सम्पादकीय

सड़क क्रांति का अहम पड़ाव

Rani Sahu
17 Nov 2021 2:49 PM GMT
सड़क क्रांति का अहम पड़ाव
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पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का निर्माण देश में सड़क क्रांति के लिहाज से एक अहम पड़ाव है

पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का निर्माण देश में सड़क क्रांति के लिहाज से एक अहम पड़ाव है। वायु सेना के सी-130जे सुपर हरक्यूलिस विमान का इस पर उतरना इसकी तस्दीक करता है। ऐसे में, यह मुनासिब था कि लगभग 340 किलोमीटर लंबी इस सड़क के निर्माण से जुड़े सभी पक्षों का देश धन्यवाद करे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस भावना को अभिव्यिक्ति दी कि जिन किसानों की भूमि इसमें लगी है, जिन मजदूरों और इंजीनियरों के अमूल्य श्रम से यह मार्ग साकार हुआ है, वे सभी अभिनंदन के पात्र हैं। जाहिर है, तरक्की की हर मंजिल साझा कदमों से ही तय होती है। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का बनना इस अपेक्षाकृत पिछड़े इलाके के लोगों के लिए एक बडे़ सपने के सच होने जैसा है। इससे उनके आवागमन की मुश्किलें तो कम होंगी ही बाराबंकी, फैजाबाद, अंबेडकरनगर, अमेठी, सुल्तानपुर, आजमगढ़, मऊ और गाजीपुर जिलों की औद्योगिक गतिविधियों को भी नई रफ्तार मिलेगी।

मानव समाज और नगर सभ्यताओं के विकास को आंकने की जो कसौटियां हैं, उनमें सड़कों का जाल सबसे अहम रहा है। और आज विशाल आबादी की अपेक्षाओं व जरूरतों को पूरा करने की तो यह बुनियादी शर्त है। इस मामले में देश दशकों तक तेज प्रगति नहीं कर पाया, क्योंकि अर्थव्यवस्था की कुछ सीमाएं थीं और अलग-अलग सरकारों की प्राथमिकताएं भी अलग थीं। लेकिन आर्थिक उदारीकरण के बाद अर्थव्यवस्था के विस्तार और इसकी आधारभूत आवश्यकताओं ने सरकारों को इस विषय में अधिक सक्रिय भूमिका अपनाने को बाध्य किया। खासकर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय शुरू स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के तहत देश के चार बडे़ महानगरों-दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को सड़क मार्ग से जोड़ने का जो काम शुरू हुआ था, वह 2012 में मनमोहन सिंह सरकार के समय पूरा हुआ। इसी तरह, सन् 2000 में शुरू प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से देश के गांवों का कितना विकास हुआ है, यह बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। लेकिन यह भी कटु सत्य है कि कई प्रदेश सरकारें ग्रामीण सड़कों के रखरखाव पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही हैं।
बहरहाल, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में यमुना एक्सप्रेस-वे, लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे और अब पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के निर्माण ने यह आश्वस्ति दी है कि देश में विकास का पहिया थमने वाला नहीं है। साढ़े तीन वर्ष के भीतर लगभग 22,500 करोड़ रुपये की लागत से तैयार यह एक्सप्रेस-वे अन्य राज्य सरकारों के लिए भी एक उदाहरण है कि समयबद्ध निर्माण की क्या अहमियत है। यह एक नई कार्य-संस्कृति है, जो महज शिलान्यासों के आडंबर व अधूरी योजनाओं में सार्वजनिक धन की बरबादी से दूर है। और यह एक राज्य या एक दल की सरकार तक महदूद नहीं, दिल्ली, छत्तीसगढ़ सरकारों ने भी ऐसी मिसालें कायम की हैं। निस्संदेह, इस कार्य-संस्कृति और राजनीतिक चेतना को सहेजने की जरूरत है। बेहतर सड़कों का जाल रेलवे पर दबाव कम करने में कारगर साबित होगा ही और ऊर्जा खपत को कम करने में भी सहायक होगा। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मुहाने पर है और ऐसे समय में उद्घाटनों-शिलान्यासों की बाढ़ आ जाती है। पर विकास की राजनीति हो, जनता को यही तो चाहिए।

हिन्दुस्तान

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