सम्पादकीय

जीवन का वास्तविक स्वरूप, उसका सच्चा आनंद सेवा करने में छुपा है

Gulabi Jagat
17 May 2022 8:44 AM GMT
जीवन का वास्तविक स्वरूप, उसका सच्चा आनंद सेवा करने में छुपा है
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कोई हमारे लिए कुछ अच्छा कर दे, कोई शुभ समाचार सुना दे तो हम मनुष्यों का मनोविज्ञान होता
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
कोई हमारे लिए कुछ अच्छा कर दे, कोई शुभ समाचार सुना दे तो हम मनुष्यों का मनोविज्ञान होता है कि उसे सौजन्यस्वरूप कुछ दिया जाए। यही मनोविज्ञान उस समय भरतजी के साथ काम कर रहा था जब हनुमानजी ने उन्हें श्रीराम के सकुशल वापस आने की सूचना दी। इस पर भरतजी ने टिप्पणी की- 'कपि तव दरस सकल दुख बीते। मिले आजु मोहि राम पिरीते।। बार बार बूझी कुसलाता। तो कहुं देउं काह सुनु भ्राता।।'
हनुमान, तुम्हारे दर्शन से मेरे सारे दुख समाप्त हो गए। तुम्हारे रूप में मानो मुझे मेरे प्यारे रामजी ही मिल गए। इस शुभ सूचना के बदले मैं तुम्हें क्या दूं? ध्यान रखिए, देने में दो बातें हो सकती हैं- स्वार्थ और सेवा। तो जब भी किसी को कुछ भेंट या उपहार दें, यह मानकर चलिए कि आप सेवा ही कर रहे हैं, वरना वह लेन-देन या सौदेबाजी में बदल सकता है।
कहते हैं जीवन का वास्तविक स्वरूप, उसका सच्चा आनंद सेवा करने में छुपा है। अपने सामर्थ्य के अनुसार यदि किसी को कुछ दे सकें तो जरूर दीजिए, लेकिन नीयत में 'उसके बदले क्या मिलेगा' का भाव नहीं होना चाहिए। जब पाने की उम्मीद में कुछ दिया जाता है तो फिर सौदेबाजी शुरू हो जाती है, और सेवा यदि सौदेबाजी से मुक्त न रही तो वह प्रदर्शन, पाखंड, स्वार्थ और अहंकार की पूर्ति के लिए किया हुआ काम बन जाएगी।
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