती हुई स्वस्थ परंपराओं का एक नया अध्याय और जुड़ गया है। देश और लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने संकीर्ण स्वार्थों से ऊपर उठ कर ऐसे राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर एकराय कायम करें। वैसे यह भी कहा जा सकता है कि विपक्ष अगर एकजुट नहीं हो पाया, तो भाजपा को इसका लाभ मिलेगा। अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस का समर्थन मिल पाएगा या नहीं, यह अभी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है।
योगेंद्र योगी
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal M

Rani Sahu
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