सम्पादकीय

जीवन का सच यही है कि एक पड़ाव के बाद सबको अपने-अपने रास्ते जाना पड़ता है

Gulabi
28 Dec 2021 6:09 AM GMT
जीवन का सच यही है कि एक पड़ाव के बाद सबको अपने-अपने रास्ते जाना पड़ता है
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दुनिया में मिलने पर अच्छा लगना और बिछड़ने पर पीड़ा होना स्वाभाविक है

पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:

दुनिया में मिलने पर अच्छा लगना और बिछड़ने पर पीड़ा होना स्वाभाविक है। यदि यह घटना परमात्मा के साथ हो रही हो तो दृश्य कुछ और ही होता है। श्रीराम वानर-भालुओं को समझा चुके थे कि अब हमें बिछड़ना है। मैं अयोध्या जाऊंगा, तुम सब अपने-अपने घर जाओ। यह कहते हुए राम को भी पीड़ा हो रही थी, क्योंकि इतने दिन वे इन्हीं के बीच रहे थे और इन लोगों ने उनकी बहुत सहायता की थी।
लेकिन, जीवन का सच यही है कि एक पड़ाव के बाद सबको अपने-अपने रास्ते जाना पड़ता है। उस दृश्य पर तुलसीदासजी ने लिखा- 'प्रभु प्रेरित कपि भालु सब राम रूप उर राखि। हरष बिषाद सहित चले बिनय बिबिध बिधि भाषि।' प्रभु की आज्ञा से सारे वानर-भालू उनकी छवि को हृदय में रखकर अनेक प्रकार से विनती करते हुए हर्ष और विषाद के साथ अपने-अपने घर को चल दिए। देखिए, यहां चार बातें आई हैं।
भगवान की छवि को हृदय में रखा, विनती की, हर्ष हुआ और विषाद यानी पीड़ा भी हुई। ये चारों बातें मिला दी जाएं तो इसे ईमानदारी और समझदारी कहेंगे। वानर अपना काम करने में बहुत ईमानदार थे और श्रीराम के साथ रहकर समझदार हो गए थे। महामारी के रूप में संकट का दौर फिर से आ सकता है। तो ध्यान रखिए, जीवन में जब भी ऐसी स्थिति, ऐसा समय आए, ईमानदारी हमें निर्भय करेगी और समझदारी सहज बनाएगी।

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